अनुभव से जब तुम कुछ सीखते हो, तो ज्ञान निर्मित होता है। और अनुभव को जब तुम दोहराये चले जाते हो, तो मूढ़ता और जड़ता निर्मित होती है “ओशो”

 अनुभव से जब तुम कुछ सीखते हो, तो ज्ञान निर्मित होता है। और अनुभव को जब तुम दोहराये चले जाते हो, तो मूढ़ता और जड़ता निर्मित होती है “ओशो”

प्रश्न. मैंने सैंकड़ों सबंध बनाये, शारीरिक और मानसिक दोनों, लेकिन आखिर में बढ़ती हुई अतृप्ति के सिवाय कुछ भी हाथ नहीं आया। मैं कुछ पकड़ नहीं पाती, सब हाथ से फिसल-फिसल जाता है और मैं बेबस और भयभीत खड़ी देखती रहती हूं; ऐसा क्यों है ?-

ओशो- तुम्हारा कुछ कसूर नहीं। इस जगत के सारे अनुभव पानी के बुलबुले जैसे हैं, कुछ कभी मिलता नहीं। मृगमरीचिकायें हैं, इंद्रधनुष हैं। दूर से खूब सुंदर, दूर के ढोल बड़े सुहावने। मुट्ठी बांधो, कुछ भी हाथ न आयेगा। तुम्हारा कोई कसूर नहीं है। शारीरिक संबंध या मानसिक संबंध–इनसे कुछ भी मिला नहीं। इतना ही मिलता है इनसे कि इनमें कुछ सार नहीं। मगर यह बड़ी बात है। ये असार है-ऐसा अनुभव इनसे मिलता है। यह कोई छोटी शिक्षा नहीं है! क्योंकि जिसने असार देख लिया है, उसको सार देखने में ज्यादा देर न लगेगी। असार को असार की भांति देख लेना, सार को सार की भांति देखने का पहला कदम है।इतना भी साफ हो गया कि इस संसार के सारे संबंध बनते हैं, जाते हैं; हाथ खाली के खाली रह जाते हैं–बड़ा गहरा अनुभव है। इस अनुभव को स्मरण में रखो। अब बार-बार इनको दोहराये मत जाओ। क्योंकि पुनरुक्ति से कुछ बढ़ेगा नहीं। इनसे कुछ सीखो।

अनुभव से जब तुम कुछ सीखते हो, तो ज्ञान निर्मित होता है। और अनुभव को जब तुम दोहराये चले जाते हो, तो मूढ़ता और जड़ता निर्मित होती है। दुनिया में बहुत कम लोग हैं, जो अनुभव से सीखते हैं। अनुभव से जो सीख ले, वही समझदार है।

एक दिन क्रोध किया: दूसरे दिन क्रोध किया; हजार बार क्रोध किया, अब तक सीखा नहीं! इतने बार क्रोध करके पाया कि कुछ भी नहीं मिलता, तो अब तो रुको! अब तो जाने दो-इस क्रोध को। अगर हजार बोर क्रोध करके भी तुमने इतनी सी बात सीख ली कि क्रोध में कुछ सार नहीं, तो वे हजार बार का क्रोध भी तुम्हें बहुत कुछ दे गये; वे भी व्यर्थ न गये, उससे भी तुमने कुछ निचोड़ लिया; कुछ इत्र उनसे भी निचोड़ लिया। अब तुम क्रोध से मुक्त हो जाओ।

हजार बार काम-वासना में उतरे और कुछ भी न पाया, तो अब जाओ। और फर्क समझ लेना: मैं यह नहीं कह रहा हूं कि काम-वासना को त्यागो। मैं कह रहा हूं-जागो…

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३

कन थोरे कांकर घने