असफलता सफल लोगों की कहानी है

ओशो– प्रेम ही शांति ला सकता है। प्रेम का अर्थ हैः उससे मिल जाना जो हमारा स्वभाव है। प्रेम का अर्थ हैः उससे मिल जाना जिससे मिलना हमारी नियति है। प्रेम का अर्थ हैः उसे पा लेना जिसे पाने को हम बने हैं। प्रेम का अर्थ हैः बीज फूल हो जाए, तो सब शांत हो जाएगा। जब तक बीज बीज है तब तक भीतर एक संघर्ष चलता ही रहेगा, क्योंकि अंकुर पैदा होना है। अंकुर भी लड़ता रहेगा, क्योंकि अभी वृक्ष बनना है। वृक्ष भी संघर्षशील रहेगा, क्योंकि कलियां लानी हैं। लेकिन एक बार फूल आ गए, फूल लग गएः वृक्ष का पूरा प्राण शांत हो जाता है; जो होना था वह पूरा हो गया, अब बेचैनी का कोई कारण नहीं।
जब तक व्यक्ति परमात्मा न हो जाए तब तक ज्वरग्रस्त रहेगा, तब तक कोई उसके ज्वर को मिटा नहीं सकता। और जो उसको ज्वर को मिटाने की कोशिश करते हैं वे दुश्मन हैं। क्योंकि इसका तो मतलब हुआ कि ज्वर भीतर से मिटेगा भी नहीं, ऊपर से मिटने का धोखा भी हो जाएगा..तो व्यक्ति अपनी मंजिल से भटक जाएगा।
‘विरह ज्वर से मेरा अंग-अंग जलता है, मैं अपने हाथों को मरोड़ती हूं। प्रीतम से मिलने की लालसा ने मुझे बावली बना दिया है। मैं बिल्कुल पागल हुई जा रही हूं।’
पागल होने से कम में काम न चलेगा। भक्ति परमात्मा के लिए पागलपन है। पागल तो तुम भी होः तुम संसार के लिए पागल हो। तुम उसके लिए पागल हो जिसको पाकर भी कुछ न मिलेगा। भक्त भी पागल है, पर वह उसके लिए पागल है जिसको पाकर सब मिल जाएगा। तब तुम खुद ही सोच लो कि दोनों में कौन ज्यादा पागल है? कौन असली में पागल है? तुम ही असली में पागल हो। क्योंकि ऐसा पागलपन जो तुम्हें अपने स्वभाव से जुड़ा देगा, भला अभी पागलपन दिखता हो, अंततः वही समझदारी सिद्ध होगी। और ऐसा पागलपन जो अभी भला समझदारी दिखती हो कि धन कमा लो, पद कमा लो, प्रतिष्ठा कमा लो, बड़े महल बना लो, बड़ा साम्राज्य फैला दो..अभी बिल्कुल समझदारी दिखती है, वही अंततः पागलपन सिद्ध होगी।
एक बाउल फकीर का गीत मैं पढ़ रहा था। वह परमात्मा से कह रहा है कि पागल तो हम सब हैं; कुछ तेरी तरफ पागल हैं, कुछ तेरे विरोध में पागल हैं; कुछ तेरी तरफ आने को दीवाने हैं, कुछ तुझसे दूर जाने को दीवाने हैं। हे परमात्मा, तू ही बता, हम दोनों में कौन ज्यादा दीवाना है? कौन ज्यादा पागल है? क्योंकि जो तुझसे दूर जा रहा है, वह कहां जाएगा? वह कितने ही दूर चला जाए तो भी मंजिल तो न जाएगी। और दूर जाता रहे, और दूर जाता रहे..और जितना दूर जाएगा उतना ही ज्वर से भरता जाएगा। इसलिए अभागे हैं वे लोग जिनको तुम्हारे जिंदगी में तुम सफल कहते हो। और धन्यभागी हैं वे लोग जो तुम्हारे हिसाब से सफल नहीं होते, असफल हो जाते हैं। जिनको धन मिल गया और जीवन जिन्होंने गंवा दिया, उनको तुम सफल कहते हो। उनके जैसी असफलता तुम और कहां पाओगे? सिकंदर और नेपोलियन..इनसे ज्यादा असफल आदमी तुम कहां खोजोगे?
मैं एण्ड्रू कारनेगी का जीवन पढ़ रहा था। वह अमेरिका का सबसे बड़ा अरबपति हुआ। वह मरा तो दस अरब रुपये छोड़ कर मरा। मरते वक्त ऐसे ही कुतूहलवश, दो दिन पहले, जो व्यक्ति उसके सेक्रेटरी का काम करता था और उसका जीवन लिख रहा था, उससे उसने पूछा, एक दिन ऐसा पड़े-पड़े आंख खोली, और कहाः सुनो लिखना बाद में, पहले एक सवाल का जवाब दो। अगर तुम्हें परमात्मा यह चुनाव का मौका दे कि चाहो तो तुम एण्ड्रू कारनेगी हो जाओ और चाहो तो एण्ड्रू कारनेगी की सेक्रेटरी हो जाओ, तुम दोनों में से क्या होना पसंद करोगे?
उस सेक्रेटरी ने कहाः इसमें सोचने-विचारने का कोई सवाल ही कहां है? एण्ड्रू कारनेगी ने समझा कि शायद वह यह कह रहा है कि इसमें सोचने का सवाल कहां है; एण्ड्रू कारनेगी होना पसंद करूंगा। वह हंसने लगा। उसने कहा कि मैं समझा। सेक्रेटरी ने कहाः आप समझे नहीं। मैं यह कह रहा हूं कि मैं सेक्रेटरी होना ही पसंद करूंगा, एण्ड्रू कारनेगी नहीं। एण्ड्रू कारनेगी के मन में बड़ी चिंता आ गई। उसने कहाः तुम्हारा मतलब क्या? तुम क्यों सेक्रेटरी होना चाहोगे जब तुम एण्ड्रू कारनेगी हो सकते हो?
उसने कहाः मैं सेकेट्री होना चाहूंगा। सुनिए..मैं आपका जीवन लिख रहा हूं और आपके जीवन को समझने की कोशिश कर रहा हूं। जो मैं समझ पाया उससे एक बात तो सिद्ध हो गई कि जिनको हम सफल कहते हैं वे सफल नहीं हैं। तुम्हारा जीवन लिखते-लिखते मुझे अपने संबंध में बड़ी गहरी समझ आ गई। जो भूल तुमने की है वह मैं न करूंगा।
एण्ड्रू कारनेगी अपने दफ्तर सुबह नौ बजे पहुंच जाता था, चपरासी दस बजे पहुंचते, क्लर्क साढ़े दस पहुंचते, मैनेजर्स बारह बजे पहुंचते, डायरेक्टर्स एक बजे पहुंचते, डायरेक्टर्स तीन बजे विदा हो जाते, फिर मैनेजर्स विदा हो जाते, चपरासी भी साढ़े पांच बजे चले जाते; एण्ड्रू कारनेगी रात नौ बजे घर लौटता। नौ बजे से नौ बजे! चपरासियों से गई-बीती उसकी हालत थी। और घर कहीं एण्ड्रू कारनेगी जैसे लोग लौटते हैं? क्योंकि एण्ड्रू कारनेगी की पत्नी ने कहा है उसी सेक्रेटरी को कि भूल हो गई; इतने महत्वाकांक्षी आदमी से विवाह करने में कोई अर्थ नहीं; इससे तो बिना विवाह के रह जाना भी बराबर है। क्योंकि इतनी जिसकी महत्वाकांक्षा है वह प्रेम करने के लिए समय ही नहीं निकाल पाता।
एण्ड्रू कारनेगी के बच्चों ने लिखा है कि हमें अपने पिता से कोई संबंध नहीं हो पाया। हम ऐसे ही आते-जाते नमस्कार करते रहे, बस। एक अजनबी थे वे, क्योंकि उनको फुर्सत कहां थी! जिसको करोड़ों-अरबों रुपये छोड़ जाना हो, उसे बच्चों के साथ समय गंवाने की कहां सुविधा हो सकती है।
और इस आदमी ने मरते वक्त खुद क्या कहा? मरते वक्त किसी ने कहा कि अब तो तुम तृप्त होकर मर रहे हो? ..क्योंकि जमीन पर तुमसे ज्यादा धन किसी के भी पास नहीं है। उसने आंख खोली और उसने कहाः तृप्त! एण्ड्रू कारनेगी तृप्ति जानता ही नहीं। दस अरब रुपये छोड़ कर मर रहा हूं, लेकिन योजना सौ अरब कमाने की थी। हारा हुआ हूं। नब्बे अरब से हारा हूं।
यही सभी सफल लोगों की कथा है। असफलता सफल लोगों की कहानी है।
मैं तुमसे कहता हूंः धन्यभागी हो, अगर तुम्हारे जीवन में सफलता का भूत सवार न हो।