आलसी शासन: बुराई कभी इससे ज्यादा बुराई नहीं होती जब तुम उसे भलाई के नाम में करते हो “ओशो”
ओशो- शासन से बड़ा अपराधी संसार में कोई भी नहीं। क्योंकि जब तुम अपराध को न्याय के नाम पर करते हो तब करने का मजा ही और हो जाता है। बड़े से बड़े अपराधी को भी पीड़ा अनुभव होती है। उसका भी अंतःकरण कभी उसे कहता है, चोट करता है; उसके अंतःकरण में भी कभी आवाज उठती है कि तू जो कर रहा है वह गलत है। लेकिन अदालतों के न्यायाधीशों के मन में यह कभी सवाल नहीं उठता। उनका गलत भी सही है; वे जो बुरा कर रहे हैं वह भी ठीक है। क्योंकि वे न्याय के नाम पर कर रहे हैं; सत्य, शासन, सुव्यवस्था के नाम पर कर रहे हैं।
एक बात ठीक से समझ लेना कि बुराई कभी इससे ज्यादा बुराई नहीं होती जब तुम उसे भलाई के नाम में करते हो। क्योंकि भलाई का आवरण उसे छिपा लेता है। भलाई के आवरण में बुराई जितनी जहरीली हो जाती है उतनी जहरीली कभी भी नहीं होती। क्योंकि तुम जहर के ऊपर शक्कर चढ़ा लेते हो। कंठ में उतर जाना बड़ा आसान हो जाता है। लेकिन जहर पर तुम शक्कर भी चढ़ा लो, इससे जहर अमृत नहीं हो जाता।
दुनिया का इतिहास दो तरह के लुटेरों से भरा है। एक तो वे लुटेरे हैं जो समाज के विपरीत हैं; वे डाकू हैं जो समाज के विपरीत हैं। और एक वे लुटेरे हैं जो समाज के अनुकूल हैं। वे लुटेरे शासन की सीढ़ियां चढ़ जाते हैं। वे अपराध भी करते हैं गहन, तो भी धर्म के नाम पर करते हैं। वे तुम्हें मारते भी हैं, तो तुम्हारे हित में और तुम्हारे मंगल में। वे तुम पर गोली भी चलाते हैं, तुम्हारी छाती भी बेध देते हैं, वे तुम्हारी आत्मा को भी कुचल डालते हैं जूतों के तले, तो भी तुम्हारे उत्कर्ष के लिए।
इसलिए लाओत्से जो कहता है वह तुम्हें बहुत हैरानी का मालूम पड़ेगा। लेकिन वह सत्य है।
लाओत्से कहता है, “शासन जब आलसी और सुस्त होता है, तब उसकी प्रजा निष्कलुष होती है।’
यह तुम भरोसा ही न करोगे कि कोई संत ऐसी बात कहेगा!
“व्हेन दि गवर्नमेंट इज़ लेजी एंड डल, इट्स पीपुल आर अनस्पॉइल्ड।’
क्या मतलब है? शासन सुस्त, आलसी? तुम तो सभी चाहते हो कि शासन आलसी है, सुस्त है, उसे सजग होना चाहिए, चुस्त होना चाहिए, कर्मठ होना चाहिए। तुम तो सोचते हो कि समाज में इतनी बुराई है, क्योंकि शासन आलसी है। और लाओत्से तुमसे ठीक उलटा देखता है। और लाओत्से के पास तुमसे बहुत दूर देखने वाली आंखें हैं। वह तुमसे बहुत गहरे देखता है। लाओत्से कहता है, शासन जब आलसी और सुस्त होता है तब लोग निर्दोष होते हैं। क्या मतलब है? इसे बहुत गहरे में जाकर समझना पड़े।
आलस्य भी कभी-कभी बड़ा गरिमावान होता है, और सुस्ती में भी गुण है। एक बात तो तुम ध्यान रख लो कि दुनिया में आलसी लोगों ने कभी भी कुछ बहुत बुरा नहीं किया है। तुम कितने ही आलसियों को गाली दो, लेकिन आलसियों के ऊपर कोई बड़ा अपराध नहीं है। क्योंकि अपराध करने के लिए भी आलस्य तो तोड़ना ही पड़ेगा। दुनिया में जितना उत्पात-उपद्रव है वह कर्मठ, जिनमें से कुछ को तुम कर्मयोगी भी कहते हो, उन्हीं के कारण है। आलसी तो उपद्रव करने की झंझट भी नहीं लेगा। उपद्रव करने में भी तो समृद्ध होना पड़ेगा, कुछ करना पड़ेगा। कौन आलसी तैमूरलंग हुआ है? कौन आलसी सिकंदर हुआ है कभी? कौन आलसी कभी हिटलर हुआ है?
नहीं, आलसी राजनीतिज्ञ हो ही नहीं सकता। आलसी बुराई करने जाएगा कैसे? उसे जाने और उठने की भी फुरसत नहीं है। आलसियों ने भला न किया हो, बुरा भी नहीं किया है। आलसी यहां इस समाज से निर्दोष गुजर गए हैं, बुरे-भले की कोई लकीर उनके ऊपर नहीं है।
नादिरशाह ने किसी ज्योतिषी को पूछा; नादिरशाह को नींद बहुत आती थी तो उसने ज्योतिषी को पूछा कि मुझे नींद बहुत आती है; और सभी धर्मग्रंथ कहते हैं कि आलस्य बुरा है, और मैं ज्यादा सोता हूं; इससे छूटने का उपाय क्या है? उस ज्योतिषी ने कहा कि धर्मग्रंथ की आप मत सुनें, वे किसी और के लिए कहते होंगे, आप तो चौबीस घंटे सोए रहें; यही आपके लिए सदगुण है।
नादिरशाह समझा नहीं। क्योंकि राजनीतिज्ञ आमतौर से प्रतिभा के धनी नहीं होते, आमतौर से उनकी बुद्धि में जंग लगा होता है। नहीं तो वे राजनीतिज्ञ ही क्यों हों?
नादिरशाह ने कहा, मैं समझा नहीं। तुम्हारा मतलब? उसने कहा, ज्यादा खोल कर मैं कहूंगा तो मुश्किल में पडूंगा। नादिरशाह जिद्द पकड़ गया कि मैं तुम्हें किसी मुश्किल में न डालूंगा, तुम बात पूरी खोल कर कहो। तो ज्योतिषी ने कहा कि बात सीधी-साफ है। आप जितनी देर जगेंगे उतनी ही बुराई होती है। जितना आप जागते हैं उतना ही उपद्रव होता है। आप चौबीस घंटे के लिए सो जाएं, आप सोए ही रहें, ताकि संसार में शांति रहे। आपका आलस्य बड़ा हितकर है। धर्मग्रंथ किसी और के लिए कहते होंगे; वे आपके लिए नहीं लिखे गए हैं।
वह ज्योतिषी यह कह रहा है कि सबसे बड़ी बात तो यह होती कि आप पैदा ही न होते। फिर दूसरी बड़ी बात यह होती कि आप पैदा ही हो गए हैं तो सोए रहें। और तीसरी बड़ी घटना जो आपके जीवन से घट सकती है वह यह कि आप जितने जल्दी मर जाएं उतना अच्छा।
इसलिए लाओत्से कहता है, शासन सुस्त हो, आलसी हो।
सुस्त का अर्थ ही यह है कि शासन प्रत्यक्ष न हो, परोक्ष हो। सुस्त का मतलब यह है कि शासन हर जगह तुम्हारे बीच में न आ जाए, कि तुम उठो तो शासन खड़ा है तुम्हारे साथ, तुम चलो तो शासन खड़ा है, तुम हिलो तो शासन में बंधे हो। कानून इतना न हो कि तुम कारागृह में बंध जाओ।
आज कारागृह में जो लोग हैं वे तुमसे ज्यादा स्वतंत्र हैं। दिखाई नहीं पड़ते, क्योंकि उनकी दीवारें बहुत स्थूल हैं। तुम्हारे पास पारदर्शी दीवारें हैं कानून की, इसलिए तुम सोचते हो तुम स्वतंत्र हो। हो तुम नहीं स्वतंत्र। तुम्हारे चारों तरफ कानून है। और सब तरफ से कानून तुम्हें घेरे हुए है। तुम जरा भी हिलने के लिए तुम्हें आजादी नहीं है। तुम बंधे हो। तुम्हारा कंठ घुट रहा है।
शासन के सुस्त होने का अर्थ है कि शासन तुम्हें थोड़ी सुविधा दे, स्वतंत्रता दे, और बीच में न आए। जब तक कि तुम किसी के लिए विधायक रूप से हानिकर न हो जाओ तब तक शासन को बीच में नहीं आना चाहिए। जब कि तुम किसी की दूसरे की स्वतंत्रता छीनने जा रहे हो तब शासन को बीच में आना चाहिए, लेकिन तुम्हारी स्वतंत्रता के बीच में नहीं आना चाहिए। जब तक तुम अपने में जी रहे हो तब तक शासन को ऐसा होना चाहिए जैसे वह है ही नहीं।
लेकिन तुम अगर रात रास्ते पर शांत भी खड़े हो आंख बंद करके तो पुलिसवाला आ जाएगा कि यहां क्यों खड़े हो? आंख क्यों बंद की? मतलब क्या है? क्या कर रहे हो यहां? तुम किसी का कोई नुकसान नहीं कर रहे हो, तुम आंखें बंद किए रास्ते के किनारे खड़े हो। इतनी भी स्वतंत्रता नहीं है; होने के लिए इतनी भी जगह नहीं बची है। कानून सब तरफ खड़ा है; कोने-कोने में, जगह-जगह, छिपा हुआ, गैर छिपा हुआ तुम्हारा पीछा कर रहा है।
लाओत्से कहता है, शासन सुस्त हो। उसका अर्थ है कि शासन कम से कम हो। दि लीस्ट गवर्नमेंट इज़ दि बेस्ट। जितना कम हो, न के बराबर हो, उतना ही शुभ है। क्योंकि उतने ही तुम स्वतंत्र होओगे। और उतने ही तुम स्वयं होने के लिए मुक्त होओगे। उतनी ही तुम्हारे व्यक्तित्व की गरिमा अक्षुण्ण रहेगी। क्रमशः
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३
ताओ उपनिषाद–प्रवचन–097