ओशो- शिक्षकों की एक बड़ी विराट सभा में बोलने के लिए बुलाया गया “शिक्षक-दिवस” था। तो मैंने उनसे कहा कि एक शिक्षक यदि राष्ट्रपति हो जाए तो इसमें शिक्षक का सम्मान क्या है? इसमें कौन से शिक्षक का सम्मान है? मेरी समझ में आए, एक राष्ट्रपति शिक्षक हो जाए तब तो शिक्षक का सम्मान समझ में आता है लेकिन एक शिक्षक राष्ट्रपति हो जाए इसमें शिक्षक का सम्मान कौन सा है! एक राष्ट्रपति शिक्षक हो जाए और कह दे कि यह व्यर्थ है और मैं शिक्षक होना चाहता हूं और शिक्षक होना आनंद है, तब तो हम समझेंगे कि शिक्षक का सम्मान हुआ। लेकिन एक शिक्षक राष्ट्रपति हो जाए, इसमें शिक्षक का सम्मान नहीं है, राजनीतिज्ञ का सम्मान है। इसमें राजनेता का सम्मान है। और जब एक शिक्षक सम्मानित होता हो राष्ट्रपति होकर तो फिर बाकी शिक्षक भी अगर हेडमास्टर होना चाहें, स्कूल इंस्पेक्टर होना चाहें, एजुकेशन के मिनिस्टर होना चाहें, तो कोई गलती है?सम्मान तो वहां है जहां पद है, और पद वहां है जहां राज्य है। लेकिन सारा ढांचा हमारे चिंतन का ऐसा है कि सब पीछे है, और सबके ऊपर राज्य है, सबके ऊपर राजनीति है। राजनीतिज्ञ जाने-अनजाने शिक्षक के द्वारा अपनी विचार-स्थिति को, अपनी धारणाओं को बच्चों में प्रवेश करवाता रहता है। धार्मिक भी करता रहा है-यही! धर्म-शिक्षा के नाम पर यही चलता रहा है कि हर धर्म यह कोशिश करता है, बच्चों के मन में अपनी धारणाओं को प्रवेश करा दे, चाहे वे सत्य हों, चाहे असत्य हों। और उस उम्र में प्रवेश करवा दे जब कि बच्चे में कोई सोच-विचार नहीं होता है~ ओशो