सिग्मंड फ्रायड की सर्वाधिक महत्वपूर्ण खोज डिस्कवरी आफ दि अनकांशस, आदमी का मन “ओशो”
ओशो– सिग्मंड फ्रायड की जो सर्वाधिक महत्वपूर्ण खोज है, वह खोज है, डिस्कवरी आफ दि अनकांशस, आदमी के भीतर जो अचेतन है, उसकी खोज। आदमी का मन, जैसा हम जानते हैं उसे, वह केवल ऊपर की पर्त है, चेतन मन, कांशस माइंड है। उससे गहरी पर्त, उससे नीचे दबा हुआ मन, जो कि ज्यादा महत्वपूर्ण, ज्यादा प्रभावशाली और जड़ों में छिपा है, और जिससे हम चालित होते हैं जीवनभर, जिससे हम चलते, उठते, बैठते और काम करते हैं, वह गहरा मन अनकांशस है, अचेतन है। फ्रायड ने उस अचेतन के महाद्वीप को खोजा है।
यह खोज बड़ी आकस्मिक थी। फ्रायड ऐसे तो खोज कर रहा था काम-विकारों के संबंध में, सेक्स परवरशस के संबंध में आदमी के चित्त में जितनी विक्षिप्तताएं पैदा होती हैं, उनमें से कोई नब्बे प्रतिशत उसकी कामवासना की विकृतियां हैं। तो फ्रायड तो चिकित्सक की भांति, आदमी के काम-विकार क्यों पैदा होते हैं, इसकी खोज में लगा था।
इस खोज में उतरते -उतरते अचानक ही उसे मनुष्य के मन के नीचे छिपे हुए मन का पता चला। वह मन इस मन से बहुत बडा है, जिसे हम समझते हैं, मैं हूं। जैसे कि हम एक बर्फ की चट्टान पानी में डाल दें, तो नौ हिस्सा चट्टान नीचे डूब जाती है, एक हिस्सा ऊपर रहती है। फ्रायड ने अनुभव किया कि जिस मन को हम अपना सब कुछ समझकर बैठे -हुए हैं, वह एक हिस्सा है, और नौ हिस्सा हमारा असली मन नीचे अंधेरे में डूबा हुआ है।
फ्रायड के शिष्य और बाद में फ्रायड से अलग और विरोध में हो गए कार्ल गुस्ताव जुंग ने इस अनकांशस, इस अचेतन मन की और भी गहरी खोज की। और उसे पता चला कि अचेतन के नीचे और भी गहरा अचेतन छिपा है, जिसे उसने कलेक्टिव अनकांशस, समूह-अचेतन का नाम दिया। उसने कहा कि व्यक्ति के मन के नीचे एक मन है, जो अचेतन है। अचेतन के नीचे भी और गहरा मन मालूम पड़ता है, जो कि समूह- अचेतन है। सबका अचेतन जुड़ा हुआ है।
यह मैं इसलिए कह रहा हूं ताकि आपको दक्षिणायण की पूरी की पूरी धारणा वैज्ञानिक रूप से समझ में आ जाए। फ्रायड और कं जो काम किए हैं, वह दक्षिणायण के पथ पर है।
अगर हम मनुष्य के अचेतन में प्रवेश करेंगे, तो हम नीचे उतरते जाते हैं। लेकिन मनुष्य के अचेतन की भांति ही मनुष्य का अति-चेतन, सुपर-कांशस माइंड भी है। यदि हम ऊपर की तरफ यात्रा करें, तो सुपर-कांशस, अति-चेतन मन की यात्रा शुरू होती है।
अब हम ऐसा समझ लें कि जिस मन से हम परिचित हैं, वह मन है चेतन; उससे नीचे उतरें, तो अचेतन; और भी नीचे उतरें, तो समूह- अचेतन। ऊपर बढ़े, तो अति-चेतन; और ऊपर बढ़े, तो ब्रह्म-चेतन।
उत्तरायण का पथ अभी भी वैज्ञानिक रूप से आविष्कृत नहीं हुआ है। दक्षिणायण का पथ वैज्ञानिक रूप से भी आविष्कृत हो गया है। और अगर दक्षिणायण का पथ ही आविष्कृत रहा, तो पश्चिम अपना आत्मघात कर लेगा। क्योंकि नीचे उतरने का पता चल जाए और ऊपर चढ़ने का पता न हो और ऐसा अनुभव में आने लगे कि नीचे उतरना ही स्वाभाविक है, तो मनुष्य जाति की सारी संभावनाएं विलुप्त हो जाएंगी।
☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
गीता-दर्शन – भाग 4
तत्वज्ञ—कर्मकांड के पार
अध्याय—8 – प्रवचन—ग्यारहवां
*🙏प्रेम निमंत्रण*🙏भिलाई (छग.)🙏
🌹 *तीन दिवसीय ओशो ध्यान साधना शिविर*🌹नव वर्ष स्वागत महोत्सव 🌹🌹
*दिनांक 29 से 1 जनवरी 2024 प्रात:तक. शुभारंभ 28 दिसम्बर संध्या 6 बजे से 1 जनवरी 2024 प्रात:ध्यान के साथ समापन🌹🌹 *
🌹👉*स्थान – “ओशो उपवन ” उम्दा रोड,भिलाई – 3 छग.
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संपर्क-
🌹स्वा.जगमोहन भारती -9131160509
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