परमात्मा ने तुम्हें सब देकर देख लिया कि तुम्हें जो भी दिया जाए, उसका तुम मूल्य नहीं करते “ओशो”

 परमात्मा ने तुम्हें सब देकर देख लिया कि तुम्हें जो भी दिया जाए, उसका तुम मूल्य नहीं करते “ओशो”

ओशो- तुम्हें भेंट में भी नहीं दी जा सकती मुक्ति। क्योंकि भेंट की कोई कीमत करना ही नहीं जानता। कितनी चीजें तुम्हें भेंट में मिली हैं, तुमने कोई कीमत की? जीवन तुम्हें भेंट में मिला है, तुमने कभी परमात्मा को धन्यवाद दिया कि हे प्रभु, तेरा मैं अनुगृहीत हूं, क्योंकि तूने मुझे जीवन दिया? जीवन से और क्या मूल्यवान हो सकता है? नहीं, तुम्हारे भीतर कोई अनुग्रह नहीं उठा। उसने तुम्हें चैतन्य दिया है, तुमने अपने चैतन्य के लिए धन्यवाद दिया? नहीं, शिकायतें की होंगी, संदेह प्रकट किए होंगे, न अनुग्रह जगा, न श्रद्धा जगी। ऐसे ही तुम्हें अगर मोक्ष भी मिल जाए, तो तुम मोक्ष में भी शिकायतें करोगे कि आज धूप ज्यादा है, कि आज वर्षा हो गई, कि आज कपड़े सुखाने थे, कि आज यह करना था, कि आज वह करना था। तुम्हें मोक्ष भी अगर मिल जाए मुफ्त . . .परमात्मा ने सब दिया है, मोक्ष को बचा रखा है। वह तुम्हें खोजना है। ताकि तुम उसकी कीमत कर सको, उसका मूल्य कर सको।
परमात्मा ने तुम्हें सब देकर देख लिया कि तुम्हें जो भी दिया जाए, उसका तुम मूल्य नहीं करते। तुम अपने श्रम से जिसे पाते हो, उसका ही मूल्य करते हो। दो कौड़ी की चीजों का भी तुम मूल्य करते हो, अगर श्रम से मिलें। और अगर मुफ्त मिल जाएं तो तत्क्षण तुम्हारे मन में उनकी कीमत नहीं रह जाती। कीमत आंकने का तुम्हारे पास एक ही उपाय, एक ही मापदंड है और वह यह है कि कितना श्रम तुमने किया।
परमात्मा ने जो आखिरी बहुमूल्य चीज है, जो परम जीवन है, वह रोक रखा है। सब दे दिया है तुम्हें, उसे खोजने की सारी सुविधा दे दी है, उसे पाने का सामर्थ्य दे दिया है, उस तक पहुंचने की पूरी शक्ति दे दी है, मगर उस परम शिखर को छोड़ रखा है। यह शुभ किया है। यह उचित ही किया है। उसे तुम्हें ही पाना होगा।उसे कोई तुम्हें नहीं दे सकता। और कोई अगर कहे कि मैं तुम्हें दूंगा, तो तुम सावधान रहना, कोई धोखा है, कोई बेईमानी! जो ऐसा कहता है, तुम्हें लूटेगा। जो ऐसा कहता है, उससे बड़ा धोखेबाज इस दुनिया में कोई और नहीं।
सत्य को पाना होता है। मोक्ष को पाना होता है। ये चीजें हस्तांतरित नहीं होतीं। नहीं तो एक बुद्ध पर्याप्त था, सारी दुनिया को बुद्धत्व बांट देता।

ओशो
राम दूवारे जो मरै–(प्रवचन–08)