डर लगता है मरघट जाने में, क्योंकि मरघट कुछ बुनियादी खबरें देता है “ओशो”

 डर लगता है मरघट जाने में, क्योंकि मरघट कुछ बुनियादी खबरें देता है “ओशो”

ओशो- बुद्ध कहते थे कि जिसे सादृश्य-योग साधना हो, वह पहले तो तीन महीने मरघट पर जाकर निवास करे। सादृश्य-योग साधना हो, तो पहले तीन महीने मरघट पर निवास करे। जब कोई भिक्षु आता, बुद्ध कहते, जा तीन महीने मरघट पर रह। वह कहता, इससे क्या होगा? मैं योग साधने आया! बुद्ध कहते, पहले जरा मरघट पर तीन महीने रहकर आ। वह कहता, वहां क्या करूंगा?तो बुद्ध कहते, जब भी कोई मुर्दा आए, तो जानना कि ऐसा ही एक दिन मैं भी आऊंगा। जब उसको जलाया जाए, तो जानना कि ऐसा ही एक दिन मैं भी जलाया जाऊंगा। जब उसका बेटा खोपड़ी तोड़े, तो जानना कि मेरा बेटा एक दिन खोपड़ी तोड़ेगा। जब सब लोग उसको जला-बुझाकर जाने लगें, तो जानना कि एक दिन लोग मुझे इसी तरह जला-बुझाकर चले जाएंगे।

पर वह आदमी पूछता, इससे होगा क्या? बुद्ध कहते, मौत से सादृश्य शुरू कर, बाद में जिंदगी में आसान हो जाएगा।

और बात ठीक कहते हैं। जिंदगी में सादृश्य बनाना जरा मुश्किल पड़ेगा, क्योंकि किसी के पास बड़ा मकान है और किसी के पास छोटा मकान है। सादृश्य बनाओ कैसे! और किसी के पास नाक जरा लंबी है, और लोग कहते हैं, खूबसूरत है। और किसी के पास थोड़ी चपटी है, और लोग कहते हैं, बिलकुल न होती तो अच्छी। करो क्या? कोई है कि गणित के बड़े सवाल हल कर देता है, और कोई है कि सोलह आने गिनने में दस दफे भूल कर जाता है। करो क्या? यहां जीवन में सादृश्य को बनाने में जरा कठिनाई पड़ेगी, क्योंकि बहुत-सा असादृश्य प्रकट है।

तो बुद्ध कहते, पहले मौत से शुरू करो, लेट अस बिगिन फ्राम दि एंड, चलो पीछे से शुरू करें। क्योंकि मौत में तो बड़ी अटारी वाला भी वहीं पहुंच जाता है, जहां छोटा झोपड़े वाला। जिसका गणित बड़ा कुशल था और जो गणित में सदा फेल हुआ, वे भी वहीं पहुंच जाते हैं। जिसकी शक्ल पर लोग मरे जाते थे और जिसकी शक्ल से लोग ऐसे बचते थे कि कहीं मिल न जाए, वह भी वहीं पहुंच गया। सब वहीं चले आ रहे हैं। नेता और अनुयायी, गुरु और शिष्य, साधु और असाधु, सम्मानित और अपमानित, संत और चोर–सब चले आ रहे हैं। एक जगह जाकर–मौत। मौत जो है, बहुत कम्युनिस्ट है; एकदम समान कर देती है! इस बुरी तरह समान करती है कि राख ही रह जाती है। सब समान हो जाता है।

तो बुद्ध कहते, वहीं से शुरू करो और जब यह साफ दिखाई पड़ जाए कि अंत में इतना सब सादृश्य हो जाने वाला है, तो बीच की झंझट में क्यों पड़ते हो। उसमें कुछ बहुत सार नहीं है। आखिरी तो यह है।

और जो भी भिक्षु तीन महीने मौत पर स्मरण करके आता, जिंदगी में सादृश्य को उपलब्ध हो जाता। अगर उससे कोई कभी कहता भी कि तुम तो बहुत ही ज्ञानी हो, तो वह कहता, क्षमा करो। अब मुझे धोखा न दे पाओगे। मैं देख आया मरघट। वहां मैंने ज्ञानियों को धूल में मिलते देखा। और अगर कोई उससे कहता कि आपकी आंखें तो बड़ी सुंदर, तो वह कहता, क्षमा करो। अब तुम धोखा न दे पाओगे। मैं देख आया मरघट। सब आंखें राख से ज्यादा सिद्ध नहीं होतीं।

कृष्ण कहते हैं, यह सादृश्य-योग उच्चतम योग की स्थिति को पहुंचा देता है।

शुरू करें कहीं से। मौत से शुरू करें, आसान पड़ेगा। लेकिन हिम्मत न जुटेगी मरघट जाने की। डर लगता है मरघट जाने में। इसीलिए डर लगता है, क्योंकि मरघट कुछ बुनियादी खबरें देता है।

☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई- ३☘️☘️
गीता-दर्शन – भाग 3
सर्व भूतों में प्रभु का स्मरण—(अध्याय—6) प्रवचन—पंद्रहवां