Alert chhattisgarh: आधुनिकता का दावा करते समाजों में जब जब व्यक्ति और समुदायों का मूल्यांकन उनके धर्म के आधार पर होने लगे तो यह प्रश्न उठना लाज़मी हो जाता है कि हम वास्तव में आगे की तरफ बढ़ रहे हैं या पक्षगामी हो रहे है. ये प्रसंग सदियों से इस इस मुल्क के बौद्धिकों को […]Read More
ओशो- एक सूफी कहानी तुमसे कहूं। एक आदमी जंगल गया। शिकारी था। किसी झाड़ के नीचे बैठा था थका-मांदा, पास ही एक खोपड़ी पड़ी थी किसी आदमी की। ऐसे ही, कभी-कभी हो जाता है न, तुम भी अपने स्नानगृह में अपने से बात करने लगते हो कि आईने के सामने खड़े होकर मुंह बिचकाने लगते […]Read More
ओशो- इजरायल में एक चिकित्सक ने एक बहुत अनूठा प्रयोग किया है। प्रयोग यह है, हैरान करने वाला प्रयोग है। उसे यह खयाल पकड़ा बच्चों का इलाज करते-करते कि बच्चों की अधिकतम बीमारियां मां-बाप की भोजन खिलाने की आग्रहपूर्ण वृत्ति से पैदा होती हैं। बच्चों का चिकित्सक है, तो उसने कुछ बच्चों पर प्रयोग करना […]Read More
प्रश्न :- कल आपने शूद्र और ब्राह्मण की परिभाषा की। कृपया समझाएं कि मन शूद्र है अथवा ब्राह्मण। ओशो :- देह शूद्र है। मन वैश्य है। आत्मा क्षत्रिय है। परमात्मा ब्राह्मण। इसलिए ब्रह्म परमात्मा का नाम है। ब्रह्म से ही ब्राह्मण बना है। देह शूद्र है। क्यों? क्योंकि देह में कुछ और है ही नहीं। […]Read More
ओशो– मुक्त होने की जब तक आकांक्षा है, तब तक मुक्ति संभव नहीं। खोपड़ी से मुक्त होने का खयाल भी खोपड़ी का ही है। मुक्त होने की जब तक आकांक्षा है, तब तक मुक्ति संभव नहीं। क्योंकि आकांक्षा मात्र ही, आकांक्षा की अभीप्सा मन का ही जाल और खेल है। मन संसार ही नहीं बनाता, […]Read More
ओशो- सुख-दुख के लिए जो क्रियाएं करता है व्यक्ति, ऋषि ने उसे ही कर्ता कहा है–दि डुअर; जो सुख-दुख के लिए क्रियाएं करता है–जो मांगता है कि सुख मुझे मिले और दुख मुझे न मिले, यह कर्ता है। लेकिन जो कहता है कि जो मिले, ठीक; न मिले, ठीक; दोनों में भेद ही नहीं करता, […]Read More
ओशो– प्रत्येक व्यक्ति अपने चारों ओर आशाओं का, इच्छाओं का एक जाल बुनता है। अगर आशाएं टूटती हैं, जाल टूटता है, इच्छाएं पूरी नहीं होतीं, तो वह समझता है कि परमात्मा नाखुश है, भाग्य साथ नहीं दे रहा है। लेकिन वह यह कभी नहीं सोचता कि मैंने जो जाल बुना है, वह जाल गलत है। […]Read More
ओशो- जो लोग कहते हैं कि मैं गीता, बाइबिल, कुरान आदि धर्मग्रंथों द्वारा प्रतिपादित धर्मों को नहीं मानता हूं…।कुरान बड़ी किताब है। उसमें हजारों बातें हैं। उसमें ऐसी व्यर्थ की बातें भी हैं कि एक आदमी की चार स्त्रियां होनी चाहिए। अब मैं कैसे राजी हो जाऊं? मोहम्मद ने नौ विवाह किए। मैं राजी नहीं […]Read More
ओशो– ममता शब्द बना है मम से। मम यानी मेरा, ममता यानी मेरेपन का भाव। और ध्यान रहे, अधिकतर लोग ममता का अर्थ प्रेम कर लेते हैं। प्रेम और ममता बड़े विपरीत हैं। प्रेम में मेरेपन का भाव होता ही नहीं। क्योंकि मेरेपन का भाव वस्तुओं से हो सकता है; व्यक्तियों से कैसे हो सकता […]Read More
ओशो– अगर हम एक ऐसे आदमी की कल्पना करें, जिसके पास बड़ा महल है, लेकिन सामान इतना है कि भीतर जाने का उपाय नहीं है। तो वो बाहर बरामदे में ही निवास करता है। हम सब भी वैसे ही आदमी हैं। मन तो इतना भरा है कि वहां आत्मा के रहने की जगह नहीं हो […]Read More