सारी बात समाज के आस-पास होती है, राष्ट्र के आस-पास होती हैं, संप्रदाय के आस-पास होती हैं। जो कि बिल्कुल झूठ है, सिर्फ़ व्यक्ति ही मूल्यवान है “ओशो”

 सारी बात समाज के आस-पास होती है, राष्ट्र के आस-पास होती हैं, संप्रदाय के आस-पास होती हैं। जो कि बिल्कुल झूठ है, सिर्फ़ व्यक्ति ही मूल्यवान है “ओशो”

ओशो– व्यक्ति को तो ऐसे ही जीना चाहिए कि जैसे कल है ही नहीं। जो क्षण मिला है वह वही काफी है, तो ही व्यक्ति अधिकतम जी पाएगा। क्योंकि प्रतिक्षण का भोग कर लेगा। रहा समाज, तो सच बात तो यह है कि समाज केवल व्यवस्था है, उसके पास कोई आत्मा नहीं है। और व्यवस्थाएं तो कभी भी वर्तमान में नहीं जी सकती।

असल में व्यवस्थाएं जीती ही नहीं, व्यवस्थाओं के पास कोई जीवन ही नहीं है। जीवन तो है व्यक्ति के पास। व्यवस्था के पास कोई जीवन नहीं होता। तो व्यवस्था ऐसी होनी चाहिए कि व्यक्ति अधिकतम जी सके। व्यवस्था का अपना कोई जीवन ही नहीं है। जब हम कहते हैं कि समाज का जीवन, तो हम ऐसे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं, जिनका कोई भी अर्थ नहीं है। लेकिन बहुत बार शब्दों से भूल पैदा होती है। एक छोटी सी घटना से मैं समझाऊं कि शब्दों से बड़ी अदभुत भूल पैदा होती है।

अलाइस इन वंडरलेंड में एक छोटी सी कहानी है। अलाइस पहुंची परियों के देश में। परियों की रानी से मिलने गई। तो रानी ने उससे पूछा, डीड यू मीट समबडी कमिंग टुवडर््स मी? कोई मिला रास्ते में मेरी तरफ आता हुआ? उसने कहा: नोबडी मैडम, कोई भी नहीं। लेकिन रानी ने समझा कि नोबडी नाम का कोई आदमी आता है। उसके ही पीछे रानी का हरकारा है, डाकिया है, वह आया मैसेंजर, उसने उससे भी पूछा कि डीड यू मीट समबडी कमिंग टुवर्ड्स मी? उसने कहा: नोबडी मैडम, तब तो और पक्का हो गया क्योंकि दो आदमियों ने कहा कि नोबडी आ रहा है। तो उस रानी ने उस मैसेंजर से कहा कि इट्स नेवर बी वॅाक स्लोवर दैन यू, नोबडी वॅाक स्लोवर दैन यू। वह जो नोबडी है, वह तुमसे बहुत धीमा चलता है। ऐसा रानी ने कहा, लेकिन हरकारे ने समझा कि रानी कहती है तुमसे धीमा कोई भी नहीं चलता। मैसेंजर की तो जिंदगी ही तेज चलने पर है। उसने कहा आप क्या कहती हैं? नोबडी वाक्स फास्टर देन मी। आप बात क्या कर रही हैं? मुझसे तेज कोई नहीं चलता। रानी ने इफ नोबडी वॅाक फास्टर देन यू, देन ही मस्ट रीच्ड बीफोर। तब वह घबड़ाई, उसने कहा कि नोबडी को अब तक आ जाना चाहिए, अगर वह तुमसे तेज चलता है। वह मैसेंजर घबड़ाया तो उसने कहा कि नोबडी इ.ज, नोबडी मैडम, तो रानी ने कहा, अॅाफकोर्स, नोबडी मस्ट बी नोबडी। यह ठीक है बात कि नोबडी इ.ज नोबडी, लेकिन आना तो चाहिए। और ऐसे वह कहानी चलती है। और वह जो नोबडी है समझाना मुश्किल होता चला जाता है। कि वह कोई भी नहीं है।

समाज जो है वह नोबडी है। समाज जैसी कोई चीज है नहीं। लेकिन रोज-रोज बात करके ऐसा लगता है कि समाज कोई है। जीवन है उसका। आदमी है, हाथ में है उसके, समाज को बचाओ, समाज की रक्षा करो, समाज ऐसा न हो जाए समाज वैसा न हो जाए। फिर भी हम भूल जाते हैं कि समाज का मतलब क्या है? समाज का मतलब है हमारे बीच के अंतर्संबंधों का जोड़। हम दस लोग यहां बैठे हैं, एक समाज बैठा है। लेकिन समाज कहां बैठा है? एक-एक आदमी बैठा है। लेकिन दस आदमी बैठे हैं पास-पास तो एक तरह का संबंध बना है उनमें। उस संबंध का नाम समाज है। समाज का मतलब है रिलेशनशिप। तो व्यक्ति जैसे होते हैं, समाज वैसा हो जाता है। समाज का अपना कोई है नहीं हिसाब। अगर व्यक्ति सब काले रंग के कपड़े पहन लें तो समाज काले रंग के कपड़े पहन लेता है। और व्यक्ति अगर सभी आनंदित हैं, तो समाज आनंदित हो जाता है। और व्यक्ति अगर क्षण में जीएंगे तो समाज ऐसा हो जाएगा कि वह क्षण में जीने की सुविधा बने, तो वह बन जाएगा। लेकिन समाज में ऐसी र्कोई चीज नहीं होती है कि उसका कोई लक्ष्य, ऐसा कुछ, कोई मतलब नहीं रहता।

व्यक्ति है, वास्तविक। और मजा ये है कि समाज वास्तविक हो गया है और व्यक्ति नकार हो गया है, यानी व्यक्ति का कोई मूल्य नहीं। हम कभी पूछते ही नहीं कि व्यक्ति? सारी बात समाज के आस-पास होती है, राष्ट्र के आस-पास होती हैं, संप्रदाय के आस-पास होती हैं। जो कि बिल्कुल झूठ है, सब झूठ है। न संप्रदाय कहीं है, न कोई धर्म कहीं है, न कोई राष्ट्र कहीं है? लेकिन बातचीत इनके आस-पास चलती है। और सारी दुनिया इनके आस-पास घूमती है। और मजा यह है कि झूठ के आस-पास जो बिल्कुल फाल्सूड है, फाल्सूड इनकार्मिक कहना चाहिए जहां कुछ है ही नहीं। उसके आधार पर सारा जीवन बंधा है। सारी हमारी फिलासफी बंधी है। और जो है वस्तुतः जिसका अस्तित्व है व्यक्ति का, उसको निषेध कर दिया गया और उसको हम भूल ही गये।

मैं मानता हूं कि एक ऐसी दुनिया होनी चाहिए। एक ऐसा समाज, जहां समाज जैसी चीज का मूल्य ही न रह जाए, मूल्य तो हो व्यक्ति का। और व्यक्ति ही मूल्यवान है। और व्यक्ति जैसा जिएगा वैसे अंतर्संबंध बनेंगे, वैसा समाज होगा।

☘️☘️ ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३☘️☘️
संबोधि के क्षण-(प्रवचन-05)