अगर हम अपने इस शरीर पर भी प्रयोग करें तो हम बहुत हैरान हो जाएंगे! यह शरीर भी बहुत कुछ आकृतियां हमारी वासना से ही लेता है “ओशो”

 अगर हम अपने इस शरीर पर भी प्रयोग करें तो हम बहुत हैरान हो जाएंगे! यह शरीर भी बहुत कुछ आकृतियां हमारी वासना से ही लेता है “ओशो”

ओशो- सूक्ष्म शरीर जो है आपका, अगर मनुष्य हैं, तो जैसा आपका शरीर है, ठीक इसी आकृति का, ठीक ऐसा हां, लेकिन अत्यंत एस्ट्रल एटम्स का बना हुआ, बहुत सूक्ष्म पदार्थों का बना हुआ शरीर होगा। उसके आर—पार जाने में कठिनाई नहीं है। अगर हम एक पत्थर फेंकें तो वह उसके आर—पार हो जाएगा। वह सूक्ष्म शरीर अगर दीवाल से निकलना चाहे तो निकल जाएगा, उसमें कोई बाधा नहीं है। लेकिन आकृति बिलकुल यही होगी जो आपकी है। धुंधली होगी, जैसे धुंधला फोटोग्राफ हो। अगर आपके सूक्ष्म शरीर का फोटोग्राफ होगा तो वह बिलकुल इससे मेल खाएगा। लेकिन ऐसा खाएगा जैसे कि कई सैकड़ों वर्ष में पानी पड़ते—पड़ते एकदम धुंधला हो गया हो। पर होगा यही।

गाय का होगा तो गाय जैसा होगा। लेकिन गाय जब मनुष्य शरीर में प्रवेश करेगी, तो सूक्ष्म शरीर चूंकि इतना वायवीय है, वह किसी भी आकृति में फौरन ढल सकता है। वह कोई ठोस चीज नहीं है। जैसे हम गिलास, पच्चीस ढंग के गिलास रखें और पानी को एक गिलास में डालें तो पानी उस आकृति का हो जाता है, दूसरे गिलास में डालें, दूसरी आकृति का हो जाता है। क्योंकि पानी लिकिड है, उसका कोई ठोस आकार नहीं है, वह जिस गिलास में होता है उसी आकार का होता है। तो वह जो सूक्ष्म शरीर है, वह जिस प्राणी—जीवन में प्रवेश करता है उसी आकार का हो जाता है। उसको आकार का ठोसपन नहीं है। इसलिए अगर गाय का सूक्ष्म शरीर निकल कर मनुष्य में प्रवेश करेगा, तो वह मनुष्य की आकृति ग्रहण कर लेगा। और सूक्ष्म शरीर की जो आकृति है, वह डिजायर से पैदा होती है, वह वासना से पैदा होती है। तो जिस जीवन में प्रवेश की वासना पैदा हो जाएगी, सूक्ष्म शरीर उसी का आकार ले लेगा।

और अगर हम अपने इस शरीर पर भी प्रयोग करें तो हम बहुत हैरान हो जाएंगे! इस शरीर पर भी अगर हम प्रयोग करें तो हम बहुत हैरान हो जाएंगे। यह शरीर भी बहुत कुछ आकृतियां हमारी वासना से ही लेता है।
अभी तो वैज्ञानिक भी इस बात को समझने में असमर्थ हैं कि हम खाना खाते हैं, तो उसी खाने से हड्डी बनती है, उसी खाने से खून बनता है, उसी खाने से हाथ की चमड़ी भी बनती है, उसी खाने से आंख की अंदर की चमड़ी भी बनती है। लेकिन आंख की चमड़ी देखती है और हाथ की चमड़ी नहीं देखती। और कान की हड्डी सुनती है और हाथ की हड्डी नहीं सुनती। और जो तत्व हम ले जाते हैं वे एक ही हैं। और इतना सारा का सारा निर्माण भीतर जो होता है, यह किस आधार पर हो रहा है? तो वह जो हमारे भीतर जो गहरी वासना है, वह वासना आकृति देती है। और उस वासना का सूक्ष्मतम रूप, अब वे कहते हैं कि जरूर किसी कोड लैंग्वेज में कहीं न कहीं लिखा होगा।

जैसे एक बीज है, उस बीज को हम डाल देते हैं। फोड़ कर देखें तो हमें कुछ पता नहीं चलता। उस बीज को हम मिट्टी में डालते हैं और उसमें से एक फूल निकलता है, समझो सूर्यमुखी का फूल निकलता है। तो सूर्यमुखी के फूल में जितनी पंखुड़ियां हैं, इसका कुछ न कुछ कोड लैग्वेज में उस बीज में लिखा हुआ होना चाहिए। अन्यथा यह कैसे संभव है कि यह सूर्यमुखी का ही पौधा बनता है, यह दूसरा पौधा नहीं बन जाता! बीज में किसी न किसी तरह, किसी न किसी सूक्ष्म तल पर, जो होने वाला है, वह सब लिखा होना चाहिए।

एक मां के पेट में एक अणु गया है, उस अणु में वह सब लिखा हुआ है जो आप में संभव होगा। वह उस अणु में कहां लिखा हुआ है? अभी तक वैज्ञानिक की पकड़ के बाहर है, लेकिन आध्यात्मिक या योग का कहना यह है कि उसमें जो प्राण प्रविष्ट हुआ है, उस प्राण की जो वासना है, वह वासना कोड है। उस कोड से सब विकसित होगा।

और वह जो सूक्ष्म शरीर है, जब तक एक ही तरह की जीवन—यात्रा करेगा— जैसे दस जन्म होंगे आदमी के, तो वह आदमी का रहेगा। लेकिन हर जन्म में उसकी आकृति बदलती चली जाएगी। और वह आकृति भी आपकी वासना से ही निर्धारित होगी।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ 
जीवन रहस्‍य–(प्रवचन–07)
पिछले जन्‍मों का स्‍मरण