भारत के दुर्भाग्य का पहला सूत्र यह है कि हम बहुत लंबे समय से आकाश की तरफ देखने वाले लोग हैं और जमीन को देखना भूल गए, हमारी आंखे मोक्ष पर टिकी हैं, स्वर्ग पर टिकी हैं, पृथ्वी पर नहीं “ओशो”

 भारत के दुर्भाग्य का पहला सूत्र यह है कि हम बहुत लंबे समय से आकाश की तरफ देखने वाले लोग हैं और जमीन को देखना भूल गए, हमारी आंखे मोक्ष पर टिकी हैं, स्वर्ग पर टिकी हैं, पृथ्वी पर नहीं “ओशो”

अध्यात्म बीमारी बन गया
ओशो- भारत के दुर्भाग्य की कहानी तो लंबी है। लेकिन इस कहानी के बुनियादी सूत्र बहुत थोड़े, बहुत पंक्चुअल हैं। तीन सूत्रों पर मैं आपसे बात करना चाहूंगा। और एक छोटी सी कहानी से शुरू करूंगा।सुना है मैंने एक ज्योतिषी, रात्रि के अंधेरे में, आकाश के तारों का अध्ययन करता हुआ, किसी गांव के पास से गुजरता था। आकाश को देख रहा था, इसलिए स्वभावतः जमीन को देखने की सुविधा न मिली। आकाश के तारों पर नजर थी, इसलिए पैर कहां मुड़ गए, यह पता न चला, और वह एक सूखे कुएं में गिर पड़ा। चिल्लाया बहुत, पास से किसी किसान की झोपड़ी से लोगों ने निकल कर उसे बचाया। किसान भी घर पर न था, उसकी बूढ़ी मां ही घर पर थी। किसी तरह उस ज्योतिषी को बाहर निकाला जा सका था। और जब वह बाहर निकल आया तो उसने स्वभावतः धन्यवाद दिया, और उस बूढ़ी औरत को कहा कि मां, अगर कभी ज्योतिष के संबंध में कुछ समझना हो, तो इस समय पृथ्वी पर तारों को मुझसे ज्यादा जानने वाला कोई भी नहीं, तुम आ जाना। उस बूढ़ी स्त्री ने कहाः क्षमा करो मुझे। जिसे अभी जमीन के गड्ढों का पता नहीं, उसके आकाश के तारों के ज्ञान का भरोसा नहीं हो सकता।भारत के दुर्भाग्य का पहला सूत्र यह है कि हम बहुत लंबे समय से आकाश की तरफ देखने वाले लोग हैं और जमीन को देखना भूल गए, हमारी आंखे मोक्ष पर टिकी हैं, स्वर्ग पर टिकी हैं। पृथ्वी पर नहीं। इसलिए पृथ्वी पर कैसे जिएं यह हम न खोज पाए। हम ज्यादा से ज्यादा मरने के संबंध में विचार कर पाए हैं, कि कैसे मरें। कैसे जिएं ? इसका हमें कोई भी पता नहीं चल पाया। और क्योंकि हम मृत्यु के बाद क्या होगा ? इस संबंध में चिंतन करते रहे, इसलिए मृत्यु के पहले क्या हो, इस संबंध में हमारे विचार ने कोई गति नहीं की। क्योंकि हम आत्मा की बातें करते रहे, इसलिए शरीर को गंवा बैठे हैं। और चूंकि हम धर्म की बात करते रहे हैं, इसलिए धन को नहीं खोज पाए। और चूंकि हमने सिवाय रहस्य के, सपनों के, कल्पनाओं के, अपने मन में किसी और को बसेरा नहीं दिया, इसलिए विज्ञान को जन्म हम नहीं दे पाए।अवैज्ञानिक, दीन, दरिद्र, दासता से भरा हुआ ये हमारा लंबा इतिहास, इस बात की खबर देता है कि आकाश की तरफ देखा जा सकता है कभी-कभी, लेकिन जो चैबीस घंटे आकाश की तरफ देखने लगते हैं, जमीन पर उनके रास्ते खो जाते हैं। कभी-कभी उचित है कि हम आकाश की तरफ देखें, लेकिन वह भी जमीन को सुंदर बनाने के लिए। कभी-कभी उचित है कि हम फूलों की तारीफ करें, लेकिन जड़ों को न भूल जाएं। और जो पौधा अपने फूलों की ही मस्ती में मस्त रहने लगे और जड़ों को भूल जाए, उस पौधे की जड़ें तो बचेंगी नहीं, फूल भी ज्यादा दिन नहीं बच सकते। क्योंकि फूलों के प्राण इन जड़ों में होते हैं, जो जमीन में अदृश्य हैं। और कैसा आश्चर्य है कि सुंदर फूलों के प्राण उन जड़ों में होते हैं, जो कुरूप हैं। कुरूप और अंधेरे में छिपी जड़ों में पौधों के प्राण हैं। फूल तो केवल ऊपर की सजावट है। और फूल बिना जड़ों के नहीं जी सकते। जड़ें जरूर बिना फूलों के भी जीना चाहें तो जी सकती हैं। जड़ों को भूल गए हैं, और जीवन की जो जड़ें थी, हमने उन सबको इंकार कर दिया है। फूलों के पक्ष में जड़ों को इंकार कर दिया है। बिना इस बात को समझे कि कोई फूल जड़ों के सहारे के बिना जीवित नहींे रह सकता।हमने मंदिर के ऊपर के शिखर बचा लिए, स्वर्ण-शिखर। लेकिन मंदिर की नींव भी भरनी पड़ती है। नींव के पत्थर बचाना हम भूल गए। स्वर्ण-शिखर हमारे हाथों में रह गए, और मंदिर गिर गया। क्योंकि ये तो हो सकता है, कि मंदिर पर स्वर्ण-शिखर न हो, लेकिन यह नहीं हो सकता कि अकेले स्वर्ण शिखर हो, और मंदिर की नींव न हो। यह जीवन के बुनियादी सत्यों में से एक है कि जो निम्न है, वह श्रेष्ठ के बिना हो सकता है। लेकिन जो श्रेष्ठ है, वह निम्न के बिना नहीं हो सकता। आदमी का पेट भूखा हो तो कविता को कोई जन्म नहीं मिलता है। पेट भरा हुआ हो सकता है, कविता को जन्म मिले, यह जरूरी नहीं। लेकिन पेट अगर खाली है तो कविता को जन्म नहीं मिलता। बिना पेट के कविता का कोई अस्तित्व नहीं है। यद्यपि कविता के बिना पेट भली-भांति अस्तित्व में रह सकता है।जीसस का एक वचन है, जिसमें उन्होंने कहा है ‘मैन कैन नाॅट लिव बाय ब्रेड अलोन’ आदमी अकेली रोटी के सहारे नहीं जी सकता है। यह बात अधूरी है। और इस अधूरी बात में खतरा हैै। भारत इसी खतरे को पांच हजार साल से झेल रहा है। मनुष्य अकेली रोटी ने नहीं जी सकता, यह आधा सत्य है। और ध्यान रहे आधे सत्य असत्यों से भी खतरनाक सिद्ध होते हैं। क्योंकि असत्य बहुत दिन तक टिक नहीं सकते। लेकिन आधे सत्य बहुत दिनों तक टिक सकते हैं। असत्य बहुत दिनों तक धोखा नहीं दे सकते, वह दिखाई पड़ जाते हैं कि असत्य हैं। लेकिन अर्द्धसत्य धोखा दे सकते हैं, क्योंकि असत्य भीतर होता है और अर्द्ध सत्य उनके ऊपर वस्त्रों का आवरण बन जाता है और धोखा लंबा हो सकता है। इसलिए उचित है कि कोई असत्यों में जी ले, क्योंकि असत्यों में जीने वाला किसी न किसी दिन असत्यों के ऊपर उठ जाएगा। लेकिन जिन्होंने आधे सत्यों में जीना शुरू कर दिया है, उनका भगवान के अतिरिक्त कोई सहारा नहीं है। और ध्यान रहे भगवान का कोई सहारा होता नहीं है। यह सिर्फ बेसहारा होने में, सांत्वना है कि भगवान का सहारा है। यह बेसहारा होने की खबर है।जीसस का यह वचन कि आदमी अकेली रोटी से नहीं जी सकता, सच है आधा। आधा वचन और भी याद कर लेना चाहिए कि आदमी बिना रोटी के बिल्कुल नहीं जी सकता। और यह तो हो भी सकता है कि अकेली रोटी से जी जाए, लेकिन यह बिल्कुल असंभव है कि बिना रोटी के जी जाए।

इस देश के अध्यात्म ने, इस देश के जीवन को सुगंध नहीं दी, दुर्गंध दे दी। क्योंकि अध्यात्म अधूरा था। वह आकाश का था, फूलों का था, उसमें जड़ों और बुनियाद की कोई जगह न थी। हमने भौतिकवाद के विपरीत आध्यात्मिक होने की बड़ी लंबी चेष्टा की है। हमने शरीर के खिलाफ सिर्फ आत्मा होने की लंबी चेष्टा की है। हमने भूखे पेट कविता रचने का प्रयास किया है। बड़ा एडवेंचर था। बड़ा दुस्साहसपूर्ण काम था, लेकिन बुद्धिमत्तापूर्वक वो करने योग्य नहीं था। वह नहीं हो सकता था। वह नहीं हुआ। लेकिन जब कोई कौम हजारों साल तक एक सपने में जीती है तो उसे सपने को छोड़ना मुश्किल हो जाता है। और जब हजारों साल तक हम किसी सपने को अपने खून में बसाते हैं, हड्डी और मांस-मज्जा में प्रवेश कर देते हैं। तो धीरे-धीरे हम यह भूल ही जाते हैं, कि वह सपना है। वह सच ही मालूम होने लगता है। और हजारों साल तक कोई अगर सपनों के साथ रहे, तो उस सपने को छोड़ना कठिन हो जाता है। सपना तो दूर, अगर हजारों साल तक किसी को हम जंजीरों में रखें, तो जंजीरें आभूषण बन जाती हैं। और हजारों साल तब अगर कोई जंजीरों में रहे, तो वह जंजीरों पर सोने-चांदी की पाॅलिश कर लेता है। फूल-बूटे निकाल लेता है, चित्र बना लेता है और उनको आभूषण समझने लगता है। असल में हजारों साल तक जंजीरों में रहने के लिए जरूरी है कि जंजीरें जंजीरें न मालूम पड़ें, आभूषण मालूम पड़ने लगें।…. क्रमशः

ओशो आश्रम उम्दा रोड भिलाई-३