संबंध तो उत्पन्न होता है और विनष्ट होता है, सिर्फ स्वभाव उत्पन्न नहीं होता और विनष्ट नहीं होता, उत्पत्ति और विनाश से रहित नित्य चैतन्य को ज्ञान कहते हैं “ओशो”
ओशो– मैं आपको प्रेम करता हूं कल नहीं करता था, आज करता हूं। जन्मा प्रेम। और बड़ा पागलपन तब पैदा होता है जब हम किसी जन्मी हुई चीज को शाश्वत बनाना चाहते हैं। तब पागलपन हो जाता है। जन्मी चीज तो मरेगी ही.. जिस दिन जन्मी उसी दिन जान लेना था कि मरेगी। जिस दिन हम जन्म के बैंड-बाजे बजाते हैं, उसी दिन अरथी उठने की तैयारी हो जाती है। समय का फासला थोड़ा लगेगा। फूल खिल रहा है.. तभी उसके गिरने की शुरुआत हो गई; झड्ने की शुरुआत हो गई।
जन्म के साथ तो मृत्यु बंधी है; जन्म है एक छोर, मृत्यु है दूसरा छोर। तो जो प्रेम जन्मता है वह मरेगा भी; और जिसकी उत्पत्ति होगी उसका विनाश भी हो जाएगा। जो ज्ञान पैदा होता है… और जान पैदा होता है। आख खोली, सामने फूल खिला हुआ दिखाई पड़ा–ज्ञान हुआ कि फूल है, सुंदर है, सुगंधित है–यह जन्म हुआ। यह ज्ञान भी मरेगा। यह फूल भी मरेगा, यह ज्ञान भी मरेगा।
ब्रह्म तो ऐसा ज्ञान होगा, जो न जन्मता है और न मरता है। इसका अर्थ यह हुआ कि वह ज्ञान किसी वस्तु के संदर्भ में नहीं होगा, वह ज्ञान स्वभाव ही होगा; वह सदा से ही होगा।
‘जो उत्पत्ति को नहीं, विनाश को नहीं उपलब्ध होता, उस नित्य चैतन्य को ज्ञान कहा है।’
तो यहां ज्ञान का संबंध चैतन्य से है, जानने से नहीं; क्योंकि जानी तो सदा कोई चीज जाती है। यहां ज्ञान से हम अर्थ लें चैतन्य का, बुद्धत्व का।
‘ज्ञान’ शब्द तो हमारा विकृत हो गया है, क्योंकि हम उसे सदा किसी और चीज के जानने से बांधते हैं। अगर आपके बाबत कोई कहे कि बहुत बड़े ज्ञानी हैं तो कोई फौरन पूछेगा. किस बात के? अगर आप कहें, नहीं किसी बात के नहीं हैं, बस इतनी हैं। तो कोई भरोसा नहीं करेगा कि यह क्या मतलब हुआ? क्या जानते हैं? चिकित्साशास्त्र के ज्ञानी हैं कि अर्थशास्त्र के ज्ञानी हैं कि दर्शनशास्त्र के ज्ञानी हैं कि धर्मशास्त्र के ज्ञानी हैं? आप कहें कि नहीं, वे बस ज्ञानी हैं, तो बात बिलकुल अर्थहीन मालूम पड़ेगी, क्योंकि ज्ञान सदा हम किसी चीज का बांधते हैं; किसी से जोडते हैं ज्ञान को।
इस ज्ञान से ब्रह्म को दी गई परिभाषा वाले ज्ञान का संबंध नहीं है। वह ज्ञान है उत्पत्ति- विनाश से रहित नित्य चैतन्य। ‘ चैतन्य ‘ ठीक शब्द है उस ज्ञान के लिए… अवेयरनेस, या उससे भी बेहतर होगा. अलर्टनेस; क्योंकि अवेयरनेस में भी ऐसा लगता है किसी चीज के बाबत हम बंधे हुए हैं। अलर्टनेस… सिर्फ बोधमात्र। दीया जल रहा है, कोई चीज प्रकाशित नहीं हो रही है; सिर्फ दीया जल रहा है– आस-पास कुछ भी नहीं है जिस पर प्रकाश पड़े। प्रकाशित कुछ भी नहीं हो रहा, बस प्रकाश है। उदाहरण के लिए कह रहा हूँ ताकि खयाल में आ जाए कि उस ज्ञान का क्या अर्थ है।
” मिट्टी से बनी हुई वस्तुओं में मिट्टी की तरह, सोने से बनी हुई वस्तुओं में सोने की तरह और सूत से बनी हुई वस्तुओं में सूत की तरह समस्त सृष्टि में पूर्ण और व्यापक बना हुआ जो चैतन्य है, वह अनंत कहलाता है। ”
और यह जो चैतन्य है, यह व्यक्ति की सीमा में आबद्ध नहीं है। हम यहां बैठे हैं इतने लोग; हमारा इतना भिन्न- भिन्न होना हमारे शरीरों के कारण है, हमारे चैतन्य के कारण नहीं। एक कमरे में हम हजार दीये जला दें तो हजार दीयों में जो फर्क होगा वह मिट्टी के दीये, तेल, बाती के कारण होगा–लेकिन कमरे का जो प्रकाश है वह तो एक होगा। हजार दीये हमने जलाए एक कमरे में–हर दीया अलग है, क्योंकि मिट्टी का ढंग, आकार अलग है; हर दीये का तेल अलग है, हर दीये की बाती अलग है, लेकिन क्या कमरे में आप फर्क कर पाएंगे कि कौन से दीये का प्रकाश कौन सा है? प्रकाश तो एक होगा, व्यापक होगा– दीये अलग, प्रकाश एक होगा।
☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
सर्वसार-उपनिषद–प्रवचन-12
*🙏प्रेम निमंत्रण*🙏भिलाई (छग.)🙏
🌹 *तीन दिवसीय ओशो ध्यान साधना शिविर*🌹नव वर्ष स्वागत महोत्सव 🌹🌹
*दिनांक 29 से 1 जनवरी 2024 प्रात:तक. शुभारंभ 28 दिसम्बर संध्या 6 बजे से 1 जनवरी 2024 प्रात:ध्यान के साथ समापन🌹🌹 *
🌹👉*स्थान – “ओशो उपवन ” उम्दा रोड,भिलाई – 3 छग.
*🌹👉संचालन -स्वामी ओमप्रकाश भारती जी (पुणे)*8412957612*
संपर्क-
🌹स्वा.जगमोहन भारती -9131160509
🌹स्वामी प्रेम जलाल – 9893093404
🌹स्वामी देव तिरोहित- 9907856201। 🌹मा प्रेम सुगंधा – 7987848294🌹मा परी अभी 7350695366🌹🌹 *सहयोग राशि -1000/- 👉(प्रति व्यक्ति डोरमेट्रि नॉन अटेच ) 👉1500/-4 व्यक्ति शैरिंग अटेच रूम। 👉2000/-3 व्यक्ति शेयरिंग अटेच रूम 👉2500/- 2 व्यक्ति शेयरिंग अटेच रूम। प्रति व्यक्ति इनक्लूडिंग आल 🍉🍅🍔☕* 👉 रूम मे स्थान सिमित हे,अग्रिम बुकिंग मात्र 500/-भेज कर अपना स्थान सुनिश्चित कर व्यवस्था मे सहयोग करे 🙏🌹🌹🌹अहोभाव धन्यवाद। 🌹शिविर स्थल पर ओशो साहित्य,पुस्तकें,pendrive,फोटो , रोब, आदि उप्लबध रहेंगे,सम्पर्क-ओशो अर्हत ध्यान केन्द्र,छिन्दवाडा mo. 9827449131 ध्यान आलोक (रवि )🌹🌹संक्षिप्त परिचय🌹 स्वामी ओम प्रकाश भारती जी 🌹🙏🙏🙏🙏🙏🙏🌹स्वामी ओमप्रकाश भारती की खोज ओशो की खोज है। बचपन से ही उनके मन में सद्गुरु की तलाश, सत्य की खोज, स्वयं को जानने की खोज थी। बहुत स्थानों पर भटकने के बाद उनकी यह प्यास सद्गुरु ओशो ने मार्च 1974 में क्रान्ति बीज(ओशो द्वारा अपने शिष्यों को लिखे गये पत्रों के संकलन) पुस्तक के माध्यम से पूरी की। सिर्फ शिष्य ही नहीं गुरु भी शिष्य को ढूंढता है, ठीक इसी भाँति ओशो ने ओमप्रकाश जी को ढूंढ लिया और 20 मार्च 1977 को पुणे में ओशो के द्वारा ही सन्यास दीक्षा घटित हुई, उसके पश्चात आश्रम की ही छत्र छाया में छः साल सक्रिय ध्यान और अन्य ध्यान का प्रयोगों किया। स्वामी ओमप्रकाश जी ने सन् 1983 से सन् 2000 तक आश्रम में कार्य करते हुए ध्यान और सत्संग का लाभ लिया। स्वामी ओमप्रकाश भारती जी को ओशो द्वारा कराये गए सभी ध्यानों का अनुभव है। अपने इसी अनुभव को जारी रखते हुए सन् 2003 से उन्होंने संचालक बन कर ओशो के ध्यान शिविरों को संचालित किया और अभी भी कर रहे हैं। स्वामी ओमप्रकाश जी ने अब तक दो सौ से भी ज्यादा ओशो ध्यान शिविरों का संचालन किया है और एक हजार से अधिक मित्रों ने सन्यास दीक्षा ली है। ओशो से मिले हुए अनुभव को और उनसे मिली हुई उर्जा जो निरंतर हम सभी के साथ बँट रही हे।🌹🙏🙏🙏🌹🙏🙏🌹