विषय और वासना जैसे दूसरों में है वैसे ही मुझमें है यह एक मापदंड तुम्‍हें ईमानदार बनाएगा “ओशो”

 विषय और वासना जैसे दूसरों में है वैसे ही मुझमें है यह एक मापदंड तुम्‍हें ईमानदार बनाएगा “ओशो”

ओशो- कोई भी भिन्‍न नहीं है। धार्मिक चित वह है जो जानता है कि प्रत्‍येक व्‍यक्‍ति समान है। इसलिए तुम जो तर्क अपने लिए खोज लेते हो वही दूसरों के लिए भी उपयोग करो। और अगर तुम दूसरों की आलोचना करते हो तो उसी आलोचना को अपने पर भी लागू करो। दोहरे मापदंड मत गढ़ो। एक मापदंड रखने से तुम पूरी तरह रूपांतरित हो जाओगे। एक मापदंड तुम्‍हें ईमानदार बनाएगा। और पहली दफा तुम सत्‍य को सीधा देखोगें जैसा वह है।

तुम उन्‍हें स्‍वीकार कर लो और वे रूपांतरित हो जाएंगी। लेकिन हम क्‍या कर रहे है? हम स्‍वीकार करते है कि विषय-वासना दूसरों में है। जो-जो गलत है वह दूसरों में है और जो-जो सही है वह तुम में है। तब तुम रूपांतरित कैसे होगे? तुम तो रूपांतरित हो ही। तुम सोचते हो कि मैं तो अच्‍छा ही हूं। दूसरे सब लोग बुरे है। रूपांतरण की जरूरत संसार को है। तुम्‍हें नहीं।

दुनिया को बदलने की बात नहीं है। तुम गलत हो। प्रश्‍न है कि तुम कैसे बदलों धार्मिक प्रश्‍न यह है कि मैं कैसे बदलूं? दूसरों को बदलने की बात राजनीति है। राजनीतिज्ञ सोचता है कि मैं तो बिलकुल ठीक हूं, कि मैं तो आदर्श हूं, जैसा कि सारी दुनियां को होना चाहिए। वह अपने को आदर्श मानता है। वह आदर्श पुरूष है। और उसका काम दुनिया को बदलना है।

धार्मिक व्‍यक्‍ति जो कु छ भी दूसरों से देखता है उसे अपने भीतर भी देखता है। अगर हिंसा है तो वह सोचता है कि यह हिंसा मुझमें है या नहीं। अगर लोभ है, अगर उसे कहीं लोभ दिखाई पड़ता है तो उसका पहला ख्‍याल यह होता है कि यह लोभ मुझमें है या नहीं। और जितना ही खोजता है वह पाता है कि मैं ही सब बुराई का स्‍त्रोत हूं। तब फिर प्रश्‍न उठता ही नहीं। कि संसार कैसे बदले। तब फिर प्रश्‍न यह है कि अपने को कैसे बदला जाए। और बदलाहट उसी क्षण लगती है। जब तुम एक मापदंड अपनाते हो। उसे अपनाते ही तुम बदलने लगते हो।

दूसरों की निंदा मत करो। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि अपनी निंदा करो। नहीं, बस दूसरों की निंदा मत करो। और अगर तुम दूसरों की निंदा करते हो तो तुम्‍हें उनके प्रति गहन करूणा का भाव होगा। क्‍योंकि सब की समस्‍याएं समान है। अगर कोई पाप करता है—समाज की नजर में जो पाप है—तो तुम उसकी निंदा करने लगते हो। तुम यह नहीं सोचते हो कि तुम्‍हारे भीतर भी उस पाप के बीज पड़े है। अगर कोई हत्‍या करता है तो तुम उसकी निंदा करते हो।

लेकिन क्‍या तुमने कभी किसी की हत्‍या करने का विचार नहीं किया है? क्‍या उसका बीज, उसकी संभावना तुम्‍हारे भीतर भी नहीं छिपी है। जि आदमी ने हत्‍या की है वह एक क्षण पूर्व हत्‍यारा नहीं था। लेकिन उसका बीज उसमें था। वह बीज तुममें भी है। एक क्षण बाद कौन जानता है कि तुम भी हत्‍यारे हो सकते हो। उसकी निंदा मत करो। बल्‍कि स्‍वीकार करो। तब तुम्‍हें उसके प्रति गहन करूणा होगी। क्‍योंकि उसने जो कुछ किया है वह कोई भी कर सकता है। तुम भी कर सकते हो।

निंदा से मुक्‍त चित में करूणा होती है। निंदा रहित चित में गहन स्‍वीकार होता है। वह जानता है कि मनुष्‍यता ऐसी है, और मैं भी ऐसा ही हूं, तब सारा जगत तुम्‍हारा प्रतिबिंब बन जाएगा; वह तुम्हारे लिए दर्पण का काम देगा। तब प्रत्‍येक चेहरा तुम्‍हारे लिए आईना होगा; तुम प्रत्‍येक चेहरे में अपने को ही देखोगें

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३

विज्ञान भैरव तंत्र, भाग-तीन
प्रवचन-37