ओशो- यह अंधेरा कब तक रहेगा? जब तक तुमने स्वयं को शरीर माना है, यह अंधेरा रहेगा। जब तक दीया है, तक तक अंधेरा रहेगा। ज्योति अकेली हो, फिर उसके नीचे कोई अंधेरा नहीं रहेगा। ज्योति सहारे से है। थोड़ी देर को सोचो, ज्योति, ज्योति मुक्त हो गई अकेली आकाश में, उसके चारों तरफ प्रकाश […]Read More
ओशो– सफाई सृष्टि का सब से महत्वपूर्ण अंग है। सृष्टि का सफाई का इंतजाम भी इतना पुख्ता होता है …इतना पक्का होता है की उसे जो चीजें यहां चाहिए …वहीं रह सकती है। हम भी प्रकृति के लिए एक वस्तु की तरह ही है। मानव प्रकृति की एक ऐसी आखिरी कड़ी है जो शरीर को […]Read More
परमात्मा किसी को कम और ज्यादा देता नहीं। उसका सूरज सबके लिए उगता है। उसकी आंखों में न कोई छोटा है न कोई बड़ा है। न खुद जगमगाए बल्कि इनकी जगमगाहट से और भी लोग जगमगाएं। दीयों से दीये जलते चले गए। ज्योति से ज्योति जले! परमात्मा की तरफ से प्रत्येक को बराबर मिला है […]Read More
’’कानों को दबाकर और गुदा को सिकोड़कर बंद करो, और ध्वनि में प्रवेश करो।‘’ ओशो- हम अपने शरीर से भी परिचित नहीं है। हम नहीं जानते कि शरीर कैसे काम करता है और उसका ताओ क्या है, ढंग क्या है, मार्ग क्या है। लेकिन अगर तुम निरीक्षण करो तो आसानी से उसे जान सकते हो। […]Read More
ओशो- लाओत्से कहता है, “सर्वश्रेष्ठ शासक कौन है? जिसके होने की भी खबर प्रजा को न हो।” पता ही न चले कि वह भी है, क्योंकि होने की खबर भी हिंसा है। अगर बेटे को पता चलता है कि घर में बाप है, तो बाप की तरफ से कोई न कोई हिंसा जारी है। अगर […]Read More
श्री चित्रगुप्त मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा समारोह शुरू, निकली कलश
भिलाई/ मिलाई-दुर्ग के कायस्थजनों की प्रतिनिधि संस्था चित्रांश चेतना मंच भिलाई-दुर्ग द्वारा जवाहर नगर, वार्ड क्रमांक-25 में स्पोर्ट्स काम्पलेक्स के पास श्री चित्रगुप्त मंदिर में आयोजित प्राण प्रतिष्ठा समारोह का शुक्रवार को शुभारंभ हुआ। तीन दिवसीय समारोह के पहले दिन भव्य कलश एवं शोभायात्रा निकाली गई। महिलाओं ने बैकुंठधाम स्थित सूर्यकुंड से जल लाया। इसके […]Read More
ओशो– ‘अ, से अंत होने वाले किसी शब्द का उच्चार चुपचाप करो।’ बाहर जाने वाली श्वास पर जोर दो। और तुम इस विधि का उपयोग मन में अनेक परिवर्तन लाने के लिए कर सकते हो। अगर तुम कब्जियत से पीड़ित हो तो श्वास लेना भूल जाओ, सिर्फ श्वास को बाहर फेंको। श्वास भीतर ले जाने […]Read More
ओशो– आधुनिक मनोविज्ञान और वैज्ञानिक शोध कहती है कि दोनों भौंहों के मध्य में एक ग्रंथि है जो शरीर का सबसे रहस्यमय अंग है। यह ग्रंथि, जिसे पाइनियल ग्रंथि कहते है। यही तिब्बतियों का तृतीय नेत्र है—शिवनेत्र : शिव का, तंत्र का नेत्र। दोनों आंखों के बीच एक तीसरी आँख का अस्तित्व है, लेकिन साधारणत: […]Read More
ओशो- स्थितप्रज्ञ बड़ा मीठा शब्द है। अर्थ है उसका जिसकी प्रज्ञा अपने में ठहर गई, जिसका बोध अपने में रुक गया, जिसकी चेतना स्वयं को छोड़ कर कहीं भी नहीं जाती। ठहर गई चेतना जिसकी, ऐसा यति, ऐसा साधक, ऐसा संन्यासी, सदा आनंद को पाता रहता है। मन के तल पर है सुख और दुख, […]Read More
ओशो- मनोवैज्ञानिक कहते हैं : जिस दिन से तुम अतीत के संबंध में ज्यादा विचार करने लगो, समझ लेना कि बूढ़े हो गए। बुढ़ापे की यह मनोवैज्ञानिक परिभाषा है। जिस दिन से तुम्हें अतीत के ज्यादा विचार आने लगें और तुम पीछे की बातें करने लगो, कि वे दिन, अब क्या रखा है, अब दुनिया […]Read More