जीवन की क्रांति बोध की क्रांति है, कृत्य की नहीं, तुम बुरा भी करते हो, तो भला मानकर करते हो “ओशो”
ओशो– पाप दुख लाता है, फिर भी लोग किए जाते हैं ।पुण्य सुख लाता है, फिर भी लोग टाले जाते हैं ।तो पाप और पुण्य की प्रक्रिया को समझना ज़रूरी है ।जानते हुए भी कि पाप दुख लाता है, फिर भी मुक्त होना कठिन है ।जानते हुए भी की पुण्य सुख लाता है, फिर भी प्रवेश कठिन है । तो ज़रूर पाप और पुण्य की प्रक्रिया में कुछ उलझाव है । जहां मनुष्य खो जाता है, भ्रमित हो जाता है ।
पहली बात, पाप को पाप जानकर कोई भी करता नहीं, कभी नहीं किया है। पाप को जो पाप की तरह जान लेता है ,हाथ तत्क्षण रुक जाते हैं। पाप को व्यक्ति पुण्य की भांति जानकर ही करता है ।तुम बुरा भी करते हो, तो भला मानकर करते हो। बुरा भले की ओट में छिपा होता है ।
इसलिए तुम यह प्रतीक्षा मत करना कि तुम जान लोगे कि बुरा बुरा है , बुरा दुख लाता है, तो मुक्त हो जाओगे ।तुम्हें अपने भले के दृष्टिकोण में छिपे हुए बुरे को खोजना होगा । तुम्हें वहां तलाश करनी होगी ,जहां तुमने तलाश की ही नहीं ।तुम्हारा क्रोध तुम्हारी करुणा की ओट में छिपा है। तुम्हारी हिंसा तुम्हारी अहिंसा की आड़ में छिपी है। तुम्हारी कामवासना ने ब्रह्मचर्य के वस्त्र धारण कर लिए हैं ।और तुम्हारा असत्य सत्य के शब्द सीख गया है। तुम्हारा अज्ञान पांडित्य की भाषा बोलता है।
शैतान को बचने को कोई जगह नहीं मिली, वह मंदिरों की प्रतिमाओं में छिप गया है। वहां तुम उसे देख ही नहीं पाते, क्योंकि वहां तुम भगवान को देखने जाते हो। वहां तुम एक पक्ष लेकर जाते हो ।तुम्हारी आंखें पहले से ही भरी होती हैं। शैतान को बचने के लिए मंदिर और मस्जिद से बेहतर कोई जगह नहीं है ।और अज्ञान को बचने के लिए शास्त्रों से बड़ा कोई सहारा नहीं है। और अहंकार को अगर अपने को सदा के लिए छुपा लेना हो सुरक्षित, तो विनम्रता, बस विनम्रता ही सुदृढ़ भीत है ।उसी सुदृढ़ किले के भीतर अहंकार छिप जाता है।
पाप को पाप जानकर किसी ने कभी किया नहीं ।पाप को कुछ और जानकर किया है । इसलिए पाप का असली सवाल कृत्य का नहीं है, बोध का है ।तुम्हारे जानने में भूल हो रही है ,तुम्हारे करने में नहीं ।अगर जानना सुदृढ हो जाए, सुधर जाये , ठीक- ठीक हो जाए ,करना रूपांतरित हो जाएगा ।सम्यक दृष्टि तुम्हें सम्यक आचरण पर ले आएगी।
इसलिए तुमसे जो कहता है, पाप छोड़ दो , वह व्यर्थ ही समय गंवा रहा है ।अपना भी, तुम्हारा भी । तुमने पाप को कभी पकड़ा ही नहीं है। तुम तो पुण्य को ही पकड़ते हो ।तुमसे जो कहता है ,बुरा मत करो; तुम हंसोगे ,तुम कहोगे ,बुरा तो हम कभी करते ही नहीं ।हो जाता है ,यह दूसरी बात है ।करते हम सदा भला हैं । करते तो हम भले की ही शुरुआत हैं, आख़िरी में हाथ में बुरा लगता है , हमारा दुर्भाग्य है ।
इन सूत्रों में प्रवेश के पहले पहली बात, जीवन की क्रांति बोध की क्रांति है ,कृत्य की नहीं । क्योंकि बुनियादी भूल वही हो रही है ।तुम्हारे जानने में भूल हो रही है ।तुम्हारे होश में भूल हो रही है ।
दूसरी बात, पाप तुम्हें प्रलोभित करता है । क्यों? सदियों- सदियों से आदमी जानता रहा है, सभी आदमियों का अनुभव है , पर यह अपरिहार्य रूप से एक ही बात सिद्ध करता है कि पाप लोगों को गहन दुख में ले गया । हर बार निष्पत्ति दुख में होती है ।तुमने हिंसा की, तुमने क्रोध किया , कब सुख पाया? तुमने लोभ किया ,तुमने ईर्ष्या की , कब सुख की वर्षा हुई? एकाध तो अनुभव हो, जो तुम्हारे समर्थन में खड़ा हो जाए ।सारे अनुभव तुम्हारे विपरीत हैं ,फिर भी तुम अनुभव की नहीं सुनते । तो ज़रूर कहीं बड़ी गहरी चाल होगी।
पाप सुख का प्रलोभन देता है। सुख कभी नहीं देता, प्रलोभन देता है ।यह तो तुम भी जानते हो कि पाप से कभी सुख नहीं मिला, लेकिन प्रलोभन ! तुम भूल जाते हो। अनुभव तो दुख है, लेकिन प्रलोभन का कोई अंत नहीं । प्रलोभन तो कोरा आश्वासन है ।
पाप की कला यह है कि जब भी पाप हारता है ,दोष दूसरों पर डालता है ।और प्रलोभन को फिर-फिर बचा लेता है।पाप दोषारोपण अपने पर नहीं लेता । और जिस व्यक्ति की यह आदत गहरी हो गई हो कि दोष को दूसरे पर टाल दे ,वह कभी पाप से मुक्त न हो पाएगा । होने का कोई उपाय ही नहीं ।