आदमी को बचाने की इतनी कोशिशें चल रही हैं। और कोशिश बचाने की जो करने वाले लोग हैं, वे ही आदमी को नष्ट कर रहे हैं “ओशो”
सम्भोग से समाधि की ओर (जीवन ऊर्जा रूपांतरण का विज्ञान)
ओशो- नीत्शे ने एक वचन कहा है, जो बहुत अर्थपूर्ण है। उसने कहा है कि धर्मों ने जहर खिला कर सेक्स को मार डालने की कोशिश की थी। सेक्स मरा तो नहीं, सिर्फ जहरीला होकर जिंदा है। मर भी जाता तो ठीक था। वह मरा नहीं। लेकिन और गड़बड़ हो गई बात। वह जहरीला भी हो गया और जिंदा है।
यह जो सेक्सुअलिटी है, यह जहरीला सेक्स है। सेक्स तो पशुओं में भी है, काम तो पशुओं में भी है, क्योंकि काम जीवन की ऊर्जा है; लेकिन सेक्सुअलिटी, कामुकता सिर्फ मनुष्य में है। कामुकता पशुओं में नहीं है। पशुओं की आंखों में देखें, वहां कामुकता दिखाई नहीं पड़ेगी। आदमी की आंखों में झांकें, वहां एक कामुकता का रस झलकता हुआ दिखाई पड़ेगा। इसलिए पशु आज भी एक तरह से सुंदर है। लेकिन दमन करने वाले पागलों की कोई सीमा नहीं है कि वे कहां तक बढ़ जाएंगे।
मैंने कल आपको कहा था कि अगर हमें दुनिया को सेक्स से मुक्त करना है, तो बच्चे और बच्चियों को एक-दूसरे के निकट लाना होगा। इसके पहले कि उनमें सेक्स जागे–चौदह साल के पहले–वे एक-दूसरे के शरीर से इतने स्पष्ट रूप से परिचित हो लें कि वह आकांक्षा विलीन हो जाए।
लेकिन अमेरिका में अभी-अभी एक नया आंदोलन चला है। और वह नया आंदोलन वहां के बहुत धार्मिक लोग चला रहे हैं। शायद आपको पता भी न हो, वह नया आंदोलन बड़ा अदभुत है। वह आंदोलन यह है कि सड़कों पर गाय, भैंस, घोड़े, कुत्ते, बिल्ली को भी बिना कपड़ों के नहीं निकाला जाए, उनको कपड़े पहना कर निकाला जाए! उनको भी कपड़े पहनाने चाहिए; क्योंकि नंगे पशुओं को देख कर बच्चे बिगड़ सकते हैं! बड़े मजे की बात है। नंगे पशुओं को देख कर बच्चे बिगड़ सकते हैं। अमेरिका के कुछ नीतिशास्त्री इसके बाबत आंदोलन और संगठन और संस्थाएं बना रहे हैं कि पशुओं को भी सड़कों पर नग्न नहीं लाया जा सके! आदमी को बचाने की इतनी कोशिशें चल रही हैं। और कोशिश बचाने की जो करने वाले लोग हैं, वे ही आदमी को नष्ट कर रहे हैं।
कभी आपने खयाल किया कि पशु अपनी नग्नता में भी अदभुत है और सुंदर है। उसकी नग्नता में भी वह निर्दोष है, सरल और सीधा है। कभी आपको, पशु नग्न है, यह भी खयाल शायद ही आया हो। जब तक कि आपके भीतर बहुत नंगापन न छिपा हो, तब तक आपको पशु नंगा नहीं दिखाई पड़ सकता है। लेकिन वे जो भयभीत लोग हैं, वे जो डरे हुए लोग हैं, वे भय और डर के कारण सब कुछ कर रहे हैं आज तक। और उनके सब करने से आदमी रोज नीचे से नीचे उतरता जा रहा है।
जरूरत तो यह है कि आदमी भी किसी दिन इतना सरल हो कि नग्न खड़ा हो सके–निर्दोष और आनंद से भरा हुआ। जरूरत तो यह है! जैसे महावीर जैसा व्यक्ति नग्न खड़ा हो गया। लोग कहते हैं कि उन्होंने कपड़े छोड़े, कपड़ों का त्याग किया। मैं कहता हूं, न कपड़े छोड़े, न कपड़ों का त्याग किया; चित्त इतना निर्दोष हो गया होगा, इतना इनोसेंट, जैसे छोटे बच्चों का, तो वे नग्न खड़े हो गए होंगे। क्योंकि ढांकने को जब कुछ भी नहीं रह जाता तो आदमी नग्न हो सकता है। जब तक ढांकने को कुछ है हमारे भीतर, तब तक आदमी अपने को छिपाएगा। जब ढांकने को कुछ भी नहीं है, तो नग्न हो सकता है। चाहिए तो एक ऐसी पृथ्वी कि आदमी भी इतना सरल होगा कि नग्न होने में भी उसे कोई पश्चात्ताप, कोई पीड़ा न होगी। नग्न होने में भी उसे कोई अपराध न होगा।
आज तो हम कपड़े पहन कर भी अपराधी मालूम होते हैं! हम कपड़े पहन कर भी नंगे हैं! और ऐसे लोग भी रहे हैं, जो नग्न होकर भी नग्न नहीं थे।
नंगापन मन की एक वृत्ति है।
सरलता, निर्दोष चित्त–फिर नग्नता भी सार्थक हो जाती है, अर्थपूर्ण हो जाती है; वह भी एक सौंदर्य ले लेती है।
लेकिन अब तक आदमी को जहर पिलाया गया है। और जहर का परिणाम यह हुआ कि हमारा सारा जीवन एक कोने से लेकर दूसरे कोने तक विषाक्त हो गया है।….. 22 क्रमशः
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३