आज की ध्यान-विधि “ओशो”

 आज की ध्यान-विधि “ओशो”

ओशो- जैसे ही तुम्हें पता चले सुबह की नींद टूट गई, आंख मत खोलना। उस वक्त चित्त बहुत संवेदनशील है!

जैसे ही पता चले नींद टूट गई, पहला ध्यान एक करना कि मैं साक्षी हूं। रोज सुबह उठते समय पांच मिनट आंख बंद किए ही पड़े रहना, आंख मत खोलना।

आंख खोलते ही संसार दिखाई पड़ा कि तुम खो जाओगे। आंख बंद ही रखना, और भीतर एक भाव करना कि मैं साक्षी हूं, कर्ता नहीं। और यह साक्षी भाव दिन भर सधे, बार-बार इसका मैं स्मरण कर सकूं — ऐसे भाव में डूबे हुए तुम उठना।और थोड़ी देर इसे सम्हालने की कोशिश करना, क्योंकि शुरू-शुरू में सबसे ज्यादा आसान होगा। उठो, बिस्तर के नीचे पैर रखो — होशपूर्वक रखना। स्नान करने जाओ — होशपूर्वक स्नान करना। सुबह का नाश्ता करो — होशपूर्वक नाश्ता करना।

होशपूर्वक का अर्थ है: यह सब मेरे बाहर हो रहा है। शरीर की जरूरत है, मेरी नहीं! मेरी कोई जरूरत ही नहीं है। है भी नहीं; क्योंकि तुम स्वयं परमात्मा हो, तुम्हारी क्या जरूरत हो सकती है? तुम पूर्ण हो, तुम ब्रह्म-स्वरुप हो, सबकुछ तुम्हारा है — तुम्हारी कोई भी जरूरत नहीं है। आत्मा किसी जरूरत से नहीं चलती, उसके लिए कोई ईंधन की जरूरत नहीं है — बिन बाती बिन तेल! मेरी कोई जरूरत नहीं है; शरीर की जरूरत है –स्नान, भोजन, उठना, काम!इसे सम्हालने की कोशिश करना। इस धागे को जितनी देर तक खींच सको, खींचना। जल्दी ही यह खो जाएगा! काम-धाम की दुनिया है, पुरानी आदत है! मगर रोज-रोज इसको सींचना। यह पौधा धीरे-धीरे बड़ा होगा। दिखाई भी नहीं पड़ेगा कब बड़ा हो रहा है, क्योंकि इतने धीमे-धीमे बढ़ेगा।लेकिन अचानक एक दिन तुम पाओगे कि दिन भर एक धागे की तरह तुम्हारे भीतर प्रकाश की एक किरण बनी रहती है; और वह प्रकाश की किरण तुम्हारे जीवन को रासायनिक रूप से बदल देगी।क्रोध कम आएगा, क्योंकि साक्षी को कैसा क्रोध! मोह कम पकड़ेगा, क्योंकि साक्षी को कैसा मोह! चीजें घटेंगी, सफलता-असफलता होगी, सुख-दुख आएंगे — लेकिन तुम कम डांवाडोल होओगे, क्योंकि साक्षी को कैसा कंपन!

सुख आएगा, उसे भी तुम देख लोगे; दुख आएगा, उसे भी देख लोगे — और तुम्हारे भीतर सतत धारा बनी रहेगी कि मैं देखने वाला हूं, भोक्ता नहीं हूं!

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३