“मोह का मैकेनिज्म” मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं-दि अपोजिट इज आलवेज दि अट्रैक्यान

 “मोह का मैकेनिज्म” मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं-दि अपोजिट इज आलवेज दि अट्रैक्यान

ओशो- मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं। मोहित हम सदा विपरीत से होते हैं-दि अपोजिट इज आलवेज दि अट्रैक्यान। और हर आदमी जिससे मोहित होता है, वह उसके विपरीत होता है। यह विपरीत का नियम जीवन के समस्त पहलुओं पर लागू होता है। पुरुष स्त्रियों में आकर्षित होते हैं, उनकी विपरीतता के कारण। स्त्रियां पुरुषों में आकर्षित होती हैं, उनकी विपरीतता के कारण।

आप हैरान होंगे यह जानकर कि आप जो कुछ भी जीवन में पसंद करते हैं, जिसको आप कहते हैं, मैं बहुत पसंद करता हूं-आपको खयाल में ही न होगा-वह आपसे विपरीत चीज है। इसलिए जिसको आप पसंद करते हैं, अगर उससे दूर रहें, तो पसंदगी जारी रह सकती है। जिसे आप पसंद करते हैं, अगर उसके ही साथ रहने लगें, तो कलह अनिवार्य है। क्योंकि जो विपरीत है, उससे आप आकर्षित हो सकते हैं, लेकिन साथ नहीं रह सकते। क्योंकि साथ रहने पर विपरीत से कलह होनी शुरू हो जाएगी। जो विपरीत है, उससे संघर्ष होगा ही।

यह बड़े मजे की बात है। यह आदमी के मन का बहुत पैराडाक्सिकल हिसाब है कि विपरीत से आकर्षित होते हैं, लेकिन विपरीत के साथ रह नहीं सकते। आकर्षण दूर पर होता है, पास आने पर संघर्ष शुरू हो जाता है। वस्तुत: हमें जो आकर्षित करता है, बहुत गहरे में हम उससे भयभीत हो जाते हैं। और जो हमें आकर्षित करता है, बहुत गहरे में हमें वह शत्रु भी मालूम पड़ता है। क्योंकि हम उसके गुलाम हो जाते हैं, और उसका आकर्षण हमारे ऊपर पजेशन, मालकियत बन जाता है।

लेकिन सभी मोह, सभी अटैचमेंट, विपरीत से, अपोजिट से होता है। ठीक अपने समान व्यक्ति को आप प्रेम नहीं कर सकते। समान एक-दूसरे को रिपेल करते हैं। जैसे कि चुंबक, ऋण और धन एक-दूसरे को खींचते हैं। धन और धन को अगर पास लाएं, तो एक-दूसरे को खींचते नहीं हैं। ऋण और ऋण, एक-दूसरे को खींचते नहीं हैं। खिंचावट के लिए ऋण और धन चाहिए। निगेटिव और पाजिटिव पोल एक-दूसरे को खींचते हैं। समानजातीय, समानधर्मा व्यक्ति एक-दूसरे को खींचते नहीं।

इसलिए बहुत आश्चर्य की बात नहीं है कि बुद्ध और महावीर जैसे व्यक्ति एक ही समय में हों, लेकिन एक-दूसरे के पास बिलकुल नहीं आते। पोलेरिटी नहीं है। इसलिए अक्सर ऐसा होता है, अक्सर ऐसा होता है कि समानधर्मा व्यक्ति एक-दूसरे से फासले पर ही बने रहते हैं। विपरीत आकर्षित हो जाते हैं और निकट आ जाते हैं। विपरीत ही आकर्षण का सूत्र है।

इसलिए कृष्ण कहते हैं, जो इन दोनों मार्गों को तत्व से जानता है! तत्व से जानने का अर्थ है, वन हू हैज एक्सपीरिएंस्ट; जिसने अनुभव से जाना, वही तत्व से जानता है। और जिसने अनुभव से नहीं जाना, वह केवल सिद्धात से जानता है, तत्व से नहीं। तो सिद्धात से तो कोई भी पढ़कर जान सकता है। लेकिन वह ज्ञान तत्व-ज्ञान नहीं है। वह ज्ञान नालेज नहीं है, एक्येनटेंस है।

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गीता-दर्शन – भाग 4
तत्‍वज्ञ—कर्मकांड के पार
अध्‍याय—8 – प्रवचन—ग्‍यारहवां