ओशो- भक्ति एक अनूठी शराब है; अंगूर की नहीं–आत्मा को। और भक्ति और शराब में कुछ गहरा तालमेल है।
शराब भुलाती है; भक्ति मिटाती है। शराब क्षण भर को करती है वही काम, जो भक्ति सदा के लिए कर देती है। शराब क्षण-भंगुर भक्ति है; और भक्ति है; और भक्ति शाश्वत शराब है।
कोई किस तरह राज-ए-उल्फत छुपाये।
निगाहें मिली और कदम डगमगाये।
परमात्मा से आंख मिल जाए, तो फिर छिपाओगे कहां? लाख छिपाओ, पता चल-चल जायेगा। उठते-बैठते, बोलते न बोलते, सोते-जागते पता चल जायेगा। कोई कभी छिपा पाया परमात्मा को जानकर? कोई उपाय नहीं है–छिपाने का।
यह तो ऐसे है, जैसे अंधेरा रात में किसी ने दीया जलाया हो, और दीए को छिपाने की कोशिश करे। कैसे छिपायेगा? फूल खिला हो, और फूल सुगंध को छिपाने की कोशिश करे, कैसे छिपेगी?
कोई किस तरह राज-ए-उल्फत छिपाते। यह प्रेम का रहस्य छिपाये छिपता नहीं। निगाहें मिली और कदम डगमगाये। और जब पहली खबर मिलती है कि परमात्मा से कुछ संबंध जुड़ा, वह कदम के डगमगाने से मिलती है। एक मस्ती बहने लगती है। इसलिए मैंने शराब की बात कही।
और तुमसे मैं यह भी कह दूं कि इस संसार में मिलने वाली शराब तुम तब तक छोड़ न सकोगे, जब तक तुम परमात्मा की शराब का स्वाद न ले लो। जिस दिन परमात्मा की शराब का स्वाद आ गया, सब शराबें फीकी और तिक्त कड़वी हो जाती हैं। फिर कोई शराब जंचती नहीं। जिसने उस परम को पी लिया, फिर और कोई चीज कंठ में उतरती नहीं; फिर रास ही आतीं। फिर सब चीजें छोटी पड़ जाती हैं।
चाल है मस्त, नजर मस्त, अदा में मस्ती।
जैसे आते हैं वो, लौटे हुए मैखाने से।।
मंदिर से भक्त को आते देखो! पूजागृह से भक्त को आते देखो। या पूजागृह की तरफ जाते भक्त को देखो। उसकी धुन सुनो। उसके हृदय के पास थोड़ा कान लगाओ। उसके पास तुम तरंगें पाओगे–शराब की।
भक्त के साथ रहो, तो धीरे-धीरे तुम भी डूबने लगोगे। भक्त का संग-साथ तुम्हें भी बिगाड़ देगा। मीरा ने कहा है: सब लोक-लाज खोई–साध संगत। साधुओं के संग में सब लोक-लाज खो गई।
मीरा राज-घराने से थी; फिर राजस्थानी राज-घराने की! जहां घूंघट उठता ही नहीं। फिर सड़कों पर नाचने लगी। शराब न कहोगे, तो क्या कहोगे? पागल हो उठी। दीवानी हो गई। राहों पर, चौराहों पर नृत्य चलने लगा। जिस राजरानी का चेहरा कभी किसी ने न देखा था, भीड़ और बाजार के साधारण जन उसका नृत्य देखने लगे! घर के लोग अगर परेशान हुए होंगे, तो कुछ आश्चर्य नहीं है। और उन्होंने अगर जहर का प्याला भेजा, तो मीरा से दुश्मनी थी–ऐसा नहीं। मीरा को पागल समझा। और घर की प्रतिष्ठा भी दांव पर लगाए दे रहे है!
लेकिन जिसको परमात्मा की शराब चढ़ जाए, फिर कोई और प्रतिष्ठा मूल्य नहीं रखती।
साकिया तशनगी की ताब नहीं,
जहर दे दे अगर शराब नहीं।
और अगर परमात्मा ही पिलाने वाला हो, तो फिर कौन फिक्र करता है। अगर जहर भी पिला दे, तो ठीक।
साकिया तसनगी की बात नहीं। तू फिक्र मत कर। अगर शराब न हो, तो जहर दे दे। जहर दे दे, अगर शराब नहीं। चलेगा। तेरे हाथ से जो मिल जायेगा, वही अमृत है।
वाइज न तुम पियो, न किसी को पिला सको।
क्या बात है तुम्हारे शराब-एत्तहूर की।।
इसलाम कहता है कि स्वर्ग में शराब के चश्मे बह रहे हैं। पूछना चाहिए कि क्या करोगे, इन शराब के चश्मों का! क्योंकि यहां तो तुम लोगों को सिखाते हो–शराब न पीयो। जो शराब पीते हैं, वे तो नर्क जायेंगे। वे तो बहिश्त जायेंगे नहीं। जाहिर है–गणित साफ है। जो यहां शराब नहीं पीते, शराब छोड़े हुए हैं, जीवन का सब राग-रंग तोड़ा हुआ है, गृहस्थ नहीं है–विरागी हैं, उदासी हैं–वे जायेंगे स्वर्ग। मगर वे करेंगे क्या कहां–शराब के चश्मों का–जिन्होंने कभी पी ही नहीं।
शराब कुछ बुरा शब्द नहीं है। प्यारा शब्द है। अर्थ समझो। अर्थ इतना ही है–कि ऐसी डुबकी लगाओ परमात्मा में–उसके नाम ऐसे डूबो कि तुम्हें अपना स्मरण न रह जाए। मैं हूं–यह भाव खो जाए। और तब तुम समझोगे कि मैं किस शराब की बात कर रहा हूं।
मिरी शराब की क्या कद्र तुझको ऐ वाइज
जिसे मैं पी के दुआ दूं वह जन्नती हो जाए।।
जिस शराब की मैं बात कर रहा हूं, मिरी शराब की क्या कद्र तुझको ऐ वाइज–हे धर्मगुरु, तुझे मेरे शब्द शराब का कुछ भी पता नहीं है; उसकी तुझे कद्र भी नहीं हो सकती। तू समझ ही न पायेगा। जिसे मैं पी के दुआ दूं, वह जन्नती हो जाये। जिसे मैं पी कर दुआ दे दूं, स्वर्ग के पाने का उसे मजा आ जाए।