उपनिषद ने कहा है कि अज्ञानी तो भटकते ही हैं अंधकार में, ज्ञानी महाअंधकार में भटक जाते हैं! “ओशो”

 उपनिषद ने कहा है कि अज्ञानी तो भटकते ही हैं अंधकार में, ज्ञानी महाअंधकार में भटक जाते हैं! “ओशो”

ओशो- उपनिषदों ने कहा है बड़ा बहुमूल्य सूत्र, संभवत: इससे क्रांतिकारी वचन जगत में खोजना कठिन है। और उपनिषद को लोग पढ़ते रहते हैं और उसी उपनिषद को कंठस्थ कर लेते हैं! ऐसा आदमी मजेदार है और विचित्र है।उपनिषद ने कहा है कि अज्ञानी तो भटकते ही हैं अंधकार में, ज्ञानी महाअंधकार में भटक जाते हैं! यह किन ज्ञानियों के लिए कहा होगा जो महाअंधकार में भटक जाते हैं! और मजा यह है कि इसी उपनिषद को लोग कंठस्थ कर लेते हैं। और इस सूत्र को भी कंठस्थ कर लेते हैं। और इस सूत्र को रोज कहते रहते हैं कि अज्ञानी तो भटकते ही हैं अंधकार में, शानी महाअंधकार में भटक जाते हैं। इसको भी कंठस्थ कर लेते हैं। सोचते हैं, इसे कंठस्थ करके वे ज्ञानी हो गए। इन्हीं ज्ञानियों के भटकने के लिए यह सूत्र है।

आदमी विचित्र है। और आदमी अपने को धोखा देने में अति कुशल है। और जब वह खुद को धोखा देता है, तो धोखा तोड्ने का उपाय भी नहीं बचता। दूसरे को धोखा दें, तो दूसरा बचने की भी कोशिश करता है। आप खुद ही अपने को धोखा दें, तो फिर बचने का भी कोई उपाय नहीं रह जाता।अगर कोई आदमी सोया हो, तो उसे जगाया भी जा सकता है। लेकिन कोई जागा हुआ सोया हुआ बना पड़ा हो, तो उसे जगाना बिलकुल मुश्किल है। कैसे जगाइएगा? अगर वह आदमी जाग ही रहा हो और सोने का बहाना कर रहा हो, तब फिर जगाना बहुत मुश्किल है। नींद तोड़ देना आसान है, लेकिन झूठी नींद को तोड़ना बहुत मुश्किल है।

अज्ञानी को तत्व—ज्ञान की तरफ ले जाना इतना कठिन नहीं है, जितना पंडित को, ज्ञानी को ले जाना मुश्किल हो जाता है। क्योंकि वह कहता है, मैं जानता ही हूं।

अभी परसों सुबह एक संन्यासी आए। बीस वर्ष से घूमते हैं, खोजते हैं। कहते हैं, हिंदुस्तान में ऐसा एक महात्मा नहीं, जिसके पास मैं न हो आया हूं। ऐसा एक शास्त्र नहीं, जो उन्होंने न पढ़ा हो। ऐसी एक विधि नहीं, जो वह कहते हैं, मैंने न कर ली हो।तो मैंने उनसे पूछा, आप सब सत्संग कर लिए, सब शास्त्र पढ़ लिए, सब विधियां कर लीं, अब क्या इरादे हैं? अगर आपको पक्का हो गया है कि आपको अभी तक नहीं मिला, तो ये सब शास्त्र और ये सब सत्संग और सब विधियां बेकार गए। अब इनको छोड़ दें। और अगर मिल गया हो, तो मेरा समय खराब न करें। मुझे साफ—साफ कह दें। अगर मिल गया हो, तो ठीक है, बात समाप्त हो गई। अगर न मिला हो, तो अब इस बोझ को न ढोए। क्योंकि एक घंटा उन्होंने मुझे ब्योरा बताया, कि वे कौन— कौन सी किताब पढ़ चुके हैं, कौन—कौन महात्मा से मिल चुके हैं, कौन—कौन सी विधि कर चुके हैं। मैंने कहा, इनसे अगर मिल गया हो, तो ठीक है। झंझट मिट गई। अगर न मिला हो, तो अब इस बोझ को न ढोए फिरें।लेकिन यह बात उनको रुचिकर नहीं लगी। यह उनके जीवनभर की संपत्ति है। इससे मिला कुछ नहीं। लेकिन यह अनुभव भी करना कि इससे कुछ नहीं मिला, उसका मतलब होता है कि बीस साल मेरे बेकार गए। वह भी चित्त को भाता नहीं है। बीस साल मैंने व्यर्थ ही गंवाए, वह भी चित्त को भाता नहीं है। मिला भी नहीं है। छोड़ा भी नहीं जाता, जो पकड़ लिया है।

ज्ञानी, तथाकथित ज्ञानी की तकलीफ यही है। अपना ज्ञान भी नहीं है और उधार ज्ञान सिर पर इतना भारी है, वह छोड़ा भी नहीं जाता। क्योंकि वह संपत्ति बन गई। उससे अकड़ आ गई। उससे अहंकार निर्मित हो गया है। उससे लगता है कि मैं जानता हूं। बिना जाने लगता है कि मैं जानता हूं।

यह जो स्थिति हो, तो तत्व—ज्ञान फलित नहीं होगा।कृष्‍ण कहते हैं, ज्ञानियो का मैं तत्व—ज्ञान हूं। वे यह नहीं कहते कि ज्ञानियों की मैं जानकारी हूं। ज्ञानियों के पास बड़ी जानकारी, बड़ी इन्फर्मेशन है। वे कहते हैं, ज्ञानियो का मैं तत्व—ज्ञान, निजी अनुभव, उनका खुद का बोध, उनका सेल्फ रियलाइजेशन, उनकी प्रतीति, उनकी अनुभूति मैं हूं। उनकी जानकारी नहीं।

यह जो अनुभूति है, यह एक बहुत अनूठी घटना है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ 
गीता दर्शन