जिस दिन दुनिया में प्रेम स्वीकृत होगा, सम्मानित और आदृत होगा, उसी दिन स्त्री सम्मानित, स्वीकृत और आदृत हो सकती है “ओशो”

ओशो– जब तक स्त्रियां बिना प्रेम के विवाह करने को राजी होती रहेंगी, तब तक वे संपत्ति से ज्यादा नहीं हो सकतीं। जब तक स्त्रियां बिना प्रेम के विवाह करने को राजी होती रहेंगी, जब तक कन्या दान चलता रहेगा, दान चल रहा है कन्या का। वही कुर्सी, फर्नीचर का मामला है, दान हो रहा है। पिता दान कर रहे हैं कन्याओं का।
जब तक स्त्री अरेंज मैरिज के लिए राजी होती रहेंगी कि बाप, भाई विवाह व्यवस्था करें और एक ऐसे आदमी से विवाह कर दे जिसे न उसने जाना, न पहचाना, न जिसे चाहा, न जिसे प्रेम किया, न जिसके लिए उसके हृदय में गीत उठे, न जिसके प्राणों में उसके लिए संगीत फैला; उस आदमी के साथ बंधने को जब तक स्त्री राजी होती रहेगी, जब तक दुनिया में प्रेम के बिना विवाह होता रहेगा, तब तक स्त्री की हैसियत संपत्ति से ज्यादा नहीं हो सकती।
इसलिए दूसरी बात यह कहना चाहता हूं कि अगर स्त्रियां अपनी आत्मा खोजना चाहती हैं, उन्हें एक स्पष्ट यह समझ लेना चाहिए कि बिना प्रेम के, बिना विवाह के रह जाना बेहतर है, लेकिन बिना प्रेम के विवाह करना पाप है, अपराध है। बिना प्रेम के विवाह कैसी असंभव बात है, लेकिन जो असंभव है वही संभव हो गया है। बिना प्रेम के एक व्यक्ति के साथ बंध जाना कैसी अशोभन बात है। बिना प्रेम के एक व्यक्ति के साथ जीवन भर जीने की चेष्टा करनी, कितनी यांत्रिक बात है। लेकिन हमें पता ही नहीं चलता।
हम सोचते हैं विवाह पहले हो जाएगा, फिर धीरे-धीरे प्रेम आ जाएगा। धीरे-धीरे प्रेम नहीं आएगा, धीरे-धीरे कलह आएगी जो कि हर घर में दिखाई पड़ती है। चौबीस घंटे कलह चलेगी। लेकिन समाज का इंतजाम ऐसा है कि कितने ही लड़ो, भाग नहीं सकते हो लड़ाई से, वही लड़ाई जारी रखो।
जिस दिन दुनिया में प्रेम स्वीकृत होगा, सम्मानित और आदृत होगा, उसी दिन स्त्री सम्मानित, स्वीकृत और आदृत हो सकती है। स्त्री की आत्मा की घोषणा में प्रेम की घोषणा अत्यंत अनिवार्य है
लेकिन पुरुष को प्रेम से बहुत मतलब नहीं है यह ध्यान रहे। इसलिए मैं नारियों से यह कह रहा हूं, पुरुष को प्रेम से बहुत मतलब नहीं है, पुरुष के लिए जिंदगी के बहुत से कामों में प्रेम भी एक काम है। चौबीस घंटे में आधा घंटा प्रेम करने के लिए उसे मौका मिल जाए पर्याप्त है, साढ़े तेईस घंटे उसे जरूरत नहीं है। पुरुष के लिए प्रेम बहुत से कामों में से एक काम है, स्त्री के लिए प्रेम ही एक मात्र काम है, बहुत से कामों में एक काम नहीं है वह। स्त्री का पूरा व्यक्तित्व प्रेम है।
उसके जीवन में प्रेम हो तो सारे काम निकल आएंगे उस प्रेम से। पुरुष के लिए प्रेम एक काम है, इसलिए पुरुष को प्रेम की बहुत चिंता नहीं है। पुरुष की आकांक्षाएं दूसरी हैं, पुरुष के हृदय में ज्यादा गहरी आकांक्षा, महत्वाकांक्षा, एंबीशन है। यश की, पद की, प्रतिष्ठा की, वह सारे प्रेम को छोड़ सकता है यश के लिए, पद के लिए और प्रतिष्ठा के लिए
☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
नारी और क्रांति