ओशो- कुछ आहार उत्तेजक आहार हैं, उत्तेजना देते हैं। वे सब बाधा हैं आध्यात्मिक जीवन में। कुछ आहार अनुत्तेजक हैं। वे कोई उत्तेजना नहीं देते। वे आध्यात्मिक जीवन में सहयोगी होते हैं। कुछ आहार हैं जो मादक हैं, जो नशा देते हैं। कुछ आहार गैर-मादक हैं, नशा नहीं देते हैं। मादक आहार, उत्तेजक आहार, बाधा हैं आध्यात्मिक जीवन में, लेकिन मादक आहार के प्रति हमारी जो आकांक्षा है, जो रस है, उत्तेजक आहार को लेने की जो हमारे भीतर वासना है, वह ध्यान से विलीन होगी। जैसे-जैसे चित्त शांत होने लगेगा, वैसे-वैसे आहार में परिवर्तन होने लगेगा।अभी मेरे पास ऐसी कुछ घटनाएं घटी हैं। कुछ मित्र थे जो मांसाहारी थे। वे जब शुरू-शुरू में मेरे पास आए, तो उन्होंने मुझसे आते से ही यह पूछा कि “हम मांसाहारी हैं, कहीं आप इस ध्यान में यह बाधा तो नहीं डालते हैं कि मांसाहार छोड़ना पड़ेगा। हम लोग यह नहीं छोड़ सकते।’ तो मैंने उनसे कहा, “मैं आहार की तो कोई बात ही नहीं करता। आपको जो खाना है, मजे से खाओ। मुझे कुछ लेना-देना नहीं है, लेकिन ध्यान शुरू करो।’
उन्होंने ध्यान शुरू किया। एक महीना, दो महीना उन्होंने आकर मुझसे कहा, “यह तो बड़ी कठिनाई हो गई, मांसाहार करना संभव नहीं रहा। और अब यह हैरानी होती है कि इतने दिन तक हम कैसे करते रहे!’ मैंने कहा, “यह अलग बात है। अब अगर छूट जाए, तो यह सहज छूट गया, यह अलग बात है। छोड़ने का प्रश्न नहीं है इसमें।’
अगर मनुष्य चित्त शांत हो जाए उसका तो चित्त की अशांति के कारण उत्तेजक आहार अच्छे लगते हैं, चित्त शांत हो जाए, उत्तेजक आहार अच्छे नहीं लगेंगे। हमने उलटी स्थिति पकड़ ली है। हम सोचते हैं कि उत्तेजक आहार पहले छूटें, तब चित्त शांत होगा। उत्तेजक आहार पहले नहीं छूट सकते। हम सोचते हैं, आदमी बहुत सुंदर वेशभूषा छोड़े, तब चित्त शांत होगा। गलत है। चित्त शांत हो जाए, तो वेशभूषा साधारण सहज हो जाएगी। मूल चीज चित्त है।