जिनके साथ पाप का संबंध है, उनके प्रति हम मैत्रीपूर्ण कैसे हो सकते हैं? “ओशो”
सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान)
ओशो- स्त्रियों को हम कहते हैं, पति को परमात्मा समझना! और उन स्त्रियों को बचपन से सिखाया गया है कि सेक्स पाप है, नरक है। वे कल विवाहित होंगी। वे उस पति को कैसे परमात्मा मान सकेंगी जो उन्हें सेक्स में और नरक में ले जा रहा है? एक तरफ हम सिखाते हैं पति परमात्मा है और पत्नी का अनुभव कहता है कि यही पहला पापी है जो मुझे नरक में घसीट रहा है।
एक बहन ने मुझे आकर कहा–पिछली मीटिंग में जब मैं यहां बोला, भारतीय विद्याभवन में, तो एक बहन मेरे पास उसी दिन आई और उसने कहा–कि मैं बहुत गुस्से में हूं, मैं बहुत क्रोध में हूं। सेक्स तो बड़ी घृणित चीज है। सेक्स तो पाप है। और आपने सेक्स की इतनी बात क्यों की? मैं तो घृणा करती हूं सेक्स को।
अब यह पत्नी है, इसका पति है, इसके बच्चे हैं, बच्चियां हैं; और यह पत्नी सेक्स को घृणा करती है! यह पति को कैसे प्रेम कर सकती है जो इसे सेक्स में ले जा रहा है? यह उन बच्चों को कैसे प्रेम कर सकती है जो सेक्स से पैदा हो रहे हैं? इसका प्रेम जहरीला रहेगा। इसके प्रेम में जहर छिपा रहेगा। पति और इसके बीच एक बुनियादी दीवाल खड़ी रहेगी। बच्चों और इसके बीच एक बुनियादी दीवाल खड़ी रहेगी। क्योंकि वह सेक्स की दीवाल और सेक्स की कंडेमनेशन की वृत्ति बीच में खड़ी है। ये बच्चे पाप से आए हैं। यह पति और मेरे बीच पाप का संबंध है। और जिनके साथ पाप का संबंध है, उनके प्रति हम मैत्रीपूर्ण हो सकते हैं? पाप के प्रति हम मैत्रीपूर्ण हो सकते हैं?
सारी दुनिया का गृहस्थ जीवन नष्ट किया है सेक्स को गाली देने वाले, निंदा करने वाले लोगों ने। और वे इसे नष्ट करके जो दुष्परिणाम लाए हैं, वह यह नहीं है कि सेक्स से लोग मुक्त हो गए हों। जो पति अपनी पत्नी और अपने बीच एक दीवाल पाता है पाप की, वह पत्नी से कभी भी तृप्ति अनुभव नहीं कर पाता। तो आस-पास की स्त्रियों को खोजता है, वेश्याओं को खोजता है। खोजेगा। अगर पत्नी से उसे तृप्ति मिल गई होती तो शायद इस जगत की सारी स्त्रियां उसके लिए मां और बहन हो जातीं। लेकिन पत्नी से भी तृप्ति न मिलने के कारण सारी स्त्रियां उसे पोटेंशियल औरतों की तरह, पोटेंशियल पत्नियों की तरह मालूम पड़ती हैं, जिनको पत्नी में बदला जा सकता है।
यह स्वाभाविक है, यह होने वाला था। यह होने वाला था, क्योंकि जहां तृप्ति मिल सकती थी, वहां जहर है, वहां पाप है, और तृप्ति नहीं मिलती है। और वह चारों तरफ भटकता है और खोजता है। और क्या-क्या ईजादें करता है खोज कर आदमी! अगर उन सारी ईजादों को हम सोचने बैठें तो घबरा जाएंगे कि आदमी ने क्या-क्या ईजादें की हैं! लेकिन एक बुनियादी बात पर खयाल नहीं किया कि वह जो प्रेम का कुआं था, वह जो काम का कुआं था, वह जहरीला बना दिया गया है।
और जब पति और पत्नी के बीच जहर का भाव हो, घबराहट का भाव हो, पाप का भाव हो, तो फिर यह पाप की भावना रूपांतरण नहीं करने देगी। अन्यथा मेरी समझ यह है कि एक पति और पत्नी अगर एक-दूसरे के प्रति समझपूर्वक प्रेम से भरे हुए, आनंद से भरे हुए और सेक्स के प्रति बिना निंदा के सेक्स को समझने की चेष्टा करेंगे, तो आज नहीं कल उनके बीच का संबंध रूपांतरित हो जाने वाला है। यह हो सकता है कि कल वही पत्नी मां जैसी दिखाई पड़ने लगे। …. 23 क्रमशः
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३