ओशो- देह शूद्र है। क्यों? क्योंकि देह में कुछ और है भी नहीं। देह की दौड़ कितनी है? खा लो, पी लो, भोग कर लो, सो जाओ। जीओ और मर जाओ। देह की दौड़ कितनी है! शूद्र की सीमा है यही। जो देह में जीता है, वह शूद्र है। शूद्र का अर्थ हुआ. देह के […]Read More
ओशो- हमने जीवन को दो हिस्सों में तोड़ लिया है, शरीर और आत्मा के। इसलिए समाज दो हिस्सों में टूट गयाः गृहस्थ और संन्यासी। संन्यासी वह है, जो आत्मा-आत्मा की बातें कर रहा है; गृहस्थ वह है, जो शरीर-शरीर की बातें कर रहा है। मनुष्य को तोड़ लिया है शरीर और आत्मा में। और समाज […]Read More
ओशो- आंख नहीं देखती है; आंख के भीतर से तुम्हारी दृष्टि देखती है। इसलिए कभी कभी ऐसा हो जाता है कि तुम खुली आंख बैठे हो, कोई रास्ते से गुजरता है और दिखाई नहीं पड़ता; क्योंकि तुम्हारी दृष्टि कहीं और थी; तुम किसी और सपने में खोए थे भीतर; तुम कुछ और सोच रहे थे। […]Read More
ओशो- हम ऊपर देखने के आदी ही नहीं हैं। हमारी आंखें जमीन में गड़ गई हैं। हमारी आंखें जमीन की कशिश से बंध गई हैं। ऊपर उठाने में हमें आंखों को बड़ी पीड़ा होती है। क्षुद्र को देखकर हम बड़े प्रसन्न होते हैं। उससे हमारी बड़ी सजातीयता है। श्रेष्ठ को देखकर हम बड़े बेचैन होते […]Read More
ओशो- लुकमान की एक छोटी कहानी है। और लुकमान ने कहानियों में ही अपना संदेश दिया है। ईसप की प्रसिद्ध कहानियां आधे से ज्यादा लुकमान की ही कहानियां हैं, जिन्हें ईसप ने फिर से प्रस्तुत किया है।लुकमान कहता है, एक मक्खी एक हाथी के ऊपर बैठ गयी। हाथी को पता न चला मक्खी कब बैठी। […]Read More
ओशो- ममता शब्द बना है मम से। मम यानी मेरा, ममता यानी मेरेपन का भाव। और ध्यान रहे, अधिकतर लोग ममता का अर्थ प्रेम कर लेते हैं। प्रेम और ममता बड़े विपरीत हैं। प्रेम में मेरेपन का भाव होता ही नहीं। क्योंकि मेरेपन का भाव वस्तुओं से हो सकता है; व्यक्तियों से कैसे हो सकता […]Read More
ओशो- रुक्मणी कृष्ण की पत्नी है, लेकिन रुक्मणी का नाम कृष्ण के साथ अकसर लिया नहीं जाता–लिया ही नहीं जाता। सीता का नाम राम के साथ लिया जाता है। पार्वती का नाम शिव के साथ लिया जाता है। कृष्ण का नाम रुक्मणी के साथ और रुक्मणी का नाम कृष्ण के साथ नहीं लिया जाता। और […]Read More
तीर्थ : परम की गुह्म यात्रा ओशो- अल्कुफा (अरब का एक तीर्थ) के बाबत कुछ बातें खयाल में ले लें तो और तीर्थों का खयाल में आ जाएगा। जैसे अल्कुफा में नींद असंभव है, कोई आदमी सो नहीं सकता। तो आप पागल हो ही जाएंगे जब तक कि आपने जागरण का गहन प्रयोग न किया […]Read More
ओशो- तुम यहां किसी की भी अपेक्षाएं पूरी करने के लिए नहीं हो और कोई भी यहां तुम्हारी अपेक्षाएं पूरी करने के लिए नहीं हैं। दूसरों की अपेक्षाओं के कभी भी शिकार मत बनो और किसी दूसरे को अपनी अपेक्षाओं का शिकार मत बनाओ। यही है जिसे मैं निजता कहता हूं। अपनी निजता का सम्मान […]Read More
ओशो…एक रात एक चर्च में एक नीग्रो ने आकर दरवाजा खटखटाया। पादरी ने दरवाजा खोला और देखा कि कोई काला आदमी है। काले आदमी के लिए तो उस चर्च में प्रवेश का कोई इंतजाम न था। वह सफेद चमड़ी के लोगों का चर्च था। उसमें काली चमड़ी के लोगों के लिए कोई जगह न थी। […]Read More