आपकी वासनाओं के कारण ही अस्तित्व ने रुप ले लिया है

 आपकी वासनाओं के कारण ही अस्तित्व ने रुप ले लिया है

ओशो– कृष्ण कहते हैं, मैं वापस लौट आता हूं यह इस बात की खबर है कि अस्तित्व वैसा ही हो जाएगा, जैसी आपकी गहरी—गहरी मौन प्रार्थना होगी। जैसा गहरा भाव होगा, अस्तित्व वैसा ही राजी हो जाएगा।

इसके बड़े इंप्लीकेशंस हैं, इसकी बड़ी रहस्यपूर्ण उपपत्तिया हैं। इसका मतलब यह हुआ कि आप जो भी कर रहे हैं, वह भी! अस्तित्व ने रूप ले लिया है आपकी वासनाओं के कारण। आपने मांगी थी एक सुंदर स्त्री, वह आपको मिल गई। आपने मांगा था एक मकान, वह घटित हो गया। आपने चाहा था एक सुंदर शरीर, स्वस्थ शरीर, वह हो गया।

आप कहेंगे, नहीं होता। मांगी थी सुंदर स्त्री, मिल गई कुरूप। मांगा था सुंदर—स्वस्थ शरीर, मिल गई बीमारियों वाली देह। लेकिन उसमें भी आप खयाल करें कि उसमें भी आपकी ही मांग रही होगी। आपको जो भी मिल गया है, उसमें कहीं न कहीं आपकी मांग रही होगी। आपकी मांगें बड़ी कंट्राडिक्टरी हैं, विरोधाभासी हैं। इसलिए अस्तित्व भी बड़ी दिक्कत में होता है। क्योंकि आप एक तरफ से जो मांगते हैं, दूसरी तरफ से खुद ही गलत कर लेते हैं।

अभी एक लड़की मेरे पास आई और उसने कहा कि मुझे पति ऐसा चाहिए, शेर जैसा। सिंह हो। दबंग हो। लेकिन सदा मेरी माने! अब मुश्किल हो गई। अब इनको एक ऐसा पति मिलेगा जो देखने में शेर हो और भीतर से बिलकुल भेड़—बकरी हो। तब इसको तकलीफ होगी। इसकी मांगें विरोधी हैं। जो दबंग होगा, वह तुझसे क्यों दबेगा? वह सबसे पहले तुझी को दबाएगा। सबसे निकट तेरे। को ही पाएगा। अब इस स्त्री की जो मांग है, विरोधाभासी है, कट्राडिक्टरी है। हालांकि उसे खयाल भी नहीं है।

पुरुष ऐसी स्त्री चाहता है, जो बहुत सुंदर हो। ऐसी स्त्री जरूर चाहता है, जो बहुत सुंदर हो, लेकिन साथ में वह ऐसी स्त्री भी चाहता है, जो बिलकुल पक्की पतिव्रता हो। साथ में वह यह भी चाहता है कि किसी आदमी की नजर मेरी स्त्री की तरफ बुरी न पड़े। अब वह सब उपद्रव की बातें चाह रहा है। बहुत सुंदर स्त्री होगी, दूसरों की नजर भी पड़ेगी। और ध्यान रहे, बहुत सुंदर स्त्री भी बहुत सुंदर पुरुष की तलाश कर रही है, आपकी तलाश नहीं कर रही है।, तो पतिव्रता होना जरा मुश्किल है।

मैंने सुना है कि मुल्ला नसरुद्दीन बहुत देर तक अविवाहित रहा। लोग उससे पूछते कि मुल्ला विवाह क्यों नहीं कर लेते? वह कहता कि मैं एक पूर्ण स्त्री की तलाश कर रहा हूं सर्वांग सुंदर, सती, सीता—सावित्री, ऐसी कुछ। लोगों ने पूछा कि तुम के हुए जा रहे। हो, तलाश कब पूरी होगी? क्या इतने दिन से खोजते—खोजते तुम्हें कोई पूर्ण स्त्री नहीं मिली? उसने कहा, एक दफे मिली, लेकिन मुसीबत, वह भी किसी पूर्ण पुरुष की तलाश कर रही थी! मिली, बाकी मैं उसके योग्य नहीं था।

हमारी वासनाएं हैं विरोधी। हम जो मांग करते हैं, वे एक—दूसरे को काट देती हैं। अस्तित्व हमारी सब मांगें पूरी कर देता है, यह जानकर आप हैरान होंगे। लेकिन आपको पता ही नहीं, आप क्या मांगते हैं। कल जो मांगा था, आज इनकार कर देते हैं। आज जो मांगते हैं, सांझ इनकार कर देते हैं। आपको पता ही नहीं कि आपने इतनी मांगें अस्तित्व के सामने रख दी हैं कि अगर वह सब पूरी करे, तो आप पागल होंगे ही, कोई और उपाय नहीं है। और उसने सब पूरी कर दी हैं।

जिन्होंने धर्म में गहन प्रवेश किया है, वे जानते हैं कि आदमी की जो भी मांगें हैं, वे सब पूरी हो जाती हैं। यही आदमी की मुसीबत है।

ये कृष्‍ण राजी हो गए, यह इस बात की खबर है कि अस्तित्व राजी है, जरा सोच—समझकर उससे कुछ मांगना। बेहतर हो मत मांगना; उसी पर छोड़ देना कि जो तेरी मर्जी। तब आपकी जिंदगी में कष्ट नहीं होगा, क्योंकि तब उसकी मर्जी में कोई विरोध नहीं है। समर्पण का यही अर्थ है कि तू जो ठीक समझे, वह करना।हम में से जो बड़े से बड़े लोग हैं, वे भी इतनी हिम्मत नहीं कर पाते

🍁🍁ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३🍁🍁

गीता दर्शन—भाग—5
मांग और प्रार्थना—(प्रवचन—ग्‍यारहवां)
अध्‍याय—11