महावीर और बुद्ध दोनों मनुष्यों ने मनुष्य-जाति को बड़े से बड़ा दान दिया है, वह उनकी अहिंसा-वहिंसा का सिद्धांत नहीं है, वह सबसे बड़ा दान है—जाति-स्मरण का सिद्धांत
क्या हम अपने अतीत जन्मों को जान सकते हैं? ओशो- निश्चित ही जान सकते हैं। लेकिन अभी तो आप इस जन्म को भी नहीं जानते, अतीत के जन्मों को जानना तो फिर बहुत कठिन है। निश्चित ही मनुष्य जान सकता है अपने पिछले जन्मों को, क्योंकि जो भी एक बार चित्त पर स्मृति बन गई है वह नष्ट नहीं होती। वह हमारे चित्त के गहरे तलों में, अनकांशस हिस्सों में सदा मौजूद रहती है। हम जो भी जानते हैं उसे कभी नहीं भूलते हैं। अगर मैं आपसे पूछूं कि उन्नीस सौ पचास में एक जनवरी को आपने क्या किया था तो शायद आप कुछ भी नहीं बता सकेंगे। आप कहेंगे, मुझे क्या याद है!…मुझे कुछ भी याद नहीं है। एक जनवरी उन्नीस सौ पचास कुछ भी खयाल नहीं आता कि मैंने कुछ किया, लेकिन अगर आपको सम्मोहित किया जा सके, हिप्नोटाइज किया जा सके और सरलता से किया जा सकता है और आपको बेहोश करके पूछा जाए कि एक जनवरी उन्नीस सौ पचास को आपने क्या किया तो आप सुबह से सांझ तक का ब्योरा इस तरह बता देंगे जैसे अभी वह एक जनवरी आपके सामने गुजर रही है। आप यह भी बता देंगे कि एक जनवरी को सुबह जो मैंने चाय पी थी उसमें शक्कर थोड़ी कम थी। आप यह भी बता देंगे कि इस आदमी ने मुझे चाय दी थी। उस आदमी के शरीर से पसीने की बदबू आ रही थी। आप इतनी छोटी बातें बता देंगे कि जो जूता मैं पहने हुए था वह मुझे पैर में काट रहा था। सम्मोहित अवस्था में आपके भीतर की स्मृति को बाहर लाया जा सकता है। मैंने उस दिशा में बहुत से प्रयोग किए हैं, इसलिए आपसे कहता हूं और जिस मित्र को भी इच्छा हो अपने पिछले जन्मों में जाने की उसे ले जाया जा सकता है। लेकिन पहले उसे इसी जन्म में पीछे लौटना पड़ेगा। इस जन्म की ही स्मृतियों में पीछे लौटना पड़ेगा। वहां तक पीछे लौटना पड़ेगा जहां वह मां के पेट में कंसीव हुआ, गर्भ धारण हुआ और उसके बाद फिर दूसरे जन्म की स्मृतियों में प्रवेश किया जा सकता है। लेकिन ध्यान रहे, प्रकृति ने पिछले जन्मों को भुलाने की व्यवस्था अकारण नहीं की है। कारण बहुत महत्वपूर्ण है। और पिछले जन्म तो दूर हैं, अगर आप को एक महीने की ही सारी बातें याद रह जाएं तो आप पागल हो जाएंगे। एक दिन की नींद में अगर सुबह से शाम तक की सारी बातें याद रह जाएं तो आप जिंदा नहीं रह सकेंगे। तो प्रकृति की सारी व्यवस्था यह है कि आपका मन जितना तनाव झेल सकता है उतनी ही स्मृति आपके भीतर शेष रहने दी जाती है। शेष सब अंधेरे गर्त में डाल दी जाती हैं। जैसे घर में एक कबाड़ होता है। बेकार चीजें आप कबाड़ घर में डाल कर दरवाजा बंद कर देते हैं, वैसे ही स्मृति का एक कलेक्टिव हाउस, एक अनकांशस घर है, एक अचेतन घर है, जहां स्मृति में जो बेकार होता चला जाता है, जिसे चित्त में रखने की जरूरत नहीं है वह संगृहीत होता रहता है। वहां जन्म-जन्मों की स्मृतियां संगृहीत हैं। लेकिन अगर कोई आदमी अनजाने, बिना समझे हुए उस घर में प्रविष्ट हो जाए तो तत्क्षण पागल हो जाएगा। इतनी ज्यादा हैं वे संस्मृतियां। एक महिला मेरे पास प्रयोग करती थीं। उनको बहुत इच्छा थी कि वे पिछले जन्मों को जानें। मैंने उनको कहा कि यह हो सकता है लेकिन आगे की जिम्मेवारी समझ लेनी चाहिए, क्योंकि हो सकता है पिछले जन्म को जानने से आप बहुत चिंतित और परेशान हो जाएं। उन्होंने कहा कि नहीं, मैं क्यों परेशान होऊंगी। पिछला जन्म तो हो चुका है अब। क्या फिकर की बात है। उन्होंने प्रयोग शुरू किया। वे एक कालेज में प्रोफेसर थीं। बुद्धिमान थीं, समझदार थीं, हिम्मतवर थीं…प्रयोग शुरू किया और जिस भांति मैंने कहा, उन्होंने गहरे से गहरे मेडिटेशन किए, गहरे से गहरा ध्यान किया। धीरे-धीरे स्मृति के नीचे पर्तों को उघाड़ना शुरू किया। और एक दिन जिस पहली बार उन्हें पिछले जन्म में प्रवेश मिला वह भागती हुई आई। उनके हाथ-पैर कंप रहे थे। आंखों से आंसू बह रहे थे। एकदम छाती पीट-पीट कर रोने लगीं और कहने लगीं कि मैं भूलना चाहती हूं उस बात को जो मुझे याद आ गई। मैं उस पिछले जन्म में अब आगे नहीं जाना चाहती। मैंने कहा: अब मुश्किल है—जो याद आ गई उसे भूलने में फिर बहुत वक्त लग जाएगा। लेकिन इतनी घबड़ाहट क्या है! उन्होंने कहा: नहीं-नहीं, पूछिए ही मत! मैं तो सोचती थी कि मैं बहुत पतिव्रता हूं, बहुत सच्चरित्र हूं, लेकिन पिछले जन्म में एक मंदिर में वेश्या थी, दक्षिण की। मैं देवदासी थी और मैंने हजारों पुरुषों के साथ संभोग किया और मैंने अपने शरीर को बेचा। नहीं, मैं उसे भुलाना चाहती हूं। मैं उसे एक क्षण भी याद नहीं रखना चाहती। मैंने कहा: अब इतना आसान नहीं है! याद करना बहुत आसान है, भूल जाना बहुत मुश्किल है। पिछले जन्म में जाया जा सकता है और जिसकी मर्जी हो उसके रास्ते हैं, मैथडोलॉजी है! महावीर और बुद्ध दोनों मनुष्यों ने मनुष्य-जाति को बड़े से बड़ा दान दिया है, वह उनकी अहिंसा-वहिंसा का सिद्धांत नहीं है। वह सबसे बड़ा दान है—जाति-स्मरण का सिद्धांत, वह है पिछले जन्मों की स्मृति में उतरने की कला। महावीर और बुद्ध दोनों पहले आदमी हैं पृथ्वी पर, जिन्होंने प्रत्येक साधक के लिए यह कहा कि तब तक तुम आत्मा से परिचित नहीं हो सकोगे जब तक तुम पिछले जन्मों में नहीं उतरते हो। और उन्होंने प्रत्येक साधक को पिछले जन्म में ले जाने की फिकर की। और एक बार कोई आदमी अपने पिछले जन्मों की स्मृतियों में जाने की हिम्मत जुटा ले, वह दूसरा आदमी हो जाएगा। क्योंकि उसे पता चलेगा कि जिन बातों को मैं हजारों बार कर चुका हूं, उन्हीं को फिर कर रहा हूं! कैसा पागल हूं, कितनी बार मैंने संपत्ति इकट्ठी की है; कितनी बार मैंने करोड़ों के अंबार लगा दिए; कितनी बार मैंने महल खड़े किए, कितनी बार इज्जत, ज्ञान और पद और कितनी बार दिल्ली के सिंहासनों की यात्रा कर ली है, कितनी बार, कितनी अनंत बार, और फिर मैं वही कर रहा हूं! और हर वह यात्रा असफल हो गई है। वह यात्रा इस बार भी असफल हो जाएगी। तत्क्षण उसकी संपत्ति की दौड़ बंद हो जाएगी, तत्क्षण उसके पदों का मोह नष्ट हो जाएगा। वह आदमी जानेगा, मैंने हजारों-हजारों वर्षों में कितनी स्त्रियां भोगी, स्त्रियां जानेंगी कि मैंने हजारों-हजारों वर्षों में कितने पुरुष भोगे और न किसी पुरुष से तृप्ति मिली और न किसी स्त्री से तृप्ति मिली, और अब भी मैं यही सोच रहा हूं कि इस स्त्री को भोगूं, उस स्त्री को भोगूं, इस पुरुष को भोगूं, उस पुरुष को भोगूं, यह करोड़ बार हो चुका है। एक बार स्मरण आ जाए इसका तो फिर यह दुबारा नहीं हो सकता। क्योंकि इतने बार जब हम कर चुके हों और कोई फल न पाया हो तो फिर आगे उसे दोहराए जाने का उपाय नहीं है, कोई अर्थ नहीं है। बुद्ध और महावीर दोनों ने जाति-स्मरण के गहरे प्रयोग किए अतीत जन्मों की स्मृति के। और जो साधक एक बार उस स्मृति से गुजर गया, वह आदमी दूसरा हो गया, ट्रांसफार्म हो गया, बदल गया। जिन मित्र ने पूछा है, उनको जरूर कहूंगा कि अगर उनकी इच्छा हो तो उन्हें पिछली स्मृति में ले जाया जा सकता है। लेकिन सोच-समझ कर ही उस प्रयोग में जाया जा सकता है। इस जिंदगी की चिंताएं ही काफी हैं, इस जिंदगी की परेशानियां ही बहुत हैं। इस जिंदगी को भुलाने के लिए आदमी शराब पीता है, सिनेमा देखता है, ताश खेलता है, जुआ खेलता है। इस जिंदगी को भी भूलने के लिए, दिन भर को भूलने के लिए रात शराब पी लेता है।
जो आदमी आज के दिन भर को याद नहीं रख सकता, इतना साहस नहीं है कि जिंदगी को हंस कर ले, वह आदमी कैसे पिछले जन्मों को याद करने की हिम्मत जुटा पाएगा। यह जान कर आपको हैरानी होगी कि सारे धर्मों ने शराब का विरोध किया है और यह सारे बिलकुल न समझने वाले नेतागण जो दुनिया को समझाते हैं कि शराब का इसलिए विरोध किया है कि उससे चरित्र नष्ट हो जाता है, कि उससे घर की संपत्ति नष्ट हो जाती है, कि आदमी लड़ने-झगड़ने लगता है—ये सब बेवकूफी की बातें हैं। क्रमशः………