जिन लोगों ने भगवान को माँ के रूप में देखा है – दुर्गा या अम्बा के रूप में – उनकी समझ उन लोगों की तुलना में अधिक गहरी है जो उन्हें पिता के रूप में देखते हैं “ओशो”
ओशो– चाहे वह पदार्थ का जन्म हो या चाहे वह चेतना का जन्म हो; चाहे पृथ्वी का जन्म हो या स्वर्ग का, सब कुछ रहस्य के माध्यम से पैदा हुआ है जो अस्तित्व की गहराई में छिपा है। इसलिए जिन लोगों ने भगवान को माँ के रूप में देखा है – दुर्गा या अम्बा के रूप में – उनकी समझ उन लोगों की तुलना में अधिक गहरी है जो उन्हें पिता के रूप में देखते हैं।
यदि ईश्वर कहीं भी विद्यमान है, तो वह स्त्रैण है, क्योंकि पुरुष में इतने विशाल ब्रह्मांड को जन्म देने की क्षमता और धैर्य नहीं है। जो सितारों और चंद्रमाओं के असंख्य को जन्म देता है, उसके पास एक गर्भ होना चाहिए, जिसके बिना यह असंभव है।
इसलिए यहूदी आदेश के तीन विस्तार – यहूदी, ईसाई और इस्लाम – ने दुनिया को ईश्वर की अवधारणा दी है – वह है ईश्वर, पिता।
यह एक बहुत ही खतरनाक अवधारणा है, जो मनुष्य के अहंकार का आभार व्यक्त करती है। मनुष्य स्वयं को ईश्वर के रूप में स्थापित देखता है लेकिन इसका अस्तित्व की वास्तविकता से कोई संबंध नहीं है।
अधिक उचित एक सार्वभौमिक माँ की अवधारणा है।
हिंदुओं से ज्यादा कल्पनाशील, काव्यात्मक कोई जाति पृथ्वी पर नहीं है। उनके काव्य बड़े गहरे हैं। तुमने कभी देखी काली की प्रतिमा? वह मां भी है और मौत भी काल मृत्यु का नाम है, इसलिए काली; और मां भी है, इसलिए नारी सुंदर है, मां जैसी सुंदर है। मां जैसा सुंदर तो फिर कोई भी नहीं हो सकता। अपनी तो मां कुरूप भी हो तो भी सुंदर मालूम होती है। मां के संबंध में तो कोई सौंदर्य का विचार ही नहीं करता। मां तो सुंदर होती ही है। क्योंकि अपनी मां को कुरूप देखने का अर्थ तो अपने को ही कुरूप देखना होगा, क्योंकि तुम उसी के विस्तार हो। तो काली सुंदर है, सुंदरतम है। लेकिन फिर भी गले में नरमुंडों की माला है! सुंदर है, पर काली है–काल, मौत पश्चिम के विचारक जब इस प्रतीक पर सोचते हैं, तो वे बड़े चकित होते हैं कि स्त्री को इतना विकराल क्यों चित्रित किया है! और तुम उसे मां भी कहते हो ! और इतना विकराल ! इतना विकराल इसलिए कि जिससे जन्म मिला है, उसी से मृत्यु की शुरुआत भी हुई। विकराल इसलिए कि जन्म के साथ ही मौत भी आ गई है। तो मां ने जन्म ही नहीं दिया, मौत भी दी है। तो एक तरफ वह सुंदर है मां की तरह, स्रोत की तरह। और एक तरफ अंत की तरह, काल की तरह अत्यंत काली है। गले में नरमुंडों की माला है, हाथ में कटा हुआ सिर है, खून टपक रहा है, पैरों के नीचे अपने ही पति को दबाए खड़ी है। स्त्री के ये दो रूप – कि वह जीवन भी है और मृत्यु भी बड़ा गहरा प्रतीक है। क्योंकि जहां से जीवन आएगा, वहीं से मृत्यु भी आएगी; वे दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। और जैसा हिंदुओं ने इस बात को पहचाना, पृथ्वी पर कोई भी नहीं पहचान सका ।
ओशो