ओशो- …. ...”कहीं एक मंदिर बन रहा था। तीन श्रमिक वहां धूप में बैठकर पत्थर तोड़ रहे थे। एक राहगीर वहां से गुजर रहा था। बारी-बारी से उसने श्रमिकों से पूछा :’क्या कर रहे हो?’ एक से पूछा। वह बोला :’पत्थर तोड़ रहा हूँ।’ उसके कहने में बड़ी पीड़ा थी और स्वर भी भारी था। […]Read More
ओशो- ईशावास्य उपनिषद की आधारभूत घोषणा : सब कुछ परमात्मा का है। इसीलिए ईशावास्य नाम है — ईश्वर का है सब कुछ। मन करता है मानने का कि हमारा है। पूरे जीवन इसी भ्रांति में हम जीते हैं। कुछ हमारा है — मालकियत, स्वामित्व — मेरा है। ईश्वर का है सब कुछ, तो फिर मेरे […]Read More
ब्राह्मण होना उपलब्धि है. जन्म से कोई ब्राह्मण नहीं होता
पहला प्रश्न भगवान,सत्यं परं परं सत्य। सत्येन न स्वर्गाल्लोकाच च्यवन्ते कदाचन। सतां हि सत्य। तस्मात्सत्ये रमन्ते। अर्थात सत्य परम है, सर्वोत्कृष्ट है, और जो परम है वह सत्य है। जो सत्य का आश्रय लेते हैं वे स्वर्ग से, आत्मोकर्ष की स्थिति से च्युत नहीं होते। सत्पुरुषों का स्वरूप ही सत्य है। इसलिए वे सदा सत्य […]Read More
कैसे अनुभव करेंगे कि जो हो रहा है वह मन का है ? ओशो- अगर मन शांत हो, तो एक बुनियादी खयाल रखना जब मन शांत हो–जब मन ही शांत हो और भीतर के तल पर शांति न पहुंची हो–तो शांत होते ही एक वासना पैदा हो जाएगी कि यह शांति बनी रहे,मिट न जाए। […]Read More
अमेरिका के मनोवैज्ञानिकों ने हिसाब लगाया है कि न्यूयार्क जैसे
ओशो- पिछले पहले महायुद्ध में तीन करोड़ लोगों की हमने हत्या की थी। और उसके बाद–शांति और प्रेम की बातें करने के बाद दूसरे महायुद्ध में हमने साढ़े सात करोड़ लोगों की हत्या की। और उसके बाद भी चिल्ला रहे हैं बट्रेंड रसेल से लेकर विनोबा तक सारे लोग कि शांति चाहिए, शांति चाहिए, और […]Read More
ओशो- धर्म अनुभव की बात कभी नहीं करता है, सिर्फ विधि की बात करता है। वह बताता है कि यह कैसे होगा, लेकिन यह नहीं बताता कि क्या। क्या को तुम पर छोड़ दिया जाता है।’ बुद्ध निरंतर चालीस वर्षों तक कहते रहे कि मुझसे सत्य, ईश्वर, मोक्ष और निर्वाण के संबंध में प्रश्न मत […]Read More
ओशो- ओम् को चुनने के दो कारण हैं। एक तो, एक ऐसे शब्द की तलाश थी जिसका अर्थ न हो, जिसका तुम अर्थ न लगा पाओ; क्योंकि अगर तुम अर्थ लगा लो तो वह पांचवें के इस तरफ का हो जाएगा। एक ऐसा शब्द चाहिए था जो एक अर्थ में मीनिंगलेस हो। हमारे सब शब्द […]Read More
पद किसी को भ्रष्ट नहीं करते, भ्रष्टों को आमंत्रित करते
ओशो- जब भी दो व्यक्ति पास मौन में बैठे हों, जानना गहन प्रेम हैं। या, जब भी दो व्यक्ति प्रेम में हों, तब तुम जानोगे कि गहन मौन में हैं। प्रेमी चुप हो जाते हैं। और अगर तुम चुप होने की कला सीख जाओ, तो तुम प्रेमी हो जाओगे। फिर तुम जिसके पास भी चुप […]Read More
सूत्र द्वेषप्रतिपक्षभावाद्रसशब्दाच्च रागः।। 6।। नक्रियाकृत्यनपेक्षणाज्ज्ञानवत् ।। 7।। अत एव फलानन्त्यम्।। 8।। तद्वतःप्रपत्तिशब्दाच्च नज्ञानमितरप्रपत्तिवत्।। १।। सा मुख्येतरापेक्षितत्वात्।। 10।। ओशो- मनुष्य है एक द्वंद्व — प्रकाश और अंधकार का, प्रेम और घृणा का। यह द्वंद्व अनेक सतहों पर प्रकट होता है। यह द्वंद्व मनुष्य के कण-कण में छिपा है। राम और रावण प्रतिपल संघर्ष में रत हैं। […]Read More
ओशो- मनुष्य के कृत्यों को देखों ! तीन हजार वर्षों में पाँच हजार युद्ध आदमी ने लड़े हैं। उसकी पूरी कहानी हत्याओं की कहानी है, लोगों को जिंदा जला देने की कहानी है और एक को नहीं, हजारों को। और यह कहानी खत्म नहीं हो गई है। क्या तुम सोचते हो आदमी बंदर से विकसित […]Read More