धर्म यानी ध्यान, ध्यान में तुम हिंदू, मुसलमान, ईसाई भी नहीं रह जाओगे, क्योंकि ध्यान का अर्थ है अपने विचारों से मुक्त हो जाना “ओशो”

 धर्म यानी ध्यान, ध्यान में तुम हिंदू, मुसलमान, ईसाई भी नहीं रह जाओगे, क्योंकि ध्यान का अर्थ है अपने विचारों से मुक्त हो जाना “ओशो”

ओशो- धर्म यानी ध्यान। ध्यान में तुम हिंदू नहीं रह जाओगे, मुसलमान भी नहीं रह जाओगे, ईसाई भी नहीं रह जाओगे। क्योंकि ध्यान का अर्थ है अपने विचारों से मुक्त हो जाना; अपने विचारों का साक्षी हूं मैं, ऐसा जान लेना। तब तुम देखोगे कि हिंदुओं के विचार, मुसलमानों के विचार, ईसाइयों के विचार तुम्हारे चारों तरफ हैं..बादलों की तरह घिरे हैं। और तुम सूरज हो। तुम बादल नहीं हो.न यह बादल, न वह बादल. जिस दिन तुम जानोगे कि तुम सूर्य के प्रकाश हो, जिस दिन तुम जानोगे कि तुम साक्षीभाव हो,जिस दिन तुम्हारे भीतर समाधि फलित होगी…उस दिन क्या तुम हिंदू रह जाओगे? अगर उस दिन भी हिंदू रह गए तो तुम्हारी समाधि झूठी। उस दिन क्या तुम पुरुष रह जाओगे या स्त्री? अगर तुम पुरुष और स्त्री रह गए, तो भी तुम्हारी समाधि झूठी। उसका अर्थ है अभी तुम शरीर के साक्षी नहीं हो पाए। स्त्री-पुरुष होना शरीर में है। हिंदू-मुसलमान होना मन में है। मन और शरीर दोनों के पार हो तुम। न आर्य हो, न अनार्य हो..साक्षी हो। साक्षी होने में ही तुम्हारी भगवत्ता है।इसलिए इस बात को ख्याल में रख लो। चोट करता हूं तुम्हारी जंजीरों पर, क्योंकि तुमने जंजीरों को आभूषण समझ रखा है। तुम उनको सजा रहे हो, रंग रहे हो, मोती जड़ रहे हो उन पर, हीरे-जवाहरात लगा रहे हो। और जो भी तुम्हारे आभूषणों की प्रशंसा करता है, तुम्हारे आभूषणों का यशगान करता है, स्तुति करता है, उससे तुम बहुत प्रभावित होते हो। स्वामी विवेकानंद से तुम इसीलिए प्रभावित हो कि उन्होंने तुम्हारे कारागृह को खूब सजाया। वे कुशल व्यक्ति थे; द्रष्टा नहीं, बुद्ध नहीं, साक्षी नहीं। चिंतक थे, विचारक थे, दार्शनिक थे; ऋषि नहीं, भगवत्ता को उपलब्ध नहीं, समाधिस्थ नहीं। समाधिस्थ होकर क्या फिकर रह जाती है हिंदू-मुसलमान की! और वे जीवन भर छूट न सके उन शब्दों से। और उन शब्दों का इतना मोह था उन्हें कि एक जगह उन्होंने कहा है कि जो व्यक्ति अपनी परंपरा के विपरीत जाएगा वह भयंकर बीमारियों से मरेगा। उन दिनों मधुमेह, डायबिटीज बड़ी भयंकर बीमारी थी, तो उन्होंने स्पष्ट उल्लेख किया है कि परंपरा के विपरीत जो जाएगा, वह मधुमेह से मरेगा। और जान कर तुम हैरान होओगे, वे खुद मधुमेह से मरे! और तेतीस साल की उम्र में मरे।अब मधुमेह का परंपरा के विपरीत जाने से कोई संबंध नहीं है। लेकिन डरवाने के लिए, भयभीत करने के लिए..कि अपनी परंपरा को पकड़े रहना, नहीं तो मधुमेह से मरोगे!

विवेकानंद का शरीर तुम्हें बहुत प्रभावित करता है। लेकिन उस तरह के शरीर वाले लोग अक्सर ही मधुमेह से पीड़ित होंगे। वह कोई स्वास्थ्य का लक्षण नहीं है। उतना वजन शरीर पर डालना डायबिटीज को निमंत्रण देना है। मगर कोई डायबिटीज परंपरा के विपरीत जाने से पैदा नहीं होती, नहीं तो सारी दुनिया में डायबिटीज फैल जाए। तब तो ऐसा आदमी पाना मुश्किल हो जाए जिसको डायबिटीज न हो।
अभी जिन लोगों को डायबिटीज है उन की संख्या बहुत थोड़ी है। तो उन्होंने संघ बना लिया है और वे अपने कोट के खीसे में कार्ड रखते हैं कि मैं डायबिटीज का बीमार हूं। क्योंकि डायबिटीज का बीमार कभी-कभी अगर शक्कर की मात्रा शरीर में कम हो जाए तो बेहोश हो जाता है। तो कार्ड पर लिखा होता कि मैं बेहोश हो जाऊं तो घबड़ाने की जरूरत नहीं है, शीघ्र मुझे शक्कर पिलाई जाए; कोई और दूसरा इलाज न किया जाए, मैं सिर्फ डायबिटीज का बीमार हूं।अगर परंपरा के विपरीत जाने से डायबिटीज होती हो तो हमें स्थिति बदलनी पड़े; सिर्फ कुछ लोगों को कार्ड रखना पड़े कि मैं डायबिटीज का बीमार नहीं हूं। बाकी तो सब लोग हैं ही फिर। और विवेकानंद खुद डायबिटीज से मरे। और तेतीस-चैतीस साल की उम्र में मरे और डरवाते रहे लोगों को। पहले कभी सोचा भी नहीं होगा कि इसी बीमारी में अपने को फंस जाना पड़ेगा। और परंपरा के बड़े भक्त थे।

तुम कहते हो भगवानदास आर्यः ‘कि अपने ज्ञान-चक्षुओं के आधार पर’…अगर तुम्हारे ज्ञान-चक्षु खुल गए तो भैया यहां सिर क्यों मार रहे हो! मुझे तो शक है कि अभी चर्म-चक्षु भी तुम्हारे खुले हैं कि नहीं। ज्ञान-चक्षु खुल गए तो फिर बचा क्या? और ज्ञान-चक्षु खुले..और दिखाई पड़ रही हैं ये बातें! तुम्हारे ज्ञान-चक्षु खुलें तो मैं विवेकानंद से प्रारंभिक रूप से प्रभावित रहा होऊंगा, यह दिखाई पड़ेगा? क्या लेना विवेकानंद से, क्या लेना मुझसे? ज्ञान-चक्षु खुलेंगे तो परमात्मा दिखाई पड़ेगा। ज्ञान-चक्षु खुलेंगे तो परम ज्योति का अनुभव होगा; या इन बातों का पता लगाते रहोगे! ज्ञान-चक्षुओं को भी इस काम में लगाओगे? इतिहास की खोज-बीन करोगे, भूगोल का पता लगाओगे?…….

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३ 
होनी होय सो होय-10