ओशो- मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं। मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं-दि अपोजिट इज आलवेज दि अट्रैक्यान। और हर आदमी जिससे मोहित होता है, वह उसके विपरीत होता है। यह विपरीत का नियम जीवन के समस्त पहलुओं पर लागू होता है। पुरुष स्त्रियों में आकर्षित होते हैं, उनकी विपरीतता के कारण। स्त्रियां […]Read More
ओशो- उर्वशी थक जाती है इंद्र के सामने नाचते-नाचते और प्रार्थना करती है कि कुछ दिन की छुट्टी मिल जाए। मैं पृथ्वी पर जाना चाहती हूं। मैं किसी मिट्टी के बेटे से प्रेम करना चाहती हूं। देवताओं से प्रेम बहुत सुखद हो भी नहीं सकता। हवा हवा होंगे। मिट्टी तो है नहीं, ठोस तो कुछ […]Read More
बहुत समय बाद किसी मित्र से मिलने पर जो हर्ष होता है, उस हर्ष में लीन होओ ओशो- उस हर्ष में प्रवेश करो और उसके साथ एक हो जाओ। किसी भी हर्ष से काम चलेगा। यह एक उदाहरण है। ‘’बहुत समय बाद किसी मित्र से मिलने पर जो हर्ष होता है।‘’ तुम्हें अचानक कोई मित्र […]Read More
ओशो- यह बात सच है कि मनुष्य अगर गिरे तो पशुओं से बहुत नीचे गिर जाता है और मनुष्य अगर उठे तो देवताओं से बहुत ऊपर उठ जाता है। देवता भी बँधे हैं, जैसे पशु बँधे हैं। इसलिए भारत के मनीषियों ने एक अपूर्व बात कही है कि अगर देवताओं को भी मोक्ष चाहिए हो […]Read More
जीवन की अपनी व्यवस्था है, उसका अपना अनुशासन है “ओशो”
ओशो- अस्तित्व अनिश्चित है, असुरक्षित है, खतरनाक है। वह एक प्रवाह है —चीजें सरक रही हैं, बदल रही हैं। यह एक अपरिचित संसार है; परिचय पा लो उसका। थोड़ा साहस रखो और पीछे मत देखो, आगे देखो; और जल्दी ही अनिश्चितता स्वयं सौंदर्य बन जाएगी, असुरक्षा सुंदर हो उठेगी। वस्तुत: केवल असुरक्षा ही सुंदर होती […]Read More
ओशो- मन जब भी दो चीजों को तोड़ता है, तो दोनों के बीच विरोध देखता है। जैसे जीवन है। अगर जीवन को मन देखेगा, तो उसे जीवन में दो हिस्से दिखाई पड़ेंगे, जन्म और मृत्यु। और मन कैसे माने कि जन्म और मृत्यु एक ही हैं? बिलकुल उलटे हैं। एक कैसे हो सकते हैं? कहां […]Read More
ओशो– रूस के बहुत बड़े अध्यात्मविद् और मिस्टिक जॉर्ज गुरजिएफ ने अपनी आध्यात्मिक खोज— यात्रा के संस्मरण ‘मीटिंग्स विद दि रिमार्केबल मेन’ नामक पुस्तक में लिखे हैं। एक दरवेश फकीर से उनकी काफी चर्चा भोजन को चबाने के संबंध में तथा योग के प्राणायाम व आसनों के संबंध में हुई जिससे वे बड़े प्रभावित भी […]Read More
प्रश्न: एक बुद्ध के दृष्टिकोण में दान का क्या अर्थ है? ओशो: एक जाग्रत व्यक्ति की दृष्टि में दान का अर्थ पूरी तरह से अलग होगा, जैसा कि पारंपरिक कैथोलिक विचार में होता है। कैथोलिक विचार गरीबों को राहत प्रदान करने का है। परंतु, एक बुद्ध का विचार होगा कि दुनिया में गरीबी की कोई […]Read More
ओशो- शुभ कर्म जिसका सफल हो जाए, उसकी तो दुर्गति का सवाल ही नहीं है। लेकिन शुभ कर्म जिसका सफल भी न हो पाए, उसकी भी दुर्गति नहीं होती। इससे दूसरी बात भी आपको कह दूं, तो जल्दी खयाल में आ जाएगा। अशुभ कर्म जिसने किया, सफल न भी हो पाए, तो भी दुर्गति हो […]Read More
ओशो- आदमी के भीतर एक जाल है। उसी जाल से वह सारे जगत को बाहर से नापता-जोखता है। इसलिए जब आपको कोई आदमी चोर मालूम पड़े, तो एक बार सोचना फिर से कि उसके चोर मालूम पड़ने में आपके भीतर का चोर तो सहयोगी नहीं हो रहा! और जब कोई आदमी बेईमान मालूम पड़े, तो […]Read More