गरीब की सबसे बड़ी तकलीफ है कि वह अकेले में नहीं हो सकता, उसकी प्राइवेसी जैसी कोई चीज नहीं “ओशो”

 गरीब की सबसे बड़ी तकलीफ है कि वह अकेले में नहीं हो सकता, उसकी प्राइवेसी जैसी कोई चीज नहीं “ओशो”

ओशो- गरीब की सबसे बड़ी जो दुविधा है, वह है प्राइवेसी का अभाव–भोजन नहीं, कपड़े नहीं। गरीब का सबसे बड़ा दुख है कि उसकी प्राइवेट जिंदगी नहीं हो सकती। वह अगर अपनी पत्नी से भी बात कर रहा हो तो भी पड़ोसी सुनता है। वह अपनी पत्नी से भी प्रेम नहीं कर सकता बिना इसके कि उसके बेटे-बेटी जान लें। गरीब की सबसे बड़ी तकलीफ है कि वह अकेले में नहीं हो सकता। उसकी प्राइवेसी जैसी कोई चीज नहीं है।समृद्धि का एकमात्र सुख है कि आप अकेले में हो सकते हैं और दुनिया और अपने बीच स्पेस पैदा कर सकते हैं, जगह पैदा कर सकते हैं, बड़ी जगह पैदा कर सकते हैं। और जितनी आपके और दूसरों के बीच जगह बढ़ जाती है, उतना ही चित्त शांत होता है। दूसरे की मौजूदगी तनाव लाती है। यह आपने कभी खयाल न किया होगा कि दूसरा कुछ भी न करे, सिर्फ मौजूद हो जाए, तो तनाव शुरू हो जाता है।आप रास्ते पर चले जा रहे हैं अकेले, आप दूसरे आदमी होते हैं। रास्ता सन्नाटा है, कोई भी नहीं है, आप बिलकुल दूसरे आदमी होते हैं। हो सकता है, अपने से बात कर रहे हों। मौज में आ गए हों, गीत गुनगुना रहे हों। वह गीत जो अपने बेटे को आपने कभी नहीं गुनगुनाने दिया। लेकिन दो आदमी निकल आए सड़क पर, बस आप बदल गए। सिर्फ दो आदमियों की मौजूदगी आपको तत्काल टेंस कर देती है।अगर बहुत ठीक से समझें तो दि अदर इज़ दि टेंशन–वह जो दूसरा है, वही तनाव है। वह जो दूसरा है। और वह दूसरे की मौजूदगी बढ़ती जा रही है। चारों तरफ कोई न कोई मौजूद है। सब तरफ कोई न कोई मौजूद है। कहीं भी चले जाएं, कोई न कोई मौजूद है। अकेले होने का कोई उपाय नहीं। इससे एक गहरा तनाव आदमी के मन पर बैठ रहा है। वह तनाव बढ़ती हुई संख्या का सबसे खतरनाक परिणाम है।

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३

एक एक कदम