ओशो- तुम अगर भूखे हो तो मंदिर में जाकर भी मांगोगे क्या? रोटी, रोजी, कपड़ा तुम जरा मंदिरों में जाकर खड़े हो जाओ चुपचाप और लोगों की प्रार्थनाएं सुनो, लोग क्या मांग रहे हैं? कोई मांग रहा है कि बेटे को नौकरी मिल जाए; कोई मांग रहा है पत्नी की बीमारी ठीक हो जाए; कोई मांग रहा है कि मकान मिल जाए, मकान नहीं मिल रहा है। तुम भगवान से ये चीजें मांग रहे हो!तुम्हारा भगवान से कोई नाता नहीं है। तुम भगवान को नहीं मांग रहे हो; तुम कुछ और मांग रहे हो। शरीर की जरूरतें पहले पूरी होनी चाहिए। शरीर की जरूरतें पूरी होती हैं तो मन की जरूरतें पैदा होती हैं। मन की जरूरतें हैं, संगीत, कला, साहित्य।अब जिस आदमी का पेट भूखा है, उससे कहो, पढ़ो कालिदास की मेघदूत, कि यक्ष ने मेघदूत से उपनी प्रेयसी के लिये निवेदन भेजा है! वह कहेगा, भाड़ में जाने दो मेघदूत और उसकी प्रेयसी! अगर बादल कोई संदेश ले जाते हों, तो हमारा संदेश भगवान तक पहुंचा देना कि रोटी कब तक आएगी?जब मन की जरूरतें पूरी हो जाती हैं तो आत्मा की जरूरतें पैदा होती हैं। जो तृप्त हो जाता है कला से, संगीत से, साहित्य से, उनके मन में ध्यान, प्रार्थना, योग, तंत्र, इन ऊंचाइयों की बातें आनी शुरू होती हैं, ये सीढ़ियां हैं। इसलिये मैं कहता हूँ कि धर्म तो जब कोई देश समृद्ध होता है तभी पैदा होता है। यह देश जब समृद्ध था तो धर्मिक था। अब यह देश धार्मिक नहीं है। लाख तुम्हारे शंकराचार्य चिल्लाते रहें। यह देश धार्मिक नहीं है। यह देश अब धार्मिक अभी हो नहीं सकता। पहले इस देश को इसकी भौतिक जरूरतें पूरी होनी चाहिए, तब यह देश धार्मिक हो सकता है।