कृष्‍ण को आज भगवान मान लेना बहुत आसान है। कृष्ण की मौजूदगी में भगवान मानना बहुत कठिन था “ओशो”

 कृष्‍ण को आज भगवान मान लेना बहुत आसान है। कृष्ण की मौजूदगी में भगवान मानना बहुत कठिन था “ओशो”

ओशो– कृष्‍ण की गैर—मौजूदगी में भगवान मान लेने में कोई अड़चन नहीं है, क्योंकि हमारे अहंकार को कोई भी पीड़ा, कोई तुलना नहीं होती। लेकिन कृष्ण की मौजूदगी में भगवान मानना बहुत कठिन है।

शायद अर्जुन भी मन के किसी कोने में कृष्‍ण को भगवान नहीं मान पाता होगा। शायद अर्जुन के मन में भी कहीं न कहीं किसी अंधेरे में छिपी हुई यह बात होगी कि कृष्‍ण आखिरकार मेरे सखा हैं, मेरे मित्र हैं, और फिलहाल तो मेरे सारथी हैं! किन्हीं ऊंचाई के क्षणों में मन के भला लगता हो कि कृष्ण अद्वितीय हैं, लेकिन अहंकार के क्षण में तो लगता होगा कि मेरे ही जैसे हैं।जब भी ईश्वर अपने परम ऐश्वर्य में कहीं प्रकट होगा, तब उसकी मौजूदगी खतरनाक हो जाती है। वे जो हमारे क्षुद्र अहंकार हैं, उन क्षुद्र अहंकारों को बड़ी पीड़ा शुरू हो जाती है। जब भी विराट ईश्वर सामने होता है, तो हमारा क्षुद्र अहंकार बेचैन हो जाता है। हम मरे हुए ईश्वर को पूज सकते हैं, जीवित ईश्वर को पहचानना मुश्किल है।

कृष्ण का यह सूत्र कीमती है। इसमें ऐश्वर्य शब्द को ठीक से पहचान लेना। और जहां भी, जहां भी कोई झलक मिले उसकी, जो पार है, दूर है, तो उसे प्रणाम करना, उसे स्वीकार करना।पदार्थ में भी झलक मिलती है उसकी। फूल पदार्थ ही है। लेकिन जीवंत होकर जब खिलता है, तो पदार्थ के पार जो है, उसकी खबर आती है उसमें। वीणा भी पदार्थ है। लेकिन जब कोई गहरे प्राणों से उसके तारों को छूता है, तो उन स्वरों में भी उसका ही स्वर आता है।

जहां भी कोई चीज श्रेष्ठता को छूती है, अभिजात्य को छूती है, वहीं उसकी झलक मिलनी शुरू हो जाती है। लेकिन उतनी ऊंची आंखें उठाना हमें बड़ा मुश्किल है।

🪷ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३🪷
गीता दर्शन–भाग–5
ईश्‍वर अर्थात ऐश्‍वर्य—(प्रवचन—तीसरा)
अध्‍याय—10