परमात्मा और अस्तित्व संयोग नहीं है

 परमात्मा और अस्तित्व संयोग नहीं है

ओशो– पदार्थ इसलिए विनष्ट होता है कि पदार्थ डिविजिबल है, उसका विभाजन किया जा सकता है। हम एक पत्थर के दो टुकड़े कर सकते हैं। जो चीज भी विभाजित हो सकती है, उसके कितने ही टुकड़े किए जा सकते हैं, वह नष्ट हो जाएगी। जो चीज विभाजित होती है, उसका अर्थ है कि वह बहुत चीजों से मिलकर बनी है; संयोग है, कंपाउंड है।

परमात्मा संयोग नहीं है; अस्तित्व संयोग नहीं है। अस्तित्व इकट्ठा है, एक है; उसमें कोई खंड नहीं हैं। इसलिए ब्रह्म को अखंड कहा है। उसके टुकड़े नहीं हो सकते। जिस चीज के टुकड़े नहीं हो सकते, उसका विनाश नहीं हो सकता, क्योंकि विनाश की प्रक्रिया में खंडित होना जरूरी हिस्सा है।

किस चीज का खंड नहीं हो सकता? जिसकी कोई सीमा-रेखा न हो, उसका खंड नहीं हो सकता। जिसकी सीमा-रेखा हो, उसका खंड हो सकता है। वह कितनी ही छोटी हो, कितनी ही बड़ी हो, जिसकी सीमा है, उसके हम दो हिस्से कर सकते हैं। लेकिन जिसकी कोई सीमा नहीं है, उसके हम दो हिस्से नहीं कर सकते।

अस्तित्व असीम है और पदार्थ सदा सीमित है। इसलिए पदार्थ खंडन को उपलब्ध हो सकता है। खंडन से विनाश हो जाता है।

फिर जिस चीज को हम बना सकते हैं, वह मिटेगी। सिर्फ एक चीज है, जिसे हम नहीं बना सकते हैं, और वह परमात्मा है। बाकी सब चीजें हम बना सकते हैं। ऐसी कौन-सी चीज है, जो हम नहीं बना सकते? सब बना सकते हैं। अस्तित्व भर नहीं बना सकते हैं। जिसे हम बना सकते हैं, वह मिट जाएगा। और हम बना सकते हैं, ऐसा नहीं, प्रकृति भी जिसे बना सकती है, वह मिट जाएगा। जो भी कंस्ट्रक्ट हो सकता है, वह डिस्ट्रक्ट हो सकता है। जिसको हम बना ही नहीं सकते, वही केवल विनाश को उपलब्ध नहीं हो सकता है।

हमारा अनबनाया क्या है? अगर उसे हम खोज लें, तो वही ब्रह्म है। और जो भी बन सकता है, और बनाया जा सकता है, और बनाया जा रहा है–चाहे आदमी बनाए, चाहे प्रकृति बनाए–वह सब पदार्थ है।

तो कृष्ण कहते हैं, उत्पत्ति और विनाश धर्म वाले सब पदार्थ अधिभूत हैं, वे भौतिक हैं, फिजिकल हैं। और पुरुष अधिदैव है।

यह पुरुष कौन है? इस पदार्थ के बीच में जो जीता है और पदार्थ के प्रति होश से भर जाता है, उसे कृष्ण पुरुष कहते हैं।

पदार्थ को स्वयं का कोई बोध नहीं है। पत्थर पड़ा है आपके द्वार पर, तो पत्थर को कोई पता नहीं कि वह है। और पत्थर को यह भी पता नहीं कि आप भी हैं। ये दोनों बोध आपको हैं। पत्थर है, यह भी आपका बोध है; और आप हैं, पत्थर से भिन्न, यह भी आपका बोध है।

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गीता-दर्शन – भाग 4
मृत्यु-क्षण में हार्दिक प्रभु-स्मरण
अध्याय—8 (प्रवचन—दूसरा)