गीता घने संसार के बीच दिया गया संदेश है “ओशो”

 गीता घने संसार के बीच दिया गया संदेश है “ओशो”

ओशो- दो शरीरों को मिलना हो, तो भौतिक अर्थों में एकांत चाहिए। दो आत्माओं को मिलना हो, तो भीड़ में भी मिल सकती हैं। भौतिक अर्थों में एकांत का फिर कोई अर्थ नहीं है। इस भीड़ में भी दो आत्माओं का मिलन हो सकता है। क्योंकि भीड़ तो शरीर के तल पर है।

यह बहुत विचार की बात रही है। जिन लोगों ने भी गीता पर गहन अध्ययन किया है, उन्हें यह मन में विचार उठता ही रहा है, यह प्रश्न जगता ही रहा है, कि युद्ध के मैदान पर, भीड में, युद्ध के लिए तत्पर लोगों के बीच, कृष्ण को भी कहां की जगह मिली गीता का संदेश कहने के लिए! पर यह बहुत सुविचारित मालूम पड़ता है।

अध्यात्म, शरीर की भीड़ के बीच भी एकांत पा सकता है। अध्यात्म, बाजार के बीच भी अकेला हो सकता है। और आध्यात्मिक मिलन युद्ध के क्षण में भी घट सकता है। क्योंकि युद्ध, बाजार, शरीरों की भीड़, सब बाहर हैं। अगर भीतर तत्परता हो, पात्रता हो, और अगर भीतर ग्रहण करने की क्षमता हो, लीन होने की, विनम्र होने की, डूबने की, चरणों में गिर जाने की भावना हो, तो अध्यात्म कहीं भी घटित हो सकता है—युद्ध में भी।

इस बात को जिस अनूठे ढंग से गीता ने जगत को दिया है, कोई दूसरा शास्त्र नहीं दे सका। और इसलिए गीता अगर इतनी रुचिकर हो गई, और मन पर इतनी छा गई, तो उसका कारण है।

उपनिषद हैं, वनों के एकांत में, मौन, शांति में, गुरु और शिष्य के बीच, बड़े ध्यान के क्षण में संवादित हैं। बाइबिल है, बहुत एकांत में चुने हुए शिष्यों से कही गई बातें हैं। लेकिन गीता घने संसार के बीच दिया गया संदेश है। और युद्ध से ज्यादा घना संसार क्या होगा? वहा भी अध्यात्म घटित हो सकता है, अगर पात्र सीधा हो। और वह जो गोपनीय है, अधिकतम गोपनीय है, जो सबके सामने नहीं कहा जा सकता, वह भी कहा जा सकता है, अगर पात्र शांत, मौन, स्वीकार करने को तैयार हो।

फिर भौतिक अकेलेपन का अर्थ होता है, कोई और मौजूद नहीं। आध्यात्मिक अकेलेपन का अर्थ होता है, आप मौजूद नहीं।

इसे ठीक से समझ लें।

भौतिक भीड़ का अर्थ होता है, बहुत लोग मौजूद हैं। आध्यात्मिक एकांत का अर्थ होता है, शिष्य मौजूद नहीं।

गुरु तो गैर—मौजूदगी का नाम ही है, इसलिए उसकी हम बात ही न करें। गुरु का तो अर्थ ही है कि जो गैर—मौजूद हो गया। जो अब एब्सेंट है, जो उपस्थित नहीं है, जो दिखाई पड़ता है और भीतर शून्य है।

जब शिष्य भी गैर—मौजूद हो जाए, इतना डूब जाए कि भूल जाए अपने को कि मैं हूं तो आध्यात्मिक एकांत घटित होता है। और उस एकांत में ही वे गोपनीय सूत्र दिए जा सकते हैं; किसी और तरह से दिए जाने का जिनका कोई भी उपाय नहीं है।

🍁ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३🍁
गीता दर्शन—भाग—5
विराट से साक्षात की तैयारी—(प्रवचन—पहला)