विज्ञान से तृप्ति का अर्थ है, जिसके जीवन से कुतूहल विदा हो गया, असल में क्यूरिआसिटी बहुत बचकाने मन का लक्षण है “ओशो”

 विज्ञान से तृप्ति का अर्थ है, जिसके जीवन से कुतूहल विदा हो गया, असल में क्यूरिआसिटी बहुत बचकाने मन का लक्षण है “ओशो”

ओशो- कुतूहल व्यर्थ है, बचकाना है। यह बहुत सोचने जैसी बात है। जितनी छोटी उम्र, उतना कुतूहल होता है–यह कैसा है, वह कैसा है? यह क्यों हुआ, यह क्यों नहीं हुआ? जितना छोटा मन, जितनी कम बुद्धि, उतना कुतूहल होता है।इसलिए एक और बड़े मजे की बात है कि जिस तरह बच्चे कुतूहल से भरे होते हैं, इसी तरह जो सभ्यताएं बचकानी होती हैं, वे विज्ञान को जन्म देती हैं। बहुत हैरानी होगी! जो सभ्यताएं जितनी चाइल्डिश होती हैं, उतनी साइंटिफिक हो जाती हैं।

योरोप या अमेरिका एक अर्थों में बहुत बचकाने हैं, बहुत बालपन में हैं, इसलिए वैज्ञानिक हैं। कुतूहल भारी है। चांद पर क्या है, जानना है! कुतूहल भारी है। मंगल पर क्या है, जानना है! जानते ही चले जाना है। कुतूहल का तो कोई अंत नहीं है। क्योंकि संसार का कोई अंत नहीं है।

इसलिए कोई सोचता हो कि जब मैं सब जान लूंगा, तब तृप्त होऊंगा, तो वह पागल है। वह सिर्फ पागल हो जाएगा।

ज्ञान-विज्ञान से तृप्त है जिसका मन, इसका अर्थ? इसका अर्थ है, जिसका कुतूहल चला गया। जो इतना प्रौढ़ हो गया कि अब वह यह नहीं पूछता कि ऐसा क्यों है, वैसा क्यों है? प्रौढ़ व्यक्ति कहता है, ऐसा है।

फर्क समझें। बच्चे पूछते हैं, ऐसा क्यों है? वृक्ष के पत्ते हरे क्यों हैं? गुलाब का फूल लाल क्यों है? आकाश में तारे क्यों हैं? प्रौढ़ व्यक्ति कहता है, ऐसा है, दिस इज़ सो। वह कहता है, ऐसा है। क्योंकि अगर पत्ते वृक्ष के पीले होते, तो भी तुम पूछते कि पीले क्यों हैं? अगर वृक्ष पर पत्ते न होते, तो तुम पूछते कि पत्ते क्यों नहीं हैं?

प्रौढ़ व्यक्ति जानता है, जगत ऐसा है। इसलिए प्रौढ़ सभ्यताओं ने विज्ञान को जन्म नहीं दिया, प्रौढ़ सभ्यताओं ने धर्म को जन्म दिया। जब भी सभ्यता अपने प्राथमिक चरण में होती है, तो विज्ञान को जन्म देती है; और जब सभ्यता अपने शिखर पर पहुंचती है, तो धर्म को जन्म देती है। धर्म उस प्रौढ़ मस्तिष्क की खबर है, जो कहता है, चीजें ऐसी हैं–थिंग्स आर सच।

कुतूहल व्यर्थ है, बचकाना है। बच्चे करें, ठीक। कुतूहल बचपन है।

☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई- ३☘️☘️
गीता-दर्शन – भाग 3
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