ओशो– जिब्रान ने एक छोटी—सी कहानी लिखी है। जिब्रान ने लिखा है कि जब भी इस जगत में कोई नया आविष्कार होता है, तो देवता और शैतान दोनों ही उस पर झपट्टा मारते हैं कब्जा करने को। और अक्सर ही ऐसा होता है कि शैतान उस पर पहले कब्जा कर लेता है, देवता सदा पीछे रह जाते हैं। देवताओं को तो खयाल ही तब आता है, जब शैतान निकल पड़ता है। और शैतान तो पहले से ही तैयार है। जब भी आपके जीवन में कोई घटना घटेगी, तो आपके भीतर जो बुरा हिस्सा है, वह तत्क्षण उस पर कब्जा करना चाहेगा। इसके पहले कि अच्छा हिस्सा दावा करे, बुरा हिस्सा उस पर कब्जा कर लेगा।
जैसे ही ज्ञान की किरण उतरेगी, वैसे ही अहंकार पकड़ेगा कि मैंने जान लिया। और इस वक्तव्य में ही वह ज्ञान की किरण खो गई और अंधकार हो गया। इस अहंकार के भाव में ही, वह जो उतर रहा था, उसका स्रोत बंद हो गया। और जब तक यह भाव मिटेगा नहीं, तब तक वह स्रोत बंद रहेगा। सैकड़ों—हजारों लोगों पर ध्यान के प्रयोग करने के बाद मैं कुछ नतीजों पर पहुंचा हूं। उनमें एक यह है कि मेरे पास लोग आते हैं; जब उन्हें पहला अनुभव होता है ध्यान का, तो उनकी प्रफुल्लता की कोई सीमा नहीं होती। उनका पूरा हृदय नाचता होता है। लेकिन जब भी वे मुझे आकर खबर देते हैं और उनकी प्रफुल्लता मैं देखता हूं तो मैं डरता हूं। मैं जानता हूं कि अब यह गया। अब कठिनाई शुरू हो जाएगी। क्योंकि अब तक इसे कोई अपेक्षा न थी। अब तक इसे कुछ पता न था। अनएक्सपेक्टेड, अपेक्षित न था, घटना घटी है। और यह घटना तभी घटती है, जब अपेक्षा न हो; अपेक्षा होने से ही बाधा पड जाती है। अब यह कल से रोज प्रतीक्षा करेगा। ध्यान इसका व्यर्थ होगा अब। अब यह ध्यान में बैठेगा जरूर, लेकिन पूरा नहीं बैठेगा। मन तो लगा रहेगा उस घटना में, जो कल घटी थी। और निश्चित रूप से वह आदमी एक—दो दिन में मेरे पास आता है, कहता है कि वह बात अब नहीं हो रही! चित्त बड़ा दुखी है।
वह जो किरण उठती थी, इसने मार डाली। उसकी बात ही नहीं उठानी थी। उसको पकड़ना ही नहीं था। सिर्फ धन्यवाद देना था परमात्मा को कि तेरी कृपा है। क्योंकि मैं तो कुछ जानता भी नहीं था। हुआ, तू जान। और भूल जाना था। दूसरे दिन वह किरण और भी गहरी उतरती।
जो भी जीवन में आए, उसे भूलना सीखना पड़ेगा; अन्यथा वही बंधन हो जाएगा। फिर बड़ी कठिनाई हो जाती है। कई दफा तो सालों लग जाते हैं। जब तक कि वह आदमी भूल ही नहीं जाता उस घटना को, तब तक दुबारा किरण नहीं उतरती। और वह जितनी कोशिश करता है, उतना ही कठिन हो जाता है। क्योंकि कोशिश से वह आई नहीं थी। इसलिए कोशिश से उसका कोई संबंध नहीं है। वह तुम्हारे बिना प्रयत्न के घटी थी। तुम भोले — भाले थे, तुम सरल थे, तुम कुछ मांग नहीं रहे थे। उस निर्दोष क्षण में ही वह संपर्क हुआ था। अब तुम मांग रहे हो। अब तुम चालाक हो। अब तुम भोले— भाले नहीं हो। अब तुमने गणित बिठा लिया है। अब तुम कहते हो कि अब ये तीस मिनट हो गए ध्यान करते, अभी तक नहीं हुआ! अब तुम मिनट—मिनट उसकी आकांक्षा कर रहे हो। तो तुम्हारा मन बंट गया। अब तुम ध्यान में नहीं हो। अब तुम अनुभव की आकांक्षा कर रहे हो।
इसलिए ध्यान रखें, अनुभव को जो पकड़ेगा, वह वंचित हो जाएगा। और सात्विक अनुभव इतने प्यारे हैं कि पकड़ना बिलकुल सहज हो जाता है। छोड़ना बहुत कठिन होता है, पकड़ना बिलकुल सहज हो जाता है।
झेन फकीर, उनका शिष्य जब भी आकर उनको खबर देगा कि उसे कुछ अनुभव हुआ, तो उसकी पिटाई कर देते हैं। डंडा उठा लेते हैं। जैसे ही कहेगा कि कुछ अनुभव हुआ है कि वे टूट पड़ेंगे उस पर।
बड़ा दया का कृत्य है। हमें लगता है, बड़ी कठोर बात है। बड़ा दया का कृत्य है। उनकी यह मार—पीट, शिष्य को खिड़की से उठाकर फेंक देना—कई बार ऐसा हुआ कि शिष्य की टल टूट गई, हाथ टूट गया—मगर वह कोई महंगा सौदा नहीं है।
जैसे ही उसने अनुभव को पकड़ा कि उन्होंने उसको इतना दुख दे दिया कि वह अनुभव जैसे इस दुख ने पोंछ दिया। अब वह दुबारा अनुभव को पकड़ने में जरा संकोच करेगा। और दुबारा गुरु के पास तो आकर कहेगा ही नहीं कि ऐसा हो गया। और जब भी उसको दुबारा पकड़ने का खयाल होगा, तब उसको याद आएगा कि गुरु ने जो व्यवहार किया था, वह बताता है कि मेरी पकड़ में कहीं कोई बुनियादी भूल थी। क्योंकि गुरु बिलकुल पागल हो गया था। जो सदा शांत था, जिसने कभी अपशब्द नहीं बोला था, उसने डंडा उठा लिया था। उसने मुझे खिड़की के बाहर फेंक दिया था। कोई भयंकर भूल हो गई है।
सात्विक अनुभव ज्ञान देगा। ज्ञान से अहंकार जगेगा। सात्विक अनुभव वैराग्य देगा, वैराग्य से बड़ी अकड़ पैदा होगी।इसलिए संन्यासी जैसी अकड़ सम्राटों में भी नहीं होती। संन्यासी जिस ढंग से चलता है, उसको देखें। सम्राट भी क्या चलेंगे! क्योंकि वह यह कह रहा है कि लात मार दी। यह सब संसार तुच्छ है, दो कौड़ी का है। हम इसे कोई मूल्य नहीं देते। तुम्हारे महल ना—कुछ हैं। तुम्हारे स्वर्ण—शिखर, तुम्हारे ढेर हीरे—जवाहरातों के, कंकड—पत्थर हैं। हम उस तरफ ध्यान नहीं देते। हमने सब छोड़ दिया। वैराग्य उदय हो गया है।
यह वैराग्य खतरनाक है। यह तो एक नया राग हुआ। यह विपरीत राग हुआ। यह राग से मुक्ति न हुई। यह तो वैराग्य को ही पकड़ लिया तुमने!
मन की आदत पकड़ने की है। इससे कोई संबंध नहीं कि आप क्या उसे पकड़ाते हैं। उसकी आदत पकड़ने की है; वह पकड़ने का यंत्र है। आप धन कहो, वह धन पकड़ लेगा। दान कहो, दान पकड़ लेगा भोग कहो, भोग पकड़ लेगा। त्याग कहो, त्याग पकड़ लेगा। आब्जेक्ट से कोई संबंध नहीं है। कुछ भी दे दो, मन पकड़ लेगा। और जिसको भी मन पकड़ लेगा, वही बंधन हो जाएगा। सैकड़ों कथाएं हैं वैरागियों की, जो अपने वैराग्य के कारण जन्मों —जन्मों तक मुक्त न हो पाए। क्योंकि अकड़ उनकी भारी है।