ध्यान धीरे-धीरे तुम्हारे सारे जीवन पर फैल जाना चाहिए इसलिए हर काम गैर-यांत्रिक होकर करो “ओशो”

 ध्यान धीरे-धीरे तुम्हारे सारे जीवन पर फैल जाना चाहिए इसलिए हर काम गैर-यांत्रिक होकर करो “ओशो”

प्रश्न : मैं ध्यान करना चाहता हूँ, लेकिन मैं हर समय व्यस्त रहता हूँ। मैं नहीं जानता कि कैसे ध्यान किया जाये या इसे करने के लिये कब समय निकाला जाये… ???

ओशो: दुनिया भर में ध्यान के सारे शिक्षक तुम्हें कहते रहे हैं कि तुम्हें ध्यान के लिये अलग से समय निकालना है। लेकिन ध्यान के प्रति मेरा दृष्टिकोण पूरी तरह अलग है। मैं तुम्हें नहीं कहता कि ध्यान के लिये तुम्हें अलग से समय निकालना है। ध्यान कुछ इस तरह का होना चाहिए कि यह तुम्हारे सारे दैनिक काम-काज के साथ भीतर चलता रहे।

मैं तुम्हारे लिये एक बहुत ही सरल ध्यान का सुझाव देता हूँ!जो कुछ भी तुम कर रहे हो — हो सकता है कि तुम जमीन में गड्ढा खोद रहे हो, या बगीचे में गुलाब की नई झाड़ियाँ लगा रहे हो, या दूकान पर काम कर रहे हो, या कोर्ट में कोई मुकदमा लड़ रहे हो — कोई भी कृत्य अगर पूरे होश के साथ किया जाये तो वह ध्यान बन जाता है।

शुरुआत में यह थोड़ा कठिन हो सकता है, तुम बार-बार भूल जाओगे; लेकिन हिम्मत मत हारो। यदि चौबीस घंटे में तुम चौबीस सेकंड के लिये भी होशपूर्ण हो सको, तो वह पर्याप्त है — क्योंकि इसका राज एक ही है। यदि तुम एक सेकंड के लिये भी होश से भर जाओ, तो तुम कुँजी जान गये, तुम्हें कौशल आ गया। अब यह बात सिर्फ समय की रही।

धीरे-धीरे बड़े अंतराल आयेंगे, जब तुम होशपूर्ण होओगे। तुम्हारे सारे कृत्य जारी रहेंगे; और सिर्फ जारी ही नहीं रहेंगे, तब यह और अधिक बेहतर हो जायेंगे — क्योंकि अब तुम इन्हें और अधिक होश के साथ कर रहे हो। अब इनकी गुणवत्ता बदल जायेगी, क्योंकि तुम होशपूर्ण हो, तुम पूरी तरह उपस्थित हो। तुम्हारी त्वरा बदल जायेगी, तुम्हारी समझ, तुम्हारी अंतर्दृष्टि बदल जायेगी, और जो भी कृत्य तुम कर रहे हो, उनमें स्वतः प्रसाद आने लगेगा।

ध्यान धीरे-धीरे तुम्हारे सारे जीवन पर फैल जाना चाहिए। जब तुम सोने जा रहे हो, तब भी। अपने बिस्तर पर पड़े हो — कुछ मिनट लगते हैं नींद के आने में। उन कुछ मिनटों में मौन के प्रति, अंधकार के प्रति और विश्रांत शरीर के प्रति सजग हो जाओ। जब नींद तुम पर उतरने लगे, तब होशपूर्ण बने रहो — उस समय तक जब तक तुम पूरी तरह से नींद में खो न जाओ। और तुम आश्चर्यचकित हो जाओगे कि यदि तुम उस आखिरी पल तक होशपूर्ण रहे जब नींद ने तुम्हें पकड़ लिया, तो सुबह पहला विचार फिर से होश का होगा।

जब तुम सोते हो, तब जो आखिरी विचार होता है, वही सुबह पहला विचार होता है जब तुम जागते हो! यह नींद में भीतर चलता रहता है।

तुम ध्यान के लिये समय नहीं निकाल पाते; किसी के पास समय नहीं है, दिन पूरी तरह से भरा है। लेकिन रात के छः या आठ घंटे ध्यान में बदले जा सकते हैं। और तब बुद्ध भी तुमसे ईर्ष्या करेंगे। वे भी आठ घंटे ध्यान नहीं कर सकते! तुम्हारी नींद को रूपांतरित करने का यह एक सामान्य और समझदार प्रयास है।

तुम स्नान कर रहे हो, क्यों नहीं इसे होशपूर्वक करते ???
क्यों इसे यांत्रिकता से किया जाये ???
क्या तुम रोबोट हो ???
तुम हर दिन स्नान कर रहे हो, तुम इसे सोये हुए किये चले जाते हो, और इसलिये तुम यांत्रिक हो जाते हो।

हर काम गैर-यांत्रिक होकर करो।
और तब धीरे-धीरे ध्यान के लिये अलग से तुम्हें समय निकालने का कोई सवाल ही नहीं रहेगा — यह तुम्हारे सारे दिन पर फैल जायेगा, चौबीस घंटों के लिये।

और तब तुम सही राह पर हो। तब पूरी गारंटी है कि तुम्हें ध्यान में अनिवार्यरूपेण सफलता मिलेगी!

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३