भाव हो तो वर्णमाला भी ‘वेद’ हो जाती है “ओशो”

 भाव हो तो वर्णमाला भी ‘वेद’ हो जाती है “ओशो”

ओशो– ऐसा हुआ, मगीध नाम का एक यहूदी फकीर जंगल में भटक गया–कहानी है। कहानी बड़ी मीठी है। शैतान ने उसे भटका दिया। क्योंकि मगीध से शैतान बड़ा परेशान था। यह उसकी सुनता ही नहीं था। और हजार उपाय करता था, सब असफल हो जाते थे। तो मगीध और उसके एक शिष्य जो जंगल से गुजर रहे थे, उनको शैतान ने रास्ता भटका दिया। जंगल में भटक रहे हैं, रास्ता मिलता नहीं है। और बड़ा हैरान हुआ मगीध, कि उसकी स्मृति खोती जा रही है। वह जो भी जानता था, वह भूलता जा रहा है।उसने अपने शिष्य को कहा कि ‘यह तो बड़ी मुश्किल मालूम होती है। यह शैतान का हाथ मालूम होता है। मैं जो भी जानता था, वह भूल रहा है। सब शास्त्र खो गए, सब प्रक्रियाएं खो गईं, मेरी शक्ति छिनती जा रही है। तू कुछ कर! तूने मुझे इतना सुना है, कुछ तो तुझे याद होगा! उसमें से कुछ बोल। कोई प्रार्थना, जो मैं रोज करता था।’

उस शिष्य ने कहा, ‘अगर मेरे पास कान होते, तो मैं तुम्हारी प्रार्थना भी सुनता। मैंने सुनी हैं प्रार्थनाएं, लेकिन वह मैंने मेरी तरह से सुनी हैं। वह ठीक नहीं हो सकतीं। और जब तुम्हारी ठीक प्रार्थनाएं भटक गईं, तो मेरी गैर-ठीक प्रार्थनाएं क्या काम आएंगी? मैं भी भूलता जा रहा हूं, मैं भी घबड़ा गया हूं।’

मगीध ने कहा, ‘तुझे कुछ तो याद होगा मेरे सुने हुए में से’। उसने कहा, ‘तुम जोर ही देते हो तो सिर्फ अल्फाबेट–ए, बी, सी, डी: अलीफ, बे–बस, वही मुझे याद है। आ, बा, सा, दा, बस वही मुझे याद है। और तो सब मुझे भूल गया है।’

तो मगीध ने कहा, ‘कोई हर्जा नहीं। देर मत कर! इसके पहले कि वह भी भूल जाए, तू जोर से अलीफ, बे का पाठ शुरू कर। वर्णमाला का पाठ शुरू कर।’

शिष्य ने आज्ञा मानी। उसने ए, बी, सी, डी का पाठ जोर से शुरू किया। मगीध उसके पीछे पाठ को दोहराने लगा। मगीध दोहराने में ऐसा तल्लीन हो गया, समाधिस्थ हो गया। शैतान छोड़कर भाग खड़ा हुआ। क्योंकि ऐसे तन्मय चित्त के पास शैतान नहीं टिक सकता। परमात्मा के फूलों की वर्षा होने लगी। सब ज्ञान वापिस लौट आया। मगीध के शिष्य ने पूछा, ‘यह तो चमत्कार कर दिया! सिर्फ वर्णमाला के पाठ से!’

मगीध ने कहा, ‘सभी शास्त्रों में जो है, वह वर्णमाला से ज्यादा नहीं। वर्णमाला में सभी कुछ आ जाता है, कुछ बचता नहीं। और फिर मैंने जब पूरी वर्णमाला दोहरा दी, तो मैंने परमात्मा से कहा कि अब तू ठीक से जमा ले। प्रार्थना तो मेरी तुझे पता ही है। यह वर्णमाला यह रही, तू जमा ले। और उसने जमा दिया। और प्रार्थना पूरी हो गई।’

अगर भाव हो तो वर्णमाला वेद हो जाती है। अगर भाव न हो तो वेद भी वर्णमाला से ज्यादा नहीं है। अगर निर्विचार चित्त हो तो मंत्रों की जरूरत नहीं। निर्विचार चित्त में अ, ब, स का पाठ भी कर लिया जाए, तो मंत्र हो जाते हैं। और विचार से भरे चित्त में तुम कितने ही मंत्र दोहराओगे, सब व्यर्थ हो जाते हैं। तुम कितना ही ओंकार का पाठ करो, ओम-ओम दोहराओ, यह सब ऊपर-ऊपर है, भीतर तुम्हारी वासनाएं दौड़ रही हैं। और तुम्हारी वासनाएं तुम्हारे ओम को विकृत कर रही हैं। उनका धुआं घना है। वहां ओम की ज्योति जल नहीं सकती।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३

बिन बाती बिन तेल