जो सुख-दुख से कंप जाता है, उसकी पराधीनता सुनिश्चित है “ओशो”

 जो सुख-दुख से कंप जाता है, उसकी पराधीनता सुनिश्चित है “ओशो”

ओशो– हमें तो कोई भी पराधीन बना सकता है, क्योंकि हमें कोई भी कंपा सकता है। और जैसे ही हम कंपे कि जमीन हमारे पैर के नीचे की गई। कोई भी कंपा सकता है। कोई भी आपसे कह सकता है कि ऐसी सुंदर शक्ल कभी देखी नहीं, बहुत सुंदर चेहरा है आपका! कंप गए आप। अब आपका उपयोग किया जा सकता है; अब आपसे गुलामी करवाई जा सकती है।

कोई भी आपसे कह देता है कि आपकी बुद्धिमत्ता का कोई मुकाबला नहीं; बेजोड़ हैं आप! कंप गए आप। और उस आदमी ने आपको बुद्धिमान कहकर बुद्धू बना दिया! अब आपसे कम बुद्धि का आदमी भी आपसे गुलामी करवा सकता है। कंप गए आप। कंपे कि कमजोर हो गए। कंपे कि पराधीन हुए।

जो आदमी भीतर कंपित होता है सुख-दुख में, वह कभी भी गुलाम हो जाएगा। उसकी पराधीनता सुनिश्चित है। वह पराधीन है ही। एक छोटा-सा शब्द, और उसको गुलाम बनाया जा सकता है। सिर्फ उस आदमी को पराधीन नहीं बनाया जा सकता, जिसको सुख और दुख नहीं कंपाते। उसको अब इस दुनिया में कोई पराधीन नहीं बना सकता। कोई उपाय न रहा। उस आदमी को हिलाने का उपाय न रहा। अब तलवारें उसके शरीर को काट सकती हैं, लेकिन वह अडिग रह जाएगा। अब सोने की वर्षा उसके चरणों में हो सकती है, लेकिन मिट्टी की वर्षा से ज्यादा कोई परिणाम नहीं होगा। अब सारी पृथ्वी का सिंहासन उसे मिल सकता है, वह उस पर ऐसे ही चढ़ जाएगा, जैसे मिट्टी के ढेर पर चढ़ता है; और ऐसे ही उतर जाएगा, जैसे मिट्टी के ढेर से उतरता है।

भीतरी शक्ति अकंपन से आती है। भीतरी शक्ति, आंतरिक ऊर्जा, परम शक्ति उस व्यक्ति को उपलब्ध होती है, जो अकंप को उपलब्ध हो जाता है। और अकंप वही हो सकता है, जो सुख-दुख में कंपित न हो।

योगारूढ़ होने के पहले यह अकंप, यह निष्कंप दशा उपलब्ध होनी जरूरी है। और इस निष्कंप दशा में ही आदमी के पास इतनी ऊर्जा, इतनी शक्ति, इतनी स्वतंत्रता और इतनी स्वाधीनता होती है, कहना चाहिए, आदमी स्व होता है, स्वयं होता है कि इस पात्रता में ही परमात्मा से मिलन है; इसके पहले कोई मिलन नहीं है।

जो सुख-दुख से कंप जाता है, वह इतना कमजोर है कि परमात्मा को सह भी न पाएगा। इतना कमजोर है! एक चांदी के सिक्के से जिसके प्राण डांवाडोल हो जाते हैं। एक जरा-सा कांटा जिसकी आत्मा तक छिद जाता है। एक जरा-सी तिरछी आंख किसी की जिसकी रातभर की नींद को खराब कर जाती है। वह आदमी इतना कमजोर है कि कृपा है परमात्मा की कि उस आदमी को न मिले। नहीं तो आदमी टूटकर, फूटकर, एक्सप्लोड ही हो जाएगा, बिलकुल नष्ट ही हो जाएगा।

☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
गीता-दर्शन – भाग 3
ज्ञान विजय है (अध्याय-6) प्रवचन—चौथा