धर्मों में विवाद नहीं है, हो नहीं सकता, सब विवाद दर्शनों का है
ओशो– प्रत्येक धर्म जन्मता तो उनके बीच है, जो पंडित नहीं होते, लेकिन हाथ उनके पड़ जाता है अंततः, जो पंडित होते हैं। यह दुर्भाग्य है, लेकिन यह भी नियम है।जब कोइ धर्म का जन्म होता है, तो वह उस आदमी में होता है, जिसका मन खो गया होता है, तब वह पूर्ण को जानता है। लेकिन जब लोग उससे समझते हैं, तो वे मन से ही समझेंगे, कोई और उपाय नहीं है। अगर मैं कोई ऐसी बात आपसे कहूं जो मैंने मन के पार जानी हो, तो आपसे जब कहूंगा और आप जब सुनेंगे, तो आप मन से ही सुनेंगे। और मन से सुनकर अगर आपने उसे मान लिया या न माना, आपने कोई भी नतीजा लिया, तो वह नतीजा आशिक होगा। और उस नतीजे पर ही कल मेरी बात के आधार पर कोई निर्माण हो सकता है, कोई शास्त्र बन सकता है, कोई धर्म बन सकता है। वह धर्म अधूरा होगा और झूठा हो जाएगा।
धर्म जब जन्मते हैं, तो पूर्ण होते हैं-महावीर में, कृष्ण में, या बुद्ध में, या मोहम्मद में। और जब चलते हैं, तो अपूर्ण हो जाते हैं। चलते हैं मन के सहारे; अधूरे हो जाते हैं। और अधूरे होते ही दूसरे अधूरे वक्तव्यों से संघर्ष शुरू हो जाता है। मोहम्मद का और महावीर का कोई संघर्ष नहीं है। बुद्ध का और कृष्ण का कोई संघर्ष नहीं है। लेकिन हिंदू और मुसलमान का है, जैन और बौद्ध का है। होगा ही।
जहां मन मिट गया है, वहा सभी वक्तव्यों के भीतर जो छिपा है, वह दिखाई पड़ जाता है। और जहां मन है, वहा एक वक्तव्य सही और शेष गलत मालूम पड़ते हैं। यह मन की पहली अड़चन है कि मन बांटकर देखता है।
🍁🍁ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३🍁🍁
गीता-दर्शन – भाग 4