जिन लोगों के जीवन में भी तुम्हें प्रफुल्लता दिखाई पड़ती हो, तुम फौरन समझ जाना कि वे कोई मंदिर बना रहे हैं “ओशो”

 जिन लोगों के जीवन में भी तुम्हें प्रफुल्लता दिखाई पड़ती हो, तुम फौरन समझ जाना कि वे कोई मंदिर बना रहे हैं “ओशो”

ओशो- …. ...”कहीं एक मंदिर बन रहा था। तीन श्रमिक वहां धूप में बैठकर पत्थर तोड़ रहे थे। एक राहगीर वहां से गुजर रहा था। बारी-बारी से उसने श्रमिकों से पूछा :’क्या कर रहे हो?’
एक से पूछा। वह बोला :’पत्थर तोड़ रहा हूँ।’ उसके कहने में बड़ी पीड़ा थी और स्वर भी भारी था।
दूसरे से पूछा। वह बोला :’आजीविका कमा रहा हूँ।’ वह दुखी तो नहीं था ;लेकिन उसकी उदासी कम भारी नहीं थी।अजनबी तब तीसरे श्रमिक के पास गया और उससे भी वही सवाल पूछा। वह व्यक्ति गा रहा था, उसकी आँखों में चमक थी और वह आनंदमग्न था। गीत रोककर उसने कहा :’मैं मंदिर बना रहा हूँ।’ और फिर वह गीत गुनगुनाने लगा।”
जिन लोगों के जीवन में भी तुम्हें प्रफुल्लता दिखाई पड़ती हो, तुम फौरन समझ जाना कि वे कोई मंदिर बना रहे हैं। चाहे वह मंदिर सच हो या कि झूठ, यह सवाल नहीं है। कौन-सा मंदिर सच है।लेकिन जिस आदमी को भी तुम प्रसन्न देखो, प्रफुल्ल देखो, समझ लेना कि वह कोई मंदिर बना रहा है। वह किसी ऐसे कृत्य में लगा है, जो उससे बड़ा है। राष्ट्र की सेवा कर रहा है, कि समाजवाद ला रहा है, कि स्वतंत्रता का अभियान चला रहा है, कि शहीद होने की तैयारी किए बैठा है, कि गरीबी मिटाकर रहेगा। तुम पाओगे कि उसकी आंखों में एक चमक है, एक प्रफुल्लता है।

भगत सिंह सूली पर भी इतने प्रसन्न हैं, जितने तुम दुकान पर नहीं हो। और वैज्ञानिक कहते हैं कि शहीदों का वजन बढ़ जाता है – सूली के वक्त, जो कि बड़ी अद्भुत घटना है। भगत सिंह का भी एक पौंड वजन बढ़ गया। एक दिन पहले वजन और है। सूली के ठीक घड़ी भर पहले वजन और हो गया। सूली पर वे इतने प्रफुल्लित हो गए कि एक पौंड वजन बढ़ गया। कुछ खाया-पिया नहीं है अभी। पानी भी नहीं पिया है। वजन बढ़ने का कोई भौतिक आधार नहीं है। लेकिन जब कोई बहुत प्रफुल्लित होता है, तो जैसे चारों तरफ जो ऊर्जा से भरा हुआ विराट आकाश है, उससे ‘कुछ’ उसे मिल जाता है। वह भूखा भी प्रफुल्लित होता है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३