कितना ही समय तुम्हें मिले, तुम्हारी वासनाएं कभी पूरी नहीं होंगी “ओशो”
ओशो– मौत दुख देती है, क्योंकि मौत के साथ पहली दफा हमें पता चलता है, अब कोई भविष्य नहीं है। मौत दरवाजा बंद कर देती है भविष्य का, वर्तमान ही रह जाता है। और वर्तमान में तो सिर्फ टूटे हुए वासनाओं के खंडहर होते हैं, राख होती है, असफलताओं का ढेर होता है, विषाद होता है, संताप होता है। कोई वासना की पूर्ति का तो उपाय नहीं दिखता, और थोड़ा भविष्य चाहिए।महाभारत में कथा है ययाति की। ययाति सौ वर्ष का हुआ। बड़ा सम्राट था, उसके सौ बेटे थे। अनेक उसकी पत्नियां थीं, बड़ा साम्राज्य था। सौ वर्ष का हुआ, मौत उसके द्वार पर आई, तो ययाति ने कहा कि एक क्षण रुक। अभी तो मेरा कुछ भी काम पूरा नहीं हुआ। अभी तो मैं वहीं खड़ा हूं जहां जन्म के दिन खड़ा था। यह भी कोई आने का वक्त है! अभी तो कोई भी सपना सत्य नहीं हुआ। अभी तो सभी बीज बीज ही हैं। अभी कोई बीज अंकुरित नहीं हुआ। मुझे समय चाहिए।
मृत्यु ने मजाक में ही ययाति से कहा, अगर तेरा कोई पुत्र तुझे अपना जीवन दे दे, तो मैं उसे ले जाऊं और तुझे छोड़ जाऊं! ययाति ने अपने सौ पुत्रों को कहा कि जीवन तुम मुझे दे दो, मेरा जीवन अधूरा रह गया है। तुम मेरे बेटे हो, मैंने तुम्हें पैदा किया। तुम्हें ही पैदा करने और बड़े करने में तो मैंने जीवन गंवाया। तुम्हारे लिए ही तो मैं नष्ट हुआ। तुम मुझे अपना जीवन दे दो; मौत मुझे छोड़ने को राजी है।
लेकिन बेटों की अपनी वासनाएं थीं, जो और भी अधूरी थीं। बेटों को तो और भी समय चाहिए था। लेकिन एक छोटा बेटा राजी हो गया। बड़े बेटे समझदार थे, अनुभवी थे, वे कोई भी राजी नहीं हुए। और उन्होंने कहा कि आपको ऐसा कहते संकोच भी नहीं होता! आप भी मरने को राजी नहीं हैं! और आप तो सौ वर्ष भी जी लिए, हम तो अभी इतना भी नहीं जीए हैं। और हमसे आप मरने के लिए कहते हैं!
लेकिन एक छोटा बेटा राजी हो गया। ययाति ने उससे पूछा भी कि तू क्यों राजी हो रहा है? उसने कहा कि मैं इसलिए राजी हो रहा हूं कि अगर सौ वर्ष जीकर भी आपकी वासना तृप्त नहीं हुई, तो मैं भी इस मेहनत में नहीं पडूगा। सौ वर्ष बाद मरना ही है, तो मेरी जिंदगी बेकार चली जाएगी, अभी कम से कम इतने तो काम आ रही है कि आप कुछ दिन और जी लेंगे।
फिर भी ययाति को न सूझा! अपनी जिंदगी कठिनाई में हो, तो फिर हम किसी की भी जिंदगी ले सकते हैं। हम कितना ही कहते हों कि बाप बेटे के लिए जीता है। हम कितना ही कहते हों, भाई भाई के लिए, मित्र मित्र के लिए; लेकिन ये बातें हैं। मौत सामने खड़ी हो जाए, तो सब बदल जाता है।
बेटा राजी हो गया। बेटा मर गया, ययाति और सौ साल जीया। ये सौ साल कब निकल गए, पता न चले। मौत फिर द्वार पर आ गई, तभी ययाति को खयाल आया। और उसने मौत से कहा, इतनी जल्दी! क्या सौ वर्ष पूरे हो गए? मेरी वासनाएं तो उतनी की उतनी ही अधूरी हैं; रंचमात्र भी फर्क नहीं पड़ा।
इस बीच ययाति के और पुत्र हो गए थे। मौत ने कहा कि फिर किसी पुत्र को पूछ लो, अगर कोई राजी हो।
और कथा बड़ी अदभुत है कि ऐसा दस बार हुआ और ययाति हजार साल जीया। और हजार साल बाद जब मौत आई, तब भी ययाति ने वही कहा कि इतनी जल्दी! अभी मुझे समय चाहिए।
मौत ने उसे कहा, ययाति, कितना ही समय तुम्हें मिले, वासनाएं पूरी नहीं होंगी। समय छोटा पड़ जाता है। समय जो कि अनंत है, वासनाओं से छोटा पड़ जाता है। मौत जब भी द्वार पर आई, ययाति कंपने लगा।
हम सब की भी वही दशा है। और ययाति की कथा हमें लगेगी कि काल्पनिक है, लेकिन समझने जाएं, तो हम भी इस तरह बहुत— से जन्म ले चुके हैं और बहुत हजारों वर्ष जी चुके हैं। हमारी भी यह कोई पहली जिंदगी नहीं है। हर जिंदगी में हमने यही किया है। फिर समय मांगा है, हमें फिर जन्म मिल गया है। हर बार वासना अधूरी रही है। हम पुनर्जन्म पा गए हैं। और हर बार जब मौत आती है, तो हम फिर उतने के उतने अधूरे हैं। कहीं कुछ भरता नहीं हैl
मृत्यु घबड़ा देती है, क्योंकि भविष्य समाप्त हो जाता है। और तब जिंदगी की व्यर्थता दिखाई पड़ती है, लेकिन तब कोई प्रयोजन नहीं। तब कोई अर्थ नहीं। तब जिंदगी लगती है एक जुआ थी, जिसमें हम हारे।
🍁🍁ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३🍁🍁
गीता दर्शन—भाग—5
परम गोपनीय—मौन—(प्रवचन—चौदहवा)
अध्याय—10