पुरानी आदतें जाती नहीं, बोध भी आ जाता है तो पुरानी आदतें लौट—लौट कर हमला करती हैं, बदला लेती हैं “ओशो”

 पुरानी आदतें जाती नहीं, बोध भी आ जाता है तो पुरानी आदतें लौट—लौट कर हमला करती हैं, बदला लेती हैं “ओशो”

ओशो- मैंने सुना है, एक अंधा और एक लंगड़ा दो मित्र थे—दोनों भिखारी। और दोनों की मित्रता एकदम जरूरी भी थी, क्योंकि एक अंधा था और एक लंगड़ा था। लंगड़ा चल नहीं सकता था, अंधा देख नहीं सकता था। तो अंधा चलता था और लंगड़ा देखता था। लंगड़ा अंधे के कंधों पर बैठ जाता, दोनों भिक्षा मांग लेते। साझेदारी थी भिखारी की दूकान में। लेकिन कभी—कभी झगड़ा भी हो जाता था; जैसा सभी साझेदारों में होता है। कभी एक ज्यादा ले लेता, दूसरा कम ले लेता। या लंगड़ा चकमा दे देता अंधे को, तो झगड़ा हो जाता था। एक दिन झगड़ा इतना बढ़ गया कि मारपीट हो गई। मारपीट हो गई और दोनों ने कहा कि अब यह साझेदारी खत्म, यह पार्टनरशिप बंद, अब नहीं करते। अब अपनी तरफ से ही घिसट लेंगे, मगर यह नहीं चलेगा। यह तो काफी धोखा चल रहा है।कहते हैं, परमात्मा को बड़ी दया आई। पहले आती रही होगी अब नहीं आती। क्योंकि परमात्मा भी थक गया दया कर—कर के, कुछ सार नहीं। आदमी कुछ ऐसा ह,ऐ कि तुम दया करो तो भी उस तक दया पहुंचती नहीं। परमात्मा भी थक गया होगा। पर यह पुरानी कहानी है, दया आ गई। परमात्मा मौजूद हुआ, प्रगट हुआ। उसने उस दिन सोचा कि आज दोनो को आशीर्वाद दे दूंगा। अंधे के पास जा कर कहूंगा मांग ले जो तुझे मांगना है। स्वभावत: अंधा मांगेगा कि मुझे आंखें दे दो, क्योंकि वही उसकी पीड़ा है,। लंगड़े से कहूंगा, जो तुझे मांगना है तू मांग ले। वह मांगेगा पैर, उसको पैर दे दूंगा। अब दोनों को स्वतंत्र कर देना उचित है।

वह गया, लेकिन रोता हुआ वापिस लौटा। परमात्मा रोता हुआ वापिस लौटा! क्योंकि अंधे से जब उसने कहा कि मैं परमात्मा हूं तुझे वरदान देने आया हूं मांग ले जो मांगना है—उसने कहा कि लंगडे को अँधा कर दो। जब उसने लगडे से कहा तो लंगडे ने कहा कि अंधे को लंगडा कर दो प्रभु। ‘ऐसे ही अज्ञनुभवों के कारण उसने आना भी जमीन पर धीरे—धीरे बंद कर दिया। कोई सार नहीं है। बीमारी दुगुनी हो गई। आने से कुछ फायदा न हुआ। दया का परिणाम और घातक हो गया।

अंधे ने मांगा, वहीं भूल हो गई। लंगड़े ने मांगा, वहीं भूल हो गई। आदतें पुरानी थीं और अभी भी क्रोध का जहर बाकी था। तो परमात्मा भी सामने खड़ा था, फिर भी चूक गए। आदमी के सामने कई बार मोक्ष की घड़ी आ जाती है, फिर भी आदमी चूक जाता है ( क्योंकि पुरानी आदतें हमला करती हैं और मोक्ष की घड़ी में बड़ी जोर से हमला करती हैं। क्योंकि आदतें भी अपनी रक्षा करना चाहती हैं। हर आदत अपनी रक्षा करती है, टूटना नहीं चाहती।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3

अष्‍टावक्र: महागीता, (भाग–1) प्रवचन–15