वह आदमी व्यर्थ जी रहा है, जिसके पास एक घंटा भी अपने लिए नहीं है “ओशो”
ओशो– वह आदमी व्यर्थ जी रहा है, जिसके पास एक घंटा भी अपने लिए नहीं है। वह आदमी जी ही नहीं रहा, जो एक घंटा भी अपनी इस भीतर की खोज के लिए नहीं लगा रहा है। क्योंकि आखिर में जब सारा हिसाब होता है, तो जो भी हमने शरीर के तल पर कमाया है, वह तो मौत छीन लेती है; और जो हमने भीतर के तल पर कमाया है, वही केवल मौत नहीं छीन पाती। वही हमारे साथ होता है।
इसे खयाल रखें कि मौत आपसे कुछ छीनेगी, उस समय आपके पास बचाने योग्य है, कुछ भी? अगर नहीं है, तो जल्दी करें। और एक घंटा कम से कम रोज क्षेत्रज्ञ की तलाश में लगा दें।
इतना ही करें, बैठ जाएं घंटेभर। कुछ भी न करें, एक बहुत छोटा-सा प्रयोग करें। इतना ही करें कि तादात्म्य न करूंगा घंटेभर, आइडेंटिफिकेशन न करूंगा घंटेभर। घंटेभर बैठ जाएं। पैर में चींटी काटेगी, तो मैं ऐसा अनुभव करूंगा कि चींटी काटती है, ऐसा मुझे पता चल रहा है। मुझे चींटी काट रही है, ऐसा नहीं।
इसका यह मतलब नहीं कि चींटी काटती रहे और आप अकड़कर बैठे रहें। आप चींटी को हटा दें, लेकिन यह ध्यान रखें कि मैं जान रहा हूं कि शरीर चींटी को हटा रहा है। चींटी काट रही है, यह भी मैं जान रहा हूं। शरीर चींटी को हटा रहा है, यह भी मैं जान रहा हूं। सिर्फ मैं जान रहा हूं।
पैर में दर्द शुरू हो गया बैठे-बैठे, तो मैं जान रहा हूं कि पैर में दर्द आ गया। फिर पैर को फैला लें। कोई जरूरत नहीं है कि उसको अकड़ाकर बैठे रहें और परेशान हों। पैर को फैला लें। लेकिन जानते रहें कि पैर फैल रहा है कष्ट के कारण, मैं जान रहा हूं।
भीतर एक घंटा एक ही काम करें कि किसी भी कृत्य से अपने को न जोड़े, और किसी भी घटना से अपने को न जोड़े। आप एक तीन महीने के भीतर ही गीता के इस सूत्र को अनुभव करने लगेंगे, जो कि आप तीस जन्मों तक भी गीता पढ़ते रहें, तो अनुभव नहीं होगा। एक घंटा, मैं सिर्फ ज्ञाता हूं इसमें डूबे रहें। कुछ भी हो, पत्नी जोर से बर्तन पटक दे…। क्योंकि पति जब ध्यान करे, तो पत्नी बर्तन पटकेगी। या पत्नी ध्यान करे, तो पति रेडिओ जोर से चला देगा, अखबार पढ़ने लगेगा, बच्चे उपद्रव मचाने लगेंगे।
जब बर्तन जोर से गिरे, तो आप यही जानना कि बर्तन गिर रहा है, आवाज हो रही है, मैं जान रहा हूं। अगर आपके भीतर धक्का भी लग जाए, शॉक भी लग जाए, तो भी आप यह जानना कि मेरे भीतर धक्का लगा, शॉक लगा। मेरा मन विक्षुब्ध हुआ, यह मैं जान रहा हूं। आप अपना संबंध जानने वाले से ही जोड़े रखना और किसी चीज से मत जुड्ने देना।
इससे बड़े ध्यान की कोई प्रक्रिया नहीं है। कोई जरूरत नहीं है प्रार्थना की, ध्यान की; फिर कोई जरूरत नहीं है। बस, एक घंटा इतना खयाल कर लें। थोड़े ही दिन में यह कला आपको सध जाएगी। और बताना कठिन है कि कला कैसे सधती है। आप करें, सध जाए, तो ही आपको समझ में आएगा।
ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३
गीता दर्शन,
भाग # 6 ( प्रवचन # 151 )