इतनी घृणा है खुद के साथ कि सत्तर प्रतिशत बीमारियां आदमी अपने को सजा देने के लिए विकसित कर रहा है “ओशो”
ओशो– बुद्ध निकलते हैं एक रास्ते से और एक आदमी बुद्ध को गालियां देता है। तो बुद्ध के साथ एक भिक्षु है आनंद, वह कहता है कि आप मुझे आज्ञा दें, तो मैं इस आदमी को ठीक कर दूं। तो बुद्ध बहुत हंसते हैं। तो आनंद पूछता है, आप हंसते क्यों हैं? वह आदमी भी पूछता है, आप हंसते क्यों हैं? तो बुद्ध कहते हैं, मैं आनंद की बात सुनकर हंसता हूं। यह भी बड़ा पागल है। दूसरे की गलती के लिए खुद को सजा देना चाहता है। बुद्ध कहते हैं, दूसरे की गलती के लिए खुद को सजा देना चाहता है। आनंद ने कहा, मैं समझा नहीं! बुद्ध ने कहा, गाली उसने दी, क्रोध तू करना चाहता है! सजा तू भोगेगा। क्रोध तो अपने में आग लगाना है।
हम सब क्रोध को भलीभांति जानते हैं। क्रोध से बड़ी सजा क्या हो सकती है? लेकिन दूसरा गाली देता है, हम क्रोध करते हैं। बुद्ध कहते हैं, दूसरे की गलती के लिए खुद को सजा!
हम सब वही कर रहे हैं। मित्रता अपने साथ कोई भी नहीं है। और अपने साथ मित्रता इसलिए भी कठिन है कि दूसरा तो विजिबल है, दूसरा तो दिखाई पड़ता है; हाथ फैलाया जा सकता है दोस्ती का। लेकिन खुद तो बहुत इनविजिबल, अदृश्य सत्ता है; वहां तो हाथ फैलाने का भी उपाय नहीं है। दूसरे मित्र को तो कुछ भेंट दी जा सकती है, कुछ प्रशंसा की जा सकती है, कुछ दोस्ती के रास्ते बनाए जा सकते हैं, कुछ सेवा की जा सकती है। खुद के साथ तो कोई भी रास्ते नहीं हैं। खुद के साथ तो शुद्ध मैत्री का भाव ही! और कोई रास्ता नहीं है, और कोई सेतु नहीं है। अगर हो समझ, अंडरस्टैंडिंग ही सिर्फ सेतु बनेगी। उतनी समझ हममें नहीं है।
हम सब नासमझी में जीते हैं। लेकिन नासमझी में इतनी अकड़ से जीते हैं कि समझ को आने का दरवाजा भी खुला नहीं छोड़ते। असल में नासमझ लोगों से ज्यादा स्वयं को समझदार समझने वाले लोग नहीं होते! और जिसने अपने को समझा कि बहुत समझदार हैं, समझना कि उसने द्वार बंद कर लिए। अगर समझदारी उसके दरवाजे पर दस्तक भी दे, तो वह दरवाजा खोलने वाला नहीं है। वह खुद ही समझदार है!
हमारी समझदारी का सबसे गलत जो आधार है, वह यह है कि हम अपने को प्रेम करते ही हैं। यह बिलकुल झूठ है। अगर हम अपने को प्रेम करते होते, तो दुनिया की यह हालत नहीं हो सकती थी, जैसी हालत है। अगर हम अपने को प्रेम करते होते, तो आदमी पागल न होते, आत्महत्याएं न करते। अगर हम अपने को प्रेम करते होते, तो दुनिया में इतना मानसिक रोग न होता।
चिकित्सक कहते हैं कि इस समय कोई सत्तर प्रतिशत रोग मानसिक हैं। वे अपने को घृणा करने से पैदा हुए रोग हैं। हम सब अपने को घृणा करते हैं। हजार तरह से अपने को सताते हैं। सताने के नए-नए ढंग ईजाद करते हैं! अपने को दुख और पीड़ा देने की भी नई-नई व्यवस्थाएं खोजते हैं। यद्यपि हम सबके पीछे बहुत तर्क इंतजाम कर लेते हैं।
यह तो चिकित्सक कहते हैं कि सत्तर प्रतिशत बीमारियां आदमी अपने को सजा देने के लिए विकसित कर रहा है। लेकिन मनस-चिकित्सक कहते हैं कि यह आंकड़ा छोटा है अभी; अंडरएस्टिमेशन है। असली आंकड़ा और बड़ा है। और अगर आंकड़ा किसी दिन ठीक गया, तो निन्यानबे प्रतिशत बीमारियां मनुष्य अपने को सजा देने के लिए ईजाद करता है।
इतनी घृणा है खुद के साथ! वह हमारे हर कृत्य में प्रकट होती है। हर कृत्य में! जो भी हम करते हैं–एक बात ध्यान में रख लेना, तो कसौटी आपके पास हो जाएगी–जो भी आप करते हैं, करते वक्त सोच लेना, इससे मुझे सुख मिलेगा या दुख? अगर आपको दिखता हो, दुख मिलेगा और फिर भी आप करने को तैयार हैं, तो फिर आप समझ लेना कि अपने को घृणा करते हैं। और क्या कसौटी हो सकती है?
☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
गीता-दर्शन – भाग 3
मालकियत की घोषणा(अध्याय-6) प्रवचन-तीसरा
*🙏प्रेम निमंत्रण*🙏भिलाई (छग.)🙏
🌹 *तीन दिवसीय ओशो ध्यान साधना शिविर*
🌹नव वर्ष स्वागत महोत्सव 🌹🌹
*दिनांक 29 से 1 जनवरी 2024 प्रात:तक. शुभारंभ 28 दिसम्बर संध्या 6 बजे से 1 जनवरी 2024 प्रात:ध्यान के साथ समापन🌹🌹 *
🌹👉*स्थान – “ओशो उपवन ” उम्दा रोड,भिलाई – 3 छग.
*🌹👉संचालन -स्वामी ओमप्रकाश भारती जी (पुणे)*8412957612*
संपर्क-
🌹स्वा.जगमोहन भारती -9131160509
🌹स्वामी प्रेम जलाल – 9893093404
🌹स्वामी देव तिरोहित- 9907856201। 🌹मा प्रेम सुगंधा – 7987848294🌹मा परी अभी 7350695366🌹🌹 *सहयोग राशि -1000/- 👉(प्रति व्यक्ति डोरमेट्रि नॉन अटेच ) 👉1500/-4 व्यक्ति शैरिंग अटेच रूम। 👉2000/-3 व्यक्ति शेयरिंग अटेच रूम 👉2500/- 2 व्यक्ति शेयरिंग अटेच रूम। प्रति व्यक्ति इनक्लूडिंग आल 🍉🍅🍔☕* 👉 रूम मे स्थान सिमित हे,अग्रिम बुकिंग मात्र 500/-भेज कर अपना स्थान सुनिश्चित कर व्यवस्था मे सहयोग करे 🙏🌹🌹🌹अहोभाव धन्यवाद। 🌹शिविर स्थल पर ओशो साहित्य,पुस्तकें,pendrive,फोटो , रोब, आदि उप्लबध रहेंगे,सम्पर्क-ओशो अर्हत ध्यान केन्द्र,छिन्दवाडा mo. 9827449131 ध्यान आलोक (रवि )🌹🌹संक्षिप्त परिचय🌹 स्वामी ओम प्रकाश भारती जी 🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹स्वामी ओमप्रकाश भारती की खोज ओशो की खोज है। बचपन से ही उनके मन में सद्गुरु की तलाश, सत्य की खोज, स्वयं को जानने की खोज थी। बहुत स्थानों पर भटकने के बाद उनकी यह प्यास सद्गुरु ओशो ने मार्च 1974 में क्रान्ति बीज(ओशो द्वारा अपने शिष्यों को लिखे गये पत्रों के संकलन) पुस्तक के माध्यम से पूरी की। सिर्फ शिष्य ही नहीं गुरु भी शिष्य को ढूंढता है, ठीक इसी भाँति ओशो ने ओमप्रकाश जी को ढूंढ लिया और 20 मार्च 1977 को पुणे में ओशो के द्वारा ही सन्यास दीक्षा घटित हुई, उसके पश्चात आश्रम की ही छत्र छाया में छः साल सक्रिय ध्यान और अन्य ध्यान का प्रयोगों किया। स्वामी ओमप्रकाश जी ने सन् 1983 से सन् 2000 तक आश्रम में कार्य करते हुए ध्यान और सत्संग का लाभ लिया। स्वामी ओमप्रकाश भारती जी को ओशो द्वारा कराये गए सभी ध्यानों का अनुभव है। अपने इसी अनुभव को जारी रखते हुए सन् 2003 से उन्होंने संचालक बन कर ओशो के ध्यान शिविरों को संचालित किया और अभी भी कर रहे हैं। स्वामी ओमप्रकाश जी ने अब तक दो सौ से भी ज्यादा ओशो ध्यान शिविरों का संचालन किया है और एक हजार से अधिक मित्रों ने सन्यास दीक्षा ली है। ओशो से मिले हुए अनुभव को और उनसे मिली हुई उर्जा जो निरंतर हम सभी के साथ बँट रही हे।🌹🙏🙏🙏🌹🙏🙏🌹