ओशो- ममता शब्द बना है मम से। मम यानी मेरा, ममता यानी मेरेपन का भाव। और ध्यान रहे, अधिकतर लोग ममता का अर्थ प्रेम कर लेते हैं। प्रेम और ममता बड़े विपरीत हैं। प्रेम में मेरेपन का भाव होता ही नहीं। क्योंकि मेरेपन का भाव वस्तुओं से हो सकता है; व्यक्तियों से कैसे हो सकता है?तुम कह सकते हो कि यह मकान मेेरा है। चलो, ठीक, कबीर तो इसमें भी कहते हैं कि शरम खाओ, संकोच करो, लाज खाओ। मकान को मेरा कह रहे हो! यह तो परमात्मा का है। तुम्हारा इसमें क्या है? मेरा-तेरा क्या है? लेकिन चलो, माफ कर दें आदमी को–कि मकान को मेरा कहे। लेकिन पत्नी को मेरा कहे, यह तो ज्यादती हो गई; यह तो माफ नहीं की जा सकती। क्योंकि पत्नी के पास आत्मा है! पत्नी वस्तु तो नहीं है! कोई कुर्सी तो नहीं है! कोई मकान तो नहीं है! कोई फर्नीचर तो नहीं है कि तुम कहो कि मेरा है! कि लेबल लगा दो। पत्नी के पास व्यक्तित्व है। वस्तु तो नहीं है पत्नी। कैसे मेरा कह सकते हो? मेरे कहने से तो व्यक्तित्व मर जाता है और वस्तु हो जाती है!
ममता में प्रेम नहीं है; ममता में मालकियत है। और मालकियत में कहां प्रेम?
मालिक तो–वस्तुओं का–आदमी होता है। व्यक्तियों का कैसे? हालांकि कबीर तो कहते हैंः वस्तुओं के भी मालिक मत होना। यह भी परमात्मा के साथ ज्यादती है। यह अन्याय है, अनैतिक है। कुछ तो संकोच करो, वे कहते हैं, यहां अपना क्या है? सब उसका है।
ये वृक्ष जो इस बगीचे में उगे हैं, क्या तुम कहोगेः हमारे हैं? तुमने इनमें क्या किया? एक पत्ता तो तुम पैदा नहीं कर सकते। जिसके हैं, उसके हैं। परमात्मा के हैं। हां, तुमने कुछ थोड़ी सी सेवा की हैः पानी डाला है; खाद जुटाई है। तुम निमित्त के कारण बने हो। तुम से थोड़ा सहयोग मिला है। परमात्मा ने तुम्हारा उपयोग किया है। उसे धन्यवाद दो, कि तूने मुझे इन वृक्षों की सेवा में थोड़ा अपनी सेवा का मौका दिया लेकिन ये वृक्ष तुम्हारे नहीं हैं। न बच्चे तुम्हारे हैं।
जीवन पर हक हो ही नहीं सकता। जीवन पर ममता का भाव घातक है। और दुनिया इतनी तकलीफ पा रही है–इस ममता के भाव के कारण।
☘️☘️ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-3☘️☘️
कहै कबीर मैं पूरा पाया–(प्रवचन-06)
सदगुरु की महत्ता-छठवां प्रवचन