मुहूर्त कोई समय की धारा का अंग नहीं है तो फिर क्या होता है मुहूर्त का अर्थ? “ओशो”

 मुहूर्त कोई समय की धारा का अंग नहीं है तो फिर क्या होता है  मुहूर्त का अर्थ? “ओशो”

ओशो- मुहूर्त का अर्थ होता है : दो क्षणों के बीच का अंतराल। मुहूर्त कोई समय की धारा का अंग नहीं है। समय का एक क्षण गया, दूसरा क्षण आ रहा है, इन दोनों के बीच में जो बड़ी पतली संकरी राह है—मुहूर्त।शब्द फिर विकृत हुआ। अब तो लोग कहते हैं, उसका उपयोग ही तभी करते हैं, जब उन्हें यात्रा पर जाना हो, विवाह करना हो, शादी करनी हो, तो वे कहते हैं, शुभ मुहूर्त। उसे वे पंडित से पूछने जाते हैं कि शुभ मुहूर्त कौन सा है। लेकिन यह शब्द बड़ा अदभुत है।

शुभ मुहूर्त का अर्थ होता है : कोई भी यात्रा शुरू करना, कोई भी यात्रा—वह विवाह की हो, प्रेम की हो, काम—धंधे की हों—शुरू करते वक्त मन रुक जाए, ऐसी दशा में शुरू करना। मन से शुरू मत करना, अन्यथा कष्ट पाओगे, भटक जाओगे। अ—मन की अवस्था में करना, शून्य से शुरू करना, तो शुभ ही शुभ होगा, मंगल ही मंगल होगा। क्योंकि शून्य से जब तुम शुरू करोगे, तो तुम शुरू न करोगे परमात्मा तुम्हारे भीतर शुरू करेगा।
शुभ मुहूर्त का अर्थ बड़ा अदभुत है! उसको ज्योतिषी से पूछने की जरूरत नहीं है। ज्योतिषी से उसका कोई संबंध नहीं है। उसका संबंध अंतर—अवस्था से है, अंतर—ध्यान से है। कोई भी काम करने के पहले, कामना से न हो, अत्यंत शांत मौन अवस्था से हो, ध्यान से हो।

थोड़ा सोचो अगर तुम्हारा प्रेम किसी स्त्री से है या किसी पुरुष से है, ध्यान की अवस्था से शुरू हो, तो तुम्हारे जीवन में ऐसे फूल लगेंगे, तुम्हारा संग—साथ ऐसा गहरा होगा, तुम्हारा संग—साथ ऐसा हो जाएगा कि दो न बचेंगे, एक हो जाओगे।
प्रेम की यात्रा भी ध्यान से शुरू हो तो शुभ मुहूर्त में शुरू हुई। किसी से मित्रता मुहूर्त में हो, शुभ मुहूर्त में हो, ध्यान के क्षण में हो, तो यह मित्रता टिकेगी, यह पारगामी होगी, यह परलोक तक जाएगी। यह मित्रता टूटेगी न। संसार के झंझावात इसे मिटा न पाएंगे। तूफान आकर इसे और सुदृढ़ कर जाएंगे, क्योंकि इसकी गहराई इतनी है, इसकी जड़ें इतनी गहरी हैं, ध्यान से उठी हैं l

मुहूर्त बड़ा अनूठा शब्द है। समय के दो क्षणों के बीच में जो समयातीत जरा सी झलक है, वही मुहूर्त है। मुहूर्त समय का कोई नाप—जोख नहीं है, समय के बाहर की झलक है। जैसे क्षणभर को बादल हट गए हों और तुम्हें चांद दिखाई पड़ा, फिर बादल इकट्ठे हो गए—ऐसे क्षणभर को तुम्हारे विचार हट गए और तुम स्वयं को दिखाई पड़े, भीतर की रोशनी अनुभव हुई। उसी रोशनी में पहला कदम उठे तो यात्रा शुभ हुई—वह कोई भी यात्रा हो—उस यात्रा में फिर दुर्घटनाएं न होंगी। उस यात्रा में दुर्घटनाएं भी होंगी तो भी सौभाग्य सिद्ध होंगी। उस यात्रा में अभिशाप भी मिलेंगे तो आशीर्वाद बन जाएंगे; तुम ठीक—ठीक क्षण में चले!

OSHO एस धम्मो सनंतनो