अधूरा कर्म ही आपको वापस नए जन्मों में लेता चला जाएगा “ओशो”
ओशो– जो भी काम करना है, उसे पूरा कर लें। पूरा किया गया काम, संयत किया गया काम, सस्पेंडेड, लटका हुआ नहीं रह जाता, और व्यक्ति प्रतिपल बाहर हो जाता है–प्रत्येक कर्म के बाहर हो जाता है। और तब वैसा व्यक्ति कभी भी भार, बर्डन नहीं अनुभव करता मस्तिष्क पर। निर्भार होता है, वेटलेस होता है, हल्का होता है। सब पूरा है।
सुकरात मर रहा है, तो किसी मित्र ने पूछा कि कोई काम बाकी तो नहीं रह गया? सुकरात ने कहा, मेरी कोई आदत कभी किसी काम को बाकी रखने की नहीं थी। मैं हमेशा ही तैयार था मरने को। कभी भी मौत आ जाए, मेरा काम पूरा, साफ था। सब जो करने योग्य था, मैंने कर लिया था। जो नहीं करने योग्य था, नहीं किया था। मेरा हिसाब सदा ही साफ रहा है। मेरे खाते-बही, कभी भी मौत का इंस्पेक्टर आ जाए, देख ले, तो मैं वैसा नहीं डरूंगा, जैसा इनकम टैक्स के इंस्पेक्टर को देखकर कोई भी दुकानदार डरता है, ऐसा सुकरात ने कहा होगा। सिर्फ एक छोटी-सी बात रह गई, वह भी मुझे पता नहीं था, नहीं तो मैं सुबह उस आदमी को कहता।
एचीलियस नाम के आदमी ने एक मुर्गी मुझे उधार दी थी, छः आने उसके बाकी रह गए हैं। बस इतना ही सस्पेंडेड है। बस, और कुछ भी नहीं है। वह भी मैं चुका देता, लेकिन जेल में पड़ा हूं और छः आने कमाने का भी कोई उपाय मेरे पास नहीं है। अचानक मुझे जेल में ले आए, अन्यथा मैं उसके छः आने चुका देता। एक काम भर इस पृथ्वी पर मेरा अधूरा पड़ा है, वे छः आने एचीलियस को देने हैं। मेरे मरने के बाद तुम मेरे मित्र, एक-एक, दो-दो पैसा इकट्ठा करके उसे दे देना, ताकि बहुत भार मुझ पर न रह जाए। छः आने का इकट्ठा बहुत पड़ेगा। एक-एक पैसे का तुम सब का रह जाएगा। किसी रास्ते पर, किसी मार्ग पर अगर अनंत में कभी मिलना हो गया, तो मैं चुका दूंगा। बस, इतना ही बोझ है, बाकी सब निपटा हुआ है।
आप मरते वक्त कितने आने के बोझ से भरे होंगे? कोई हिसाब लगाना मुश्किल हो जाएगा। न मालूम कितना अटका रह जाएगा सब तरफ! किसी को गाली दी थी, माफी नहीं मांग पाए। किसी पर क्रोध किया था, क्षमा नहीं कर पाए। किसी को प्रेम करने के लिए कहा था, लेकिन कर नहीं पाए। किसी को सेवा का भरोसा दिया था, लेकिन हो नहीं पाई। सब तरफ सब अधूरा अटका रह जाएगा।
यह अटका, अधूरा कर्म ही आपको वापस नए जन्मों में लेता चला जाएगा। ये असम्यक कर्म आपको वापस नए कर्मों में लेते चले जाएंगे। और पिछला कर्म भी पूरा नहीं होता, इस जन्म का पूरा नहीं होता, और एडीशन, और भार बढ़ता चला जाता है। हल्के न हो पाएंगे फिर।
कर्मों का विचार, कर्म के सिद्धांत के पीछे जो मूल आधार है, वह यही है कि वही व्यक्ति कर्म से मुक्त हो जाता है, जो सब कर्मों को संयत रूप से कर लेता है और उनके बाहर हो जाता है। फिर उसकी कोई मृत्यु नहीं है, उसका मोक्ष है; क्योंकि लौटने का कोई कारण नहीं है।
☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
गीता-दर्शन – भाग 3
(अध्याय-6) प्रवचन—आठवां