प्रश्न– एक और छोटा सा प्रश्न है और बहुत बढ़िया हैः एक उलझन है कि मेरे मन में चोरी करने का भाव हो उठता है, खर्च की कमी रहती है इसलिए मुझसे चोरी हो जाती है। इस बात का कृपया उपाय बतलाएं कि इस चोरी से कैसे मुक्त हुआ जाए? ओशो– बड़ी ईमानदारी की बात […]Read More
प्रश्न: भगवान श्री, कल की चर्चा पर दो छोटे प्रश्न हैं। एक मित्र पूछते हैं कि आपने वर्ण व्यवस्था के बारे में जो कहा, क्या आज वह व्यवस्था आज की स्थिति में उचित है उसे लाना? और दूसरा प्रश्न है कि आश्रमों की चर्चा आपने की और उम्र का भी विभाजन किया। संन्यास चौथी अवस्था […]Read More
ओशो- मति एक बड़ी पारिभाषिक धारणा है। तुमने सुनी कहावत कि जब परमात्मा किसी को मिटाना चाहता तो उसकी मति भ्रष्ट कर देता। मति क्या है? तुम्हारे सोचने पर निर्भर नहीं है मति। तुम तो सोच—सोच कर जो भी करोगे वह मन का ही खेल होगा। मति है मन के पार जो समझ है, उसका […]Read More
ओशो- भारत अकेला देश है जो गौ भक्त है | भारत भी पूरा नहीं सिर्फ हिंदू, ना सिख, ना इसाई, ना जैन, ना मुसलमान, ना पारसी इन सबको छोड़ दो | सिर्फ हिंदू और हिंदू ही सिर्फ भारत नहीं है | हिंदुओं की संख्या तो 20 करोड़ है बाकी 50 करोड़ लोग और भी इस […]Read More
सूफी फकीर जलालुद्दीन’ रूमी ने कहा है–लोग प्रार्थनाएँ करते हैं
ओशो- सूफी फकीर जलालुद्दीन’ रूमी ने कहा है–लोग प्रार्थनाएँ करते हैं ताकि परमात्मा को बदल दें। पत्नी बीमार है–अगर उसकी आज्ञा से ही पत्ता हिलता है, तो उसकी आज्ञा से ही पत्नी बीमार होगी-आप गये प्रार्थना करने, जरा सुझाव देने कि बदलो यह इरादा, मेरी पत्नी बीमार नहीं होनी चाहिए, यह भूल-चूक सुधार लो– ‘ […]Read More
ओशो- कृष्ण जैसी चेतना के जन्म के लिए समय, सभी काल, सभी परिस्थियां काम की हो सकती है। कोई कोई परिस्थित कृष्ण जैसी चेतना के पैदा होने का कारण नहीं होती है। यह दूसरी बात है कि किसी विशेष परिस्थिति में वैसी चेतना को विशेष व्यवहार करना पड़े। लेकिन ऐसी चेतनाएं काल निर्भर नहीं होती। […]Read More
ओशो- शिक्षकों की एक बड़ी विराट सभा में बोलने के लिए बुलाया गया “शिक्षक-दिवस” था। तो मैंने उनसे कहा कि एक शिक्षक यदि राष्ट्रपति हो जाए तो इसमें शिक्षक का सम्मान क्या है? इसमें कौन से शिक्षक का सम्मान है? मेरी समझ में आए, एक राष्ट्रपति शिक्षक हो जाए तब तो शिक्षक का सम्मान समझ […]Read More
ओशो- यह सुबह, यह वृक्षों में शांति, पक्षियों की चहचहाहट…या कि हवाओं का वृक्षों से गुजरना, पहाड़ों का सन्नाटा… या कि नदियों का पहाड़ों से उतरना… या सागरों में लहरों की हलचल, नाद… या आकाश में बादलों की गड़गड़ाहट—यह सभी ओंकार है।ओंकार का अर्थ है : सार—ध्वनि; समस्त ध्वनियों का सार। ओंकार कोई मंत्र नहीं, […]Read More
ओशो- एक बार एक राजा के मन में आया कि यदि वह इन तीन प्रश्नों के उत्तर खोज लेगा तो उसे कुछ और जानने की आवश्यकता नहीं रह जायेगी। राजा ने यह घोषणा करवाई कि जो भी व्यक्ति उपरोक्त प्रश्नों के सही उत्तर देगा उसे बड़ा पुरस्कार दिया जाएगा. यह सुनकर बहुत से लोग राजमहल […]Read More
स्त्रियां अपने शरीर की उतनी फिक्र नहीं करती हैं, जितनी
ओशो- धन, पद, बहुत स्थूल आकर्षण हैं। वे आकर्षण वैसे ही हैं, जैसे चुंबक के पास लोहा खिंचता है। ऐसे ही हम खिंचे चले जाते हैं। ध्यान रखना, आप चुंबक नहीं हैं। जब आप धन की तरफ खिंचते हैं, तो ध्यान रखना, धन आपकी तरफ कभी नहीं खिंचता है। आप ही धन की तरफ खिंचते […]Read More